Afghanistan Taliban War: अमेरिका को महंगी पड़ी अफगानिस्तान की सुरक्षा, चुकानी पड़ी बड़ी कीमत

Afghanistan Taliban War: अफगानिस्तान में अमेरिका को अपनी 20 साल की मौजूदगी बहुत महंगी पड़ी है। खर्चे के मामले में भी और प्रतिष्ठा के मामले में भी।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shreya
Update:2021-08-16 15:33 IST
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Afghanistan Taliban War: अफगानिस्तान में अमेरिका (America) को अपनी 20 साल की मौजूदगी बहुत महंगी पड़ी है। खर्चे के मामले में भी और प्रतिष्ठा के मामले में भी। जिस तरह अमेरिका को अपने राजनयिकों और नागरिकों को रातों-रात काबुल से एयरलिफ्ट (Airlift) कराना पड़ा है, वह विएतनाम से अमेरिका की वापसी की याद दिलाता है। तालिबान ने इसे अपनी बहुत बड़ी जीत और अमेरिका की बहुत बड़ी बेइज्जती माना है और उसके जश्न में चीन (China) और रूस (Russia) का साथ है।

बहरहाल, खर्चे की बात करें तो अमेरिका और उसके नागरिकों ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) और ब्राउन यूनिवर्सिटी (Brown University) ने अफगानिस्तान में अमेरिका के खर्चे का आंकलन किया है, चूँकि 2003 से 2011 के बीच अमेरिका ने अफगानिस्तान के साथ साथ ईराक के मोर्चे पर भी युद्ध किया सो बहुत से खर्चे ऐसे हैं जो दोनों लड़ाईयों पर लागू होते हैं।

अफगानिस्तान आर्मी (फोटो साभार- ट्विटर)

अफगानिस्तान युद्ध को फाइनेंस करने में अमेरिका को 2 ट्रिलियन डालर (2 Trillion Dollars) खर्च करने पड़े हैं। इस धन पर अमेरिका को 6.5 ट्रिलियन डालर का ब्याज वर्ष 2050 तक चुकाना पड़ेगा और अंततः इसका बोझा अमेरिकी जनता को ही वहन करना पड़ेगा। युद्ध भले ही ख़त्म हो गया हो लेकिन उससे जुड़े खर्चे बहुत लम्बे समय तक जारी रहेंगे जिसमें हेल्थ केयर, अपंगता, पूर्व सैनिकों के बेनिफिट आदि शामिल है। ये सब खर्च ही करीब 2 ट्रिलियन डालर से ज्यादा का है जो 2048 के बाद ही कम होना शुरू होगा।

इसके अलावा पाकिस्तान ने तालिबान, अलकायदा और आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई में पकिस्तान को जो मदद दी है उसका खर्चा अलग है। कुल मिलाकर तालिबान के खिलाफ अमेरिका ने हर साल 100 अरब डालर से ज्यादा खर्च किये हैं और उसका नतीजा आज सबके सामने है। 

कितनी जानें गईं

अप्रैल 2021 तक अफगानिस्तान में 2448 अमेरिकी सैनिक, 3846 अमेरिकी कांट्रेक्टर, अन्य नाटो देशों के 1144 सैनिक, 66 हजार अफगान सैनिक, 47,245 अफगान नागरिक, 51,191 तालिबानी और अन्य लड़ाके, 444 सहायता कर्मी तथा 72 पत्रकार। 

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सबसे लम्बी लड़ाई

अफगानिस्तान में अमेरिका ने अपने इतिहास की सबसे लम्बी लड़ाई लड़ी है। ये लड़ाई 9/11 के हमलों के बाद शुरू हुई थी और तर्क ये था कि 9/11 के षड्यंत्रकारियों, खासतौर पर ओसामा बिन लादेन (Osama Bin Laden) को तालिबान (Taliban) संरक्षण दे रहा है। अमेरिका ने अक्टूबर 2001 में अफगानिस्तान पर हमला बोला था। अधिकारिक रूप से इसे युद्ध नाम नहीं दिया गया बल्कि 9/11 के षड्यंत्रकारियों के खिलाफ कार्रवाई कहा गया है। 2002 में अमेरिका के 10 हजार सैनिक अफगानिस्तान में थे और इनकी सर्वाधिक संख्या एक लाख 10 हजार 2011 में रही थी।

अमेरिका के अतिरिक्त अन्य नाटो देशों ने दिसंबर 2014 में अफगानिस्तान में जमीनी लड़ाई में भगा लेना बंद कर दिया था और तबसे सिर्फ अफगान सुरक्षा बलों (Afghan Security Forces) की ट्रेनिंग और उनको सहायता प्रदान करने का काम किया जा रहा था। एक ख़ास बात ये रही है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के अलावा करीब 7800 प्राइवेट सुरक्षा सलाहकार और कांट्रेक्टर भी मौजूद रहे। 

अफगान आर्मी जवान (फोटो साभार- ट्विटर)

अफगान की सुरक्षा के लिए यूएस ने खर्च किए 88 अरब डॉलर

अमेरिका ने अफगानिस्तान में सैनिकों और सैन्य उपकरणों पर भारी निवेश किया है। जुलाई 2021 की रिपोर्ट में बताया गया है कि अफगानिस्तान की सुरक्षा के लिए अमेरिका ने 88 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किये हैं। ये रकम अफगान सैनिकों के वेतन और उपकरणों के लिए दी गई। 

अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों में सेना, नेशनल पुलिस और स्पेशल फोर्स शामिल हैं। इनकी ट्रेनिंग, साजोसामान, वेतन और रखरखाव पर 83 अरब डॉलर खर्च हुए हैं। इसके अलावा 5.8 अरब डॉलर सरकारी संसाधनों और विकास पर खर्च हुए हैं। इसका मकसद जनता का समर्थन हासिल करना और तालिबान की धार को कुंद करना था।

2022 के लिए अमेरिका 3.3 अरब डॉलर का आवंटन किया है। इसमें से 1 अरब डॉलर अफगान वायुसेना और स्पेशलफोर्स पर, 1 अरब डॉलर पेट्रोल डीजल, गोला बारूद और स्पेयर पार्ट्स पर तथा 70 करोड़ डॉलर अफगान सैनिकों के वेतन पर खर्च होंगे। अमेरिका और अन्य नाटो देशों का कमिटमेंट है कि वे अफगान सेना और सुरक्षाबलों को 2024 तक हर साल 4 अरब डॉलर देते रहेंगे। कुल मिला कर अफगान सरकार के बजट का 80 फीसदी पैसा अमेरिका और नाटो के अन्य सदस्य देते हैं। हालाँकि अब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन हो गया है सो अमेरिका और नाटो के पहले किये गए वादे और कमिटमेंट अब कोई मायने नहीं रखते हैं। 

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