हक्कानी : अमेरिका का दोस्त जो बन गया दुश्मन

Update:2018-09-10 15:20 IST
हक्कानी : अमेरिका का दोस्त जो बन गया दुश्मन

काबुल। हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान-पाकिस्तान के सबसे खतरनाक आतंकवादी गुटों में से एक है। इसे जलालुद्दीन हक्कानी ने बनाया और पाला-पोसा। जब सोवियत संघ अफगानिस्तान पर प्रभुत्व स्थापित करने के दौर में था तब जलालुद्दीन हक्कानी एक अदना सा लड़ाका था जो सोवियत संघ के खिलाफ लड़ रहा था। बाद में वह अमेरिका का हाथ पकड़ कर ऊपर चढ़ा। जलालुद्दीन हक्कानी के नेतृत्व में लड़ाके कभी अमेरिका की शह पा कर सोवियत संघ के खिलाफ लड़ रहे थे। बाद में जलालुद्दीन ने तालिबान के साथ हाथ मिला लिया और 1990 में जब तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता में आने में कामयाब हो गए तब हक्कानी मंत्री भी बना। लेकिन जब अमेरिका ने अपनी मदद का बदला पाने की कोशिश की तो उसने अमेरिका से अपना पल्ला झाड़ लिया और उसके खिलाफ जंग छेड़ दी।

कहा जाता है कि जलालुद्दीन हक्कानी ने बिन लादेन को भी लंबे वक्त तक पनाह दी थी। कभी इतने शक्तिशाली नेटवर्क के आका रहे जलालुद्दीन हक्कानी की मौत की खबरें आई हैं। वैसे उसकी मौत की खबरें 2015 में भी आई थीं।

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1979 से फरवरी, 1989 के बीच दस सालों तक चले सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान सीआईए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के साथ काम कर रही थी ताकि वह अफगान विद्रोही लड़ाकों के साथ संपर्क में रह सकें। इन लड़ाकों को मुजाहिदीन कहा जाता था। इन मुजाहिदों ने छोटे-छोटे गुरिल्ला ग्रुपों में बांटकर अफगानिस्तान के करीब 80 फीसदी हिस्से में युद्ध छेड़ दिया था। इन लड़ाकों को अमेरिका, पाकिस्तान और अरब देशों से भारी मदद मिली। जलालुद्दीन इन लड़ाकों का सरगना था।

जलालुद्दीन हक्कानी का उभार इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण हस्ती के तौर पर हुआ। वह उस दौरान अमेरिका और पाकिस्तान का सबसे खास हथियार था। बताया जाता है कि जलालुद्दीन को व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया गया था जहां वह तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से मिला भी था। सोवियत-अफगान युद्ध के बाद अमेरिकी पैसे आने बंद हुए तो जलालुद्दीन ने ऐसे विदेशी लड़ाकों, आतंकियों और नेताओं के साथ हाथ मिला लिए जिनके पास पैसे थे। इनमें ओसामा-बिन-लादेन भी शामिल था। 1995 में जलालुद्दीन ने तालिबान आंदोलन के साथ हाथ मिला लिए।

अक्टूबर 2001 में हक्कानी को तालिबान का मिलिट्री कमांडर बना दिया गया। कहा जाता है कि ओसामा बिन लादेन को लंबे समय तक छिपाने में भी उसका हाथ था। अमेरिका ने तालिबान से जलालुद्दीन को दूर ले जाने का प्रयास भी किया था लेकिन जलालुद्दीन ने अमेरिका का ऑफर उन्हें 'धोखेबाज घुसपैठिया कहते हुए ठुकरा दिया। जलालुद्दीन का कहना था कि यह उसका कर्तव्य है कि वह अमेरीकियों को वैसे ही रोके जैसे वह एक दशक पहले सोवियत को रोक रहा था।

2001 में अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान पर की गई चढ़ाई के बाद तालिबान को गद्दी से हटा दिया गया। ऐसे में हक्कानी नेटवर्क के नेताओं ने भागकर पाकिस्तान के कबायली इलाकों में शरण ली। कहा जाता है इसमें अफगानिस्तान सरकार से भी उसे मदद मिली। इस नेटवर्क को हाई-प्रोफाइल अटैक कराने के चलते जाना जाता है।

सितंबर, 2011 में दिए एक इंटरव्यू में जलालुद्दीन के बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी ने अपने नेटवर्क में आतंकियों की संख्या 10,000 बताई थी। जलालुद्दीन हक्कानी के बारे में बताया जाता है कि वह दस साल से लकवे से पीडि़त था। अब नेटवर्क का कर्ता-धर्ता उसका बेटा सिराजुद्दीन है।

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