Drought in Amazon River: कहीं सूखती तो कहीं पिघलती धरती, भारी सूखे में अमेज़न

Drought in Amazon River: प्राकृतिक अल नीनों और मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग के कारण हाल के वर्षो में ब्राजील के अमेजन वर्षा वन क्षेत्रों में अभूतपूर्व सूखा पड़ा है। अमेजन नदी गंभीर सूखे का सामना कर रही है , नदी का जल स्तर , असाधारण रूप से नीचे चला गया है।

Written By :  Nirala Tripathi
Update:2023-10-17 21:47 IST

कहीं सूखती तो कहीं पिघलती धरती, भारी सूखे में अमेज़न: Photo- Social Media

Drought in Amazon River: प्राकृतिक अल नीनों और मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग के कारण हाल के वर्षो में ब्राजील के अमेजन वर्षा वन क्षेत्रों में अभूतपूर्व सूखा पड़ा है। अमेजन नदी गंभीर सूखे का सामना कर रही है , नदी का जल स्तर , असाधारण रूप से नीचे चला गया है। वन्य जीवों के साथ ही साथ स्थानीय निवासी भी इस सूखे से पीड़ित है।

अमेज़न नदी के पानी में लाखों मरी मछलियां बिखरी पड़ी हैं, नदी की गहराई कम होने और पानी का तापमान बढ़ने के कारण भारी संख्या में मछलियां व जलीय प्राणी मर रहे है , जिसके कारण स्थानीय मछुआरों के सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है तो वहीं नदी का पानी भी भयंकर रूप से प्रदूषित हो गया है।

अमेज़न के लाखों स्थानीय निवासी इन दिनों पानी के व्यापक संकट से गुज़र रहे है , जिसके चलते ब्राज़ील सरकार ने हाल ही में एक टास्क फोर्स का गठन किया है , जो उन स्थानीय निवासियों की मदद करेगी जो मुख्यत अमेजन की नदियों पर ही निर्भर है , इन नदियों का इस्तेमाल मुख्य रूप से स्थानीय निवासियों द्वारा अपने खाद्य व कृषि संबंधी जरूरतों के लिए किया जाता है।

सूखे की गंभीरता को देखते हुए ब्राज़ील सरकार ने अमेज़न नदी के प्रवाह को बनाए रखने के लिए, कई सौ यूरो की एक व्यापक योजना की शुरुआत भी की है, जो नदी के तट की खुदाई करेंगी ।

सिर्फ सूखा और बढ़ता तापमान ही नहीं बल्कि वहां के वर्षा वनों में लगातार बढ़ती आग के कारण ब्राज़ील की अमेज़न और उसके आस पास की मानव बस्तियां मुख्य भूमि से कट गई हैं। कई बार तो जंगल में लगी आग बढ़ते हुए मानव बस्तियों तक पहुंच जाती है। स्थानीय निवासियों के लिए पीने का पानी और राहत सामग्री हेलीकाप्टर द्वारा पहुचाई जा रही है , वहीं सरकार द्वारा यह भी माना जा रहा है कि इस भयानक सूखे के कारण साल के अंत तक लगभग 5 लाख़ स्थानीय निवासियों के प्रभावित होने की संभावना है।

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पिघलता अंटार्कटिका

वहीं नासा द्वारा लिए गए सैटेलाइट चित्र दिखा रहे हैं कि अंटार्कटिका के तटीय ग्लेशियर अनुमान से ज्यादा तेज गति से पिघल रहे हैं, इससे दुनिया भर में समुद्र के जल स्तर के तेजी से बढ़ने को लेकर चिंताएं बढ़ गई है। आर्कटिक में बर्फ का विस्तार नाटकीय रूप से कम हो रहा है। ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं, अनुमान है कि आर्कटिक की सतह में तेल और गैस जैसे प्राकृतिक संसाधनों का बहुत बड़ा भंडार दबा है। हर कोई पिघलते आर्कटिक में अपना हिस्सा चाहता है। एक ओर आर्कटिक पर दावेदारी की यह होड़ है, वहीं दूसरी ओर आर्कटिक की पिघलती बर्फ से सिर्फ यहां रहने वाले जीवों और समुदायों का ही नहीं, पूरी दुनिया का भविष्य खतरे में है।

नए अध्ययन से पता चला है कि प्रकृति को इस टूटती हुई बर्फ को फिर से बनाने में जितना समय लगेगा ये ग्लेशियर उससे भी तेज गति से पिघल रहे हैं। बर्फ के पिघलने को लेकर जो पुराने अनुमान थे, पिछले 25 सालों में उससे दोगुना नुकसान हो चुका है।

1997 से अभी तक अंटार्कटिका की बर्फ के घन को 12 ट्रिलियन 12 हजार अरब टन कम कर दिया है। यह अभी तक के अनुमान से दोगुना ज्यादा है। पिछले 25 सालों में करीब 37,000 किलोमीटर वर्ग बर्फ खत्म हो चुकी है। यह लगभग स्विट्जरलैंड के क्षेत्रफल के बराबर है।

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क्या कहती है रिपोर्ट?

नासा के हालिया अध्ययन में बताया गया है "अंटार्कटिका के किनारे टूट रहे हैं। जब बर्फ कम और कमजोर होती है तब इस महाद्वीप के विशाल ग्लेशियर वैश्विक समुद्री सतह के बढ़ने की गति बढ़ा देते हैं।" उन्होंने बताया कि इसके परिणाम बहुत बुरे हो सकते है। रिपोर्ट ये भी कहती है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को अगर रोका नहीं गया तो इससे "अगली कुछ सदियों में समुद्र का स्तर कई मीटर बढ़ जाने का" खतरा बढ़ता रहेगा।

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