Afghanistan: अब पहले वाला अफगानिस्तान नहीं रहा, बहुत चुनौतियाँ हैं तालिबान के सामने

Afghanistan: तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्ज़ा तो हो गया लेकिन आगे राह कितनी आसान होगी यह कहना मुश्किल है.

Report :  Neel Mani Lal
Published By :  Yogi Yogesh Mishra
Update:2021-09-03 13:31 IST

Afghanistan: क्या तालिबान के लिए आसान होगी आगे की राह (photo social media)

Afghanistan:  तालिबान ने अफगानिस्तान में कंट्रोल तो जमा लिया है लेकिन उसकी राह आसान नहीं है। तालिबान के पिछले शासन को बीते 20 साल से ज्यादा समय हो चुका है। 1996 की तुलना में हालात बहुत बदल चुके हैं। अफगानिस्तान में अमेरिका के 20 साल के कंट्रोल के दौरान इस देश में बहुत से बदलाव आ चुके हैं जिनको रिवर्स करना आसान नहीं है।


Taliban Soldiers (photo social media)

क्या है चुनौतियाँ 

अफगानिस्तान में तालिबान के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक और सुरक्षा के मोर्चे पर है। 90 के दशक में जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर राज किया था तब यह एक गरीब कृषि आधारित देश था। उस समय तालिबान का पूरा फोकस इस्लाम की अपनी विचारधारा को थोपने पर लगा हुआ था, बाकी चीजों से तालिबान का कोई मतलब ही नहीं रहा। बन्दूक के बल पर अफगानी लोगों को रूढ़िवादी इस्लामी रंगढंग में ढालने में कोई कसार नहीं छोड़ी गयी थी। लेकिन इस बार तालिबान को एक कहीं ज्यादा विकसित अफगानिस्तान मिला है। यहाँ के समाज में शिक्षित मिडिल क्लास भी पनप चुका है। लेकिन तालिबान को एक ऐसी अर्थव्यवस्था भी मिली है जो युद्ध और भ्रष्टाचार के चलते बुरी तरह पिटी हुई है। सरकारी तंत्र में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार घुसा हुआ है। तालिबान का कंट्रोल होने के पहले ही अफगानिस्तान में बेरोजगारी दर 30 फीसदी से ज्यादा थी। आलम यह है कि 50 फीसदी अफगानी जनता गरीबी के दलदल में फंसी हुई है। अमेरिका के 20 साल के कंट्रोल और खरबों डालर की सहायता के बावजूद अफगानिस्तान की माली हालत और लोगों की गरीबी दूर नहीं हो सकी है।

तालिबान पर यकीन नहीं

तालिबान का कहना है कि वह 1996 की तुलना में बहुत बदल चुका है । लेकिन अफगानी लोगों को इस पर यकीन नहीं है। लोगों में डर समाया हुआ है कि तालिबान फिर वही पुराना चेहरा दिखाएगा। यही वजह है कि तालिबान के आश्वासन के बावजूद लोग काम पर नहीं लौट रहे हैं । लाखों लोग अफगानिस्तान से भाग निकलने की फिराक में हैं। ऐसे में तालिबान के सामने बड़ी चुनौती अफगानी लोगों को साथ ले कर चलने की है। शासन-प्रशासन चलाने के लिए लोगों की सहभागिता जरूरी है। तालिबान इसे कैसे करेगा ये देखने वाली बात होगी।

नहीं बढ़ सकेंगे विकास कार्य 

अफगानिस्तान सरकार का अरबों डालर अमेरिका के फ़ेडरल रिज़र्व में रखा हुआ जो अमेरिका की अनुमति के बगैर तालिबान के हाथ नहीं लग पायेगा। इसके अलावा अफगानिस्तारन को दी जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय वित्तीाय मदद भी रोक दी गई है। ऐसे में तालिबान सरकार वहां के विकास कार्यों को आगे नहीं बढ़ा सकेगी। तालिबान सरकार को मान्यता न मिलने से इसमें और परेशानी आने वाली है। जब तक तालिबान सरकार को ग्लोबल लेवल पर, खासकर अमेरिका से मान्यता नहीं मिल जाती तब तक उसे फंड्स नहीं मिलने वाले हैं सो तालिबान के लिए सबसे बड़ी चुनौती फिलहाल उसकी भावी सरकार के लिए वैश्विक स्तंर पर समर्थन जुटाना है। इसके लिए वो पूरा प्रयास भी कर रहा है, लेकिन इसमें अभी तक उसको कोई कामयाबी नहीं मिली है। सरकार को मान्यता मिलने बाद ही विभिन्नय देश अफगानिस्ताकन में किसी तरह के निवेश के बारे में अपना कदम आगे बढ़ाएंगे। चूँकि अफगानिस्तान के शांति समझौते में शर्त ये है कि अफगानिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल आतंकी या चरमपंथी हरकतों के लिए नहीं किया जाएगा, सो तालिबान के लिए एक बड़ी चुनौती आइएस, अल कायदा समेत दूसरे आतंकी गुटों पर लगाम लगाना भी हैं। भले ही चीन और रूस अमेरिका से खुन्नस के चलते तालिबान के करीब जा रहे हैं । लेकिन ये दोनों देश भी आतंकी मसले पर कोई ढील नहीं देंगे।

तालिबान के लिए इस बार नई चीज यह भी है कि अफगानी लोग कई जगहों पर उसके खिलाफ सड़कों पर उतरे हैं। देश में सही मायने में कानून व्यावस्थाकरना तालिबान के लिए बड़ी चुनौती है। तालिबान का क्रूर चेहरा पूरी दुनिया ने देखा है। अपने दूसरे शासन में वो कह चुका है कि महिलाओं को इस बार पहले के मुकाबले अधिक आजादी मिलेगी। हालांकि अब तक ऐसा कुछ होता नहीं दिखाई दिया है। इस बारे में वो अपने लड़ाकों और दूसरे गुटों को कैसे कंट्रोल करेगा ये भी बड़ी चुनौती के रूप में सामने आने वाला है। तालिबान का आधार ही शरिया आधारित कठोर शासन चलाना है . इसी के चलते उसे क़तर जैसे कई देशों से संरक्षण और मदद मिलती रही है। बहरहाल, तालिबान को इस बार बहुत कुछ कर के दिखाना है। अगर वह इसमें फेल रहता है तो अफगानिस्तान में गृह युद्ध होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

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