Corona Effect on Election: कोरोना काल में चुनावी रैलियों का आखिर क्या है विकल्प? जानें दुनिया ने अपनाए थे क्या उपाय?
आगामी महीनों में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जिसे लेकर चुनाव आयोग राज्य के दौरे पर हैं। वो विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से मिल रहे हैं तथा स्थितियों का जायजा भी ले रहे हैं।
Corona Omicron Effect on Election : आगामी महीनों में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जिसे लेकर चुनाव आयोग (Election Commission) राज्य के दौरे पर हैं। वो विभिन्न राजनीतिक दलों (Political parties) के नेताओं से मिल रहे हैं तथा स्थितियों का जायजा भी ले रहे हैं। लेकिन, इन तैयारियों के बीच चुनाव आयोग की सबसे बड़ी चुनौती है कि कोरोना के देश में बढ़ते मामलों के बीच सफलतापूर्वक चुनाव कराना। वहीं, भारत में ताजा आंकड़ों को देखें तो कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन (Omicron Variant) के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। यह अब तक 1,000 के पार जा चुका है। तो ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है, कि आखिर चुनाव कराए कैसे जाएं?
गौरतलब है, कि दुनिया के कई देशों में एक बार फिर कोरोना ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। दुनिया में कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन (Omicron Variant) के मामले जिस तेजी से लगातार बढ़ रहे हैं, उस वजह दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्ष अपने विदेशी दौरों को भी रद्द कर रहे हैं। इस कतार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी हैं जिन्होंने हाल में ही अपना UAE दौरा रद्द किया है। बावजूद इसके जो चिंता का सबब है वो यह कि देश में चुनावी रैलियों पर कोई रोक लगता नहीं दिख रहा है।
...तो फिर नेताजी की रैली ऑनलाइन क्यों नहीं?
अब भारत जैसे देश के लिए ये सवाल उठना लाजमी है, कि यहां अगर चुनावी रैलियों के जरिए प्रचार(Election Campaign) न किए जाएं तो उपाय क्या है। लेकिन, ऐसा बिल्कुल नहीं है कि चुनाव प्रचार का एकमात्र तरीका रैलियां ही हैं। एक तरफ जहां बड़ी-बड़ी रैलियां, ज्यादा भीड़ कोरोना काल में देखने को मिल रहे हैं तो दूसरी तरफ बहुत कुछ ऑनलाइन भी तो हो रहा है। जैसे- बच्चों की पढ़ाई, दफ्तर का काम या ऑनलाइन शॉपिंग या खाना आदि मंगाना। ऐसे में मन में सवाल उठता है कि क्या नेताजी की रैली ऑनलाइन नहीं हो सकती ? तो चलिए आज हम इसी मुद्दे पर बात करें। जानें कि विदेशों में कोरोना काल में चुनाव होते कैसे हैं।
दुनिया में ऐसे भी हुए हैं चुनाव
क्या आपको पता है कि कोरोना काल में भी पूरी दुनिया में चुनाव हुए हैं। याद कीजिए अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव। या फिर सिंगापुर में हुए चुनाव। भारत अकेला ऐसा देश नहीं है, जहां पिछले साल देश में कोरोना के प्रवेश के बाद चुनाव हुए। अमेरिका तो दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है या सिंगापुर जो सबसे छोटा लोकतंत्र है। इन देशों में भी कोरोना को लेकर कई पाबंदियां रहीं, मगर चुनाव तो हुए। प्रचार अभियान भी हुआ। तो वही उपाय भारत में क्यों नहीं।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का सबक सामने है
