खतरे में अमेरिका! सबसे विवादित चुनाव से मचा बवाल, कुछ भी हो सकता है आगे

अमेरिका में नए प्रेसिडेंट का शपथ ग्रहण 20 जनवरी को होता है सो ट्रम्प के पास 20 तक का समय है और जो हालात हैं उनमें कुछ भी हो सकता है।

Update: 2021-01-07 05:26 GMT
खतरे में अमेरिका! सबसे विवादित चुनाव से मचा बवाल, कुछ भी हो सकता है आगे (PC: social media)

लखनऊ: दुनिया अमेरिका के इतिहास का सबसे विवादास्पद चुनाव देख रही है। प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प को इस बार की चुनावी प्रक्रिया पर रत्ती भर भरोसा नहीं है और वे डेमोक्रेट्स पर व्यापक फ्रॉड और धांधली के आरोप लगातार लगा रहे हैं। ट्रम्प के समर्थकों को भी यही यकीन है कि उनके विजयी नेता को धोखेबाजी से हारा हुआ घोषित किया गया है। अब जबकि सीनेट में प्रेसिडेंट चुनने की प्रक्रिया चल रही है तब हजारों ट्रम्प समर्थकों का वाशिंगटन डीसी में प्रदर्शन और कैपिटल हिल यानी संसद भवन पर हल्ला बोल ने स्थितियां बहुत बिगाड़ दी हैं। बहुत से लोगों का आंकलन है कि ट्रम्प ईरान पर हमला या अमेरिका में मिलिट्री रूल जैसे कदम उठा सकते हैं।

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अमेरिका में नए प्रेसिडेंट का शपथ ग्रहण 20 जनवरी को होता है सो ट्रम्प के पास 20 तक का समय है और जो हालात हैं उनमें कुछ भी हो सकता है। ट्रम्प के समर्थकों की संख्या बहुत बड़ी है और ये बहुत उग्र होते जा रहे हैं। दिक्कत ये भी है कि जो बिडेन और डेमोक्रेट्स ने चुनावी धांधली के आरोपों पर पूरी तरह चुल्ली साध रखी है और किसी भी तरह की स्वतंत्र जांच की मांग नहीं की है। ट्रम्प को झूठा ठहराने में मीडिया और सोशल मीडिया ही सबसे आगे है। ट्रम्प ने सीधे सीधे ट्विटर पर गंभीर आरोप लगाये हैं और सोशल मीडिया कंपनियों को मिली संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा को हटाने की मांग की है। उन्होंने कहा भी है कि वो ये सुरक्षा हटा कर मानेंगे।

क्या हुआ इस चुनाव में

दरअसल, इस बार के चुनाव कोरोना के कारण अलग तरीके से हुए जिसमें पोस्टल बैलट और अब्सेंटी बैलट का बहुत व्यापक स्तर पर इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा वोटिंग मशीनों की गड़बड़ी के आरोप लगे हैं।

पोस्टल बैलट का व्यापक इस्तेमाल : अमेरिका में पोस्टल बैलट का चलन है जिसमें लोग डाक के जरिये अपना मतदान करते हैं। ये व्यवस्था इस बार बड़े पैमाने पर लागू की गयी हालांकि ट्रम्प ने पहले ही कहा था कि पोस्टल बैलट से धांधली की आशंका बहुत बढ़ जायेगी। लेकिन डेमोक्रेट्स इसकी मांग पर अड़े रहे। चूँकि अमेरिका में राज्यों को बहुत ऑटोनोमी मिली हुई है सो राज्यों की ही चली और पोस्टल बैलट का इस्तेमाल किया गया।

पोस्टल बैलट में धांधली के आरोप लगे हैं कि अंतिम तिथि के बाद रिसीव हुए बैलट भी गिने गए, अवैध मतपत्रों की भी गिनती कर ली गयी आदि। कोरोना के कारण इस बार पोस्टल बैलट का बहुत बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है और इसके लिए डेमोक्रेटिक पार्टी ने पूरी ताकत लगा दी। बहुत से राज्यों को पोस्टल बैलट गिनने का कोई अनुभव नहीं है और न कोई तंत्र है सो लाखों पोस्टल बैलट की गिनती करने में कई दिन लग सकते हैं।

अब्सेंटी बैलट :

