Afganistan Taliban Crisis: अफगानिस्तान में अंधेरा, तालिबान के पास बिजली खरीदने का पैसा नहीं

Afganistan Taliban Crisis: अफगानिस्तान में घरेलू बिजली उत्पादन देश में सूखे की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Ragini Sinha
Update: 2021-10-05 06:39 GMT

अफगानिस्तान में अंधेरा, तालिबान के पास बिजली खरीदने का पैसा नहीं (social media)

Afganistan Taliban Crisis: अफगानिस्तान की समस्याओं का पहाड़ ऊंचा ही होता चला जा रहा है। ताजा संकट बिजली का है। क्योंकि तालिबान सरकार (Taliban government) बिजली कंपनियों (Electricity company) को भुगतान नहीं कर पा रही है। नतीजतन, पूरे अफगानिस्तान के अंधेरे में डूबने का खतरा मंडरा रहा है। काबुल (Kabul) में तो बिजली कटौती लागू हो चुकी है। अब अफगानिस्तान (Afganistan) में कड़ाके की ठंड का मौसम आ गया है, ऐसे में बिजली संकट से लोगों के सामने एक बहुत बड़ी आफत आ गई है। दरअसल, अफगानिस्तान बिजली आपूर्ति के लिए तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से होने वाले आयात पर निर्भर है। आधी आपूर्ति तुर्कमेनिस्तान से ही होती है। इन्हें सेंट्रल एशियन इलेक्टि्रकसिटी सप्लायर्स कहा जाता है। अफगानिस्तान की सरकारी बिजली कंपनी को बकाया भुगतान करने के लिए 90 मिलियन डॉलर की दरकार है। वर्ष 2020 तक अफगानिस्तान हर साल बिजली आयात पर 280 मिलियन डॉलर खर्च करता आया है। उस दौरान तो अंतरराष्ट्रीय सहायता से काम चल रहा था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।

अफगानिस्तान को अभी अन्य देशों से पर्याप्त बिजली मिल रही है

वाल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार अफगानिस्तान के सरकारी ऊर्जा प्राधिकरण के इस्तीफा दे चुके मुख्य कार्यकारी दाऊद नूरजई ने चेताया है कि बिजली के बिल का भुगतान नहीं करने से हालात मानवीय आधार पर विनाशकारी हो सकते हैं। अफगानिस्तान में घरेलू बिजली उत्पादन देश में सूखे की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। देश के हाइड्रोइलेक्ट्रिक संयंत्र बहुत कम क्षमता पर काम कर रहे हैं। फिलहाल तो अफगानिस्तान को अन्य देशों से पर्याप्त बिजली मिल रही है। लेकिन जल्द ही भुगतान नहीं हुआ तो आपूर्ति रोकी जा सकती है। इस तरह के हालात पर संयुक्त राष्ट्र लगातार चिंता जताता रहा है। अफगानिस्तान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, जहां एक तिहाई आबादी दो डॉलर प्रतिदिन से भी कम की आय में गुजर-बसर कर रही है।बीते दो दशक से अफगानिस्तान पूरी तरह विदेशी सहायता पर निर्भर रहा है। देश की जीडीपी में अंतरराष्ट्रीय मदद का हिस्सा करीब 43 फीसदी है। 

रेड क्रॉस की चेतावनी

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेडक्रॉस ने भी अफगानिस्तान में आसन्न भयंकर मानवीय संकट की चेतावनी दी है। संगठन के क्षेत्रीय निदेशक एलेक्जेंडर मैथ्यू ने कहा है कि अगर अफगानिस्तान में मजदूरी और सेवाओं, खासकर स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए धन की भुगतान बहाली नहीं हो पाती है, तो देश में गंभीर वित्तीय संकट के चलते इन सर्दियों में एक ''बड़ा मानवीय संकट'' उत्पन्न हो जाएगा। 

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद देश को नहीं मिल रही मदद

अफगानिस्तान में सूखा और गरीबी की वजह से खाने-पीने की चीजों की कमी के चलते सर्दियों का मौसम एक बड़ी परेशानी बनने जा रहा है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं में कटौती से अनेक अफगान लोगों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए बड़ा जोखिम पैदा हो सकता है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेडक्रॉस और रेडक्रॉस क्रीसेंट सोसाइटी ने अफगानिस्तान के 16 प्रांतों में स्वास्थ्य केंद्रों, आपात राहत और अन्य सेवाओं के संचालन को जारी रखने के लिए तीन करोड़ 80 लाख डॉलर की मदद दिए जाने की अपील की है। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अगस्त के महीने में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद देश को मिलने वाली मदद पर रोक लगा दी है, जबकि अमेरिका ने अफगान सेंट्रल बैंक की ओर से अमेरिकी खातों में जमा अरबों डॉलर की राशि फ्रीज कर दी है।

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