जैसा कि अभी हमने कहा, अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है। लेकिन कोरोना काल में यहां सम्पन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव सबसे ताजा उदाहरण भी है। याद कीजिये उस दौर को जब अमेरिका में साल 2020 में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे। तब अमेरिका कोरोना के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था। वहां कोविड को लेकर स्थिति बहुत खराब थी। इन चुनावों में एक तरफ तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) भारी भीड़ के बीच रैलियां कर रहे थे। तो वहीं, उनके टक्कर में खड़े जो बाइडेन (Joe Biden) कई छोटी-छोटी रैलियां कर रहे थे। वो तो फोन और सोशल मीडिया के जरिए भी कैंपेन (Election Commission) कर रहे थे। उसके बाद का नतीजा आपके सामने है। जो बाइडेन ने कोरोना प्रोटोकॉल्स (corona protocol) के तहत प्रचार किया और जीत का सेहरा भी उन्हीं के सिर बंधा।
जॉर्डन में तो रैलियों में महज 20 लोगों को अनुमति थी
इसके अलावा, दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां कोविड प्रोटोकॉल्स (corona protocol) के तहत चुनाव हुए हैं। इन देशों में सिंगापुर, मलेशिया, क्रोएशिया, रोमानिया, जॉर्डन आदि रहे हैं। इन देशों ने चुनाव प्रचार (Election Commission) पर कई तरह के नियंत्रण लगाए गए थे। जॉर्डन की बात करें तो यहां नवंबर 2020 में बड़ी रैलियों पर रोक लगा दी गई थी। क्या आपको पता है तब जॉर्डन में रैलियों में महज 20 लोगों की संख्या निर्धारित की गई थी। मगर, कुछ ऐसे भी देश रहे, जिन्होंने कोरोना काल में चुनाव करवाए और किसी भी तरह की पाबंदी का पालन अपने लोगों से नहीं करवाया। ऐसे देशों में कोरोना बेहद तेजी से फैला। आख़िरकार, वहां चुनाव बाद कोरोना विस्फोट हुआ।
सतर्कता गई, कोरोना विस्फोट हुआ
वहीं, पोलैंड जैसे देश भी रहे जहां दूसरे चरण के मतदान में कोरोना प्रोटोकॉल्स का बिलकुल भी ख्याल नहीं रखा गया। इसके बाद देश में क्या हुआ किसी से छुपा नहीं है। चुनाव बाद पोलैंड में कोरोना मामले लगातार बढ़ते ही चले गए। एक अन्य राष्ट्र रहा मलेशिया। मलेशिया में पिछले साल यानी अक्टूबर 2020 में चुनाव हुए। चुवा के ठीक बाद कोरोना के मामले ऐसे बढे कि देश के नाक में दम हो गया। यहां भी कोरोना विस्फोट के लिए चुनावी रैलियों को जिम्मेदार बताया गया। इसी प्रकार, ब्राजील में भी नवंबर 2020 में चुनाव हुए थे, तो 20 उम्मीदवारों की कोरोना से मौत हो गई थी।
क्या यही एकमात्र विकल्प होगा?
अगर आप दुनिया के इस पूरे चुनावी घटनाक्रम पर नजर डालें तो साफ हो जाता है, कि अगर प्रचंड कोरोना काल में चुनाव प्रचार हुए हैं तो फिर हालत विस्फोटक हुए हैं। कोरोना के मामले बढ़ेंगे। इसलिए भारतीय परिपेक्ष्य में चुनावी दलों को जल्द ही बड़ी रैलियों को लेकर कोई बड़ा फैसला करना चाहिए। अब सवाल फिर उठता है कि आखिर इसका तरीका क्या है? विशेषज्ञ की मानें या ऊपर दिए उदाहरण को देखें वर्चुअल रैली ही एक मात्र विकल्प बचता है।
बीजेपी वर्चुअल रैली के लिए तैयार
बता दें, कि अगर भारत में वर्चुअल रैली की बात की जाए तो इसमें बीजेपी बाजी मार ले जाएगी। क्योंकि, वह साल 2014 से ही वर्चुअल रैली पर जोर देती आ रही है। देश की तमाम पार्टियां इस मामले में बीजेपी से काफी पीछे है। कांग्रेस पार्टी भी। इस बारे में बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है, कि 'वर्चुअल रैली के लिए बीजेपी तैयार है। हमने पश्चिम बंगाल चुनाव में भी वर्चुअल रैली की थी। कोविड के दौरान जब दुनिया की सभी राजनीतिक पार्टियां हाइबरनेशन में थी उस समय भी BJP के कार्यकर्ता और पार्टी के सभी लोग वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे थे।'