अमेरिका में हर राज्य के नागरिक अपने सीनेटर चुनते हैं। अगर एक राज्य का नागरिक किसी अन्य राज्य में है तो वो अपने मूल राज्य के लिए वोटिंग कर सकता है। इस सिस्टम को अब्सेंटी वोटिंग कहा जाता है। इस बार ऐसे मतदान का प्रतिशत बहुत अधिक रहा। ट्रम्प का आरोप है कि मृत लोगों के वोट डाले गए हैं।

पहचान पत्र :

अमेरिका ऐसा देश है जहाँ लोगों को वोटर आईडी नहीं दिया जाता। चुनाव आने पर लोग अपना नाम रजिस्टर करते हैं और वोट डाल देते हैं। असल में अमेरिका का चुनाव पूरी तरह विश्वास और जुबान पर होता आया है। मतलब ये कि अमेरिकी लोगों ने जो कह दिया वही सच मान लिया जाता है। अब जमाना जुबान का तो रहा नहीं है सो बड़ी संख्या में उन लोगों ने अपना नाम रजिस्टर करवा के वोट दे दिया जो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे हैं यानी अमेरिका के नागरिक ही नहीं हैं।

अलग है पूरा देश

अमेरिका में तमाम ऐसी चीजें हैं जो बाकी दुनिया से अलग हैं। इनमें से सबसे बड़ी चीज है चुनाव का सिस्टम। अमेरिका में शासन की राष्ट्रपति प्रणाली चलती है जबकि भारत या यूनाइटेड किंगडम में संसदीय प्रणाली है। अमेरिका में करोड़ों नागरिक किसी राजनीतिक दल नहीं बल्कि किसी एक व्यक्ति के लिए वोट डालते हैं।

america-elections (PC: social media)

एक मतपत्र-कई चुनाव

अमेरिका में नागरिक वोटिंग के समय सिर्फ राष्ट्रपति ही नहीं बल्कि अमेरिकी सीनेट और राज्य की सीनेट के लिए भी प्रतिनिधियों को चुनते हैं। इसकी वजह से अंतिम नतीजा जटिल भी हो सकता है। यूनाइटेड किंगडम और भारत में चुनाव में किसी रेस या दौड़ सरीखा सिस्टम है। रेस में जिसने पहले लाइन क्रॉस के वो जीत जाता है। इन देशों में अलग अलग निर्वाचन क्षेत्र होते हैं जिनका प्रतिनिधित्व सांसद करते हैं। जिस प्रत्याशी को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं वो सांसद बन जाता है जिस पार्टी के सबसे ज्यादा सांसद होते हैं वो अपना नेता चुनकर उसे प्रधानमंत्री बना देते हैं। लेकिन अमेरिका में प्रेसिडेंट को इलेक्टोरल कालेज सिस्टम चुनता है। वहां मतदाता किसी प्रत्याशी की बजे अपने राज्य के एलेक्टर को वोट देते हैं।

हर राज्य के अलग वोट

अमेरिका के एलेक्टर कालेज में हर राज्य के एक निश्चित संख्या में वोट होते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज में 538 वोट होते हैं सो राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशी के लिए राज्यों को जीतना सबसे महत्वपूर्ण होता है। प्रत्याशियों के लिए 538 में से आधे वोट जीतना जरूरी है तभी वह प्रेसिडेंट बन सकेंगे। यानी विजेता प्रत्याशी को 270 या इससे ज्यादा इलेक्टोरल कालेज वोट पाना आवश्यक है। 2016 में ऐसा ही हुआ था जब डेमोक्रेट प्रत्याशी हिलरी क्लिंटन ने ट्रम्प के मुकाबले 30 लाख ज्यादा पॉपुलर वोट हासिल किये लेकिन इलेक्टोरल कालेज की दौड़ में वे ट्रम्प से हार गयीं। जब तक ५३८ इलेक्टोरल कालेज वोटों की गिनती पूरी नहीं हो जाती तब तक विजेता का नाम घोषित नहीं किया जाता है।

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अलग अलग कीमत

अमेरिका में हर राज्य में इलेक्टोरल वोट की संख्या अलग अलग होती है। जिन राज्यों में कम जनसंख्या है वहां एक लाख वोटों पर एक एलेक्टर हो सकता है लेकिन कहीं दस लाख पर एक एलेक्टर मुमकिन है सो इसका मतलब ये है कि प्रेसिडेंट चुनने में हर नागरिक का वोट समान वैल्यू नहीं रखता है।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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