Crypto Currency: मुसीबत में फंसे अफगानियों के लिए सहारा बनी क्रिप्टो करेंसी
क्रिप्टो करेंसी अब पिटी हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए उम्मीद की किरण बन रही हैं।
नई दिल्ली: क्रिप्टो करेंसी अब पिटी हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए उम्मीद की किरण बन रही हैं। चूंकि क्रिप्टो करेंसी किसी सरकार या किसी बैंक से सम्बद्ध नहीं होती है सो इसे किसी देश द्वारा अपने हिसाब से रेगुलेट नहीं किया जा सकता। क्रिप्टो करेंसी जनता के हाथ में एक मजबूत औजार की तरह होती जा रही है। इसका एक उदाहरण अफगानिस्तान में सामने आया है।
तालिबान के कंट्रोल के बाद अफगानिस्तान के लोग क्रिप्टो करेंसी को एक मजबूत सहारा मान कर अपना रहे हैं। तालिबान ने जबसे देश को अपने कब्जे में लिया है तबसे अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता ने लोगों को क्रिप्टो करेंसी की ओर जाने को मजबूर कर दिया है।
क्रिप्टों करेंसी में ऊंची छलांग
अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की मौजूदगी के आखिरी कुछ महीनों में वहां क्रिप्टो करेंसी का बूम शुरू हो गया था। क्रिप्टो करेंसी का इस्तेमाल इतना ज्यादा होने लगा कि 154 देशों के ग्लोबल क्रिप्टो इंडेक्स में अफगानिस्तान अगस्त महीने में टॉप 20 देशों में आ गया। टॉप 20 देशों में अमेरिका, चीन और रूस जैसे देश हैं। अफगानिस्तान पिछले साल इसी इंडेक्स में सबसे नीचे के देशों में शामिल था। ग्लोबल क्रिप्टो इंडेक्स में रैंकिंग इस बात से तय होती है कि किसी देश में क्रिप्टो की ट्रेडिंग का वॉल्यूम कितना है। इसमें उस देश की जनसंख्या की क्रय शक्ति को भी ध्यान में रखा जाता है।
अफगानिस्तान के बिटकॉइन व्यापारियों का कहना है कि अमेरिका की वापसी की योजना के बीच जैसे जैसे तालिबान का कंट्रोल बढ़ता गया, वैसे वैसे अफगान लोगों ने अपनी बचत क्रिप्टो में ट्रांसफर कर दी क्योंकि लोगों को लोकल करेंसी और बैंकों पर भरोसा नहीं रह गया था।
बिटकॉइन बेच कर काम चलाया
जुलाई-अगस्त में जब काबुल पर तालिबान का कब्जा लगभग तय हो गया था। तब अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक ने अपने खजाने में रखी रिज़र्व नकदी निकाल ली। बैंकों ने फंड्स निकालने पर कई पाबंदियां लगा दीं। दूसरी तरफ अमेरिका ने डॉलर की सप्लाई रोक दी। इसके बाद देश की आधिकारिक मुद्रा 'अफगानी' की वैल्यू तेजी से गिरने लगी।
जब काबुल पर तालिबान का नियंत्रण हो गया तो पश्चिमी वित्तीय संस्थानों ने लेनदेन रोक दिए। विदेशी मदद बन्द हो गई। बैंकों में ताले पड़ गए। केंद्रीय बैंक के गवर्नर तक देश छोड़ के भाग गए। इसका नतीजा यह हुआ कि आम लोगों में अफरातफरी मच गई।
ऐसे में सिर्फ एक चीज बदस्तूर चालू थी- लोकल बिटकॉइन एक्सचेंज। इन्हीं एक्सचेंजों के जरिये लोगों को विदेशों में रह रहे परिवारीजनों से पैसा मिलता रहा। लोग डिजिटल करेंसी के व्यापारियों के पास जाते। अपने बिटकॉइन को बेच कर उसके बदले में नकदी हासिल कर लेते थे। और खाद्य पदार्थ व रोजमर्रा की चीजें खरीद पाते थे। यही स्थिति अब भी बरकरार है।
अर्थव्यवस्था के लिए उम्मीद
एक्सपर्ट्स का कहना है कि क्रिप्टो के प्रति लोगों के रुख से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए कुछ उम्मीद बनती दिखती है। अफगानिस्तान के लोग समझ रहे हैं कि अफगानी मुद्रा का कोई भविष्य फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। बाजार में नकदी की कमी बढ़ती जा रही है। ऐसे में लोग क्रिप्टो करेंसी खरीद कर जमा कर रहे हैं। लेनदेन भी क्रिप्टो करेंसी में किया जा रहा है।
क्रिप्टो करेंसी की बढ़ोतरी से पश्चिमी देशों में चिंता बढ़ी
अफगानिस्तान में क्रिप्टोकरेंसी के बढ़ते चलन से पश्चिमी देशों के लिए चिंता भी बढ़ी है। चिंता इस बात की कि अगर तालिबान अपनी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के एक हिस्से के तौर पर क्रिप्टोकरेंसी को अपनाता है तो वह इसके जरिये पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को बाईपास कर सकेगा। पश्चिमी देश आर्थिक प्रतिबंधों को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
अगर तालिबान इसी हथियार की काट क्रिप्टो करेंसी से करने लगेगा तो एक बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। फिलहाल तालिबान ने क्रिप्टो करेंसी पर अपना आधिकारिक रुख प्रगट नहीं किया है।
अब संभावना है कि तालिबान क्रिप्टो करेंसी को स्वीकार कर लेगा। इससे उसको अपने मददगारों से फंड्स मिलने में आसानी रहेगी और ड्रग्स जैसे अवैध धंधे भी अंजाम दिए जा सकेंगे। पश्चिमी देश क्रिप्टो की इस समस्या से कैसे निपटेंगे, यह देखने वाली बात होगी।