महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती आज, स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह का किया था समर्थन, तो जाति प्रथा के थें विरोधी

Mahatma Jyotiba Phule Jayanti: ब्रिटिश सरकार ने 1773 में स्त्री शिक्षा के महान कार्य के लिए उन्हें "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक" कहकर सम्मान दिया था।

Written By :  Prashant Dixit
Update:2022-04-11 12:30 IST

Mahatma Jyotiba Phule Jayanti (image - social media)

Mahatma Jyotiba Phule Jayanti: महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले को महात्मा फुले एवं ''जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। वह महान समाज सुधारक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थें। जोतिबा फुले स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन सदैव करते रहे।

सितम्बर 1773 में में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय जिसके माध्यम से अनेक कार्य किए। वे समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध मुखर होकर बोलते थे और उसके धुर विरोधी थें।

महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म, पढ़ाई और शादी

ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 ई में पुणे में हुआ था। एक वर्ष की अवस्था में ही इनकी माता का निधन हो गया। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे होने के कारण ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते हैं।

ज्योतिबा ने कुछ समय तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूटी और बाद में 21 वर्ष की उम्र में सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की। ज्योतिबा का बाल विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ था। जो बाद में एक प्रसिद्ध समाजसेवी बनीं। दलित और स्‍त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर काम किया।

महात्मा ज्योतिबा फुले का महान कार्य क्षेत्र

ज्योतिबा ने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए काम करते हुए, कुप्रथा, अंधश्रद्धा के जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे। अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा, स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में लगा दिया।

स्त्रियों की दशा सुधारने लिए उनकी शिक्षा के लिए 1848 में एक स्कूल खोला। यह महिला शिक्षा के लिए देश में पहला विद्यालय था। जब महिलाओं को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन में अपनी पत्नी सावित्री फुले को इस योग्य बना दिया। सावित्री बाई फुले को भारत की प्रथम महिला अध्यापिका कहा जाता है।

जिसके बाद ज्योतिबा के पिता ने उनको पति-पत्नी से घर से निकालवा दिया। जिसके बाद उनके काम में कुछ समय के लिए बाधा पड़ी बाद में उन्होंने बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए। साथ ही किसानों की हालत सुधारने लिए भी बहुत प्रयास किये। ज्योतिबा को संत-महत्माओं को पढ़ने में बड़ी रुचि थी। उन्हें ज्ञान हुआ कि जब भगवान के सामने सब नर-नारी समान हैं तो उनमें ऊँच-नीच का भेद क्यों होना चाहिए।

महात्मा ज्योतिबा फुले को मिली उपाधि

शोषित समाज को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' की 1773 मे स्थापना की, उनकी समाजसेवा देखकर 1877 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा ने उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने बिना पुरोहित के विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और जिसे मुंबई उच्च न्यायालय से भी मान्यता प्राप्त हुई थीं।

ज्योतिबा फुले ने कई पुस्तकें लिखीं गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत, महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष से सरकार ने 'एग्रीकल्चर एक्ट' पास किया। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी थीं।

ब्रिटिश सरकार ने 1773 में स्त्री शिक्षा के महान कार्य के लिए उन्हें "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक" कहकर गौरव प्रदान किया गया था। डॉ. भीमराव अंबेडकर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व से अध्याधिक प्रभावित थे। उन्होंने ज्योतिबा फुले को बुद्ध और कबीर के बाद अपना तीसरा गुरू माना था। महात्मा ज्योतिबा फुले का लकवाग्रस्त होने से 20 नवंबर, 1890 को उनका निधन हो गया। उनके द्वारा समाज के लिए किए गए काम को देश की जनता कभी नहीं भुला पाएंगी।

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