World News : सीरिया से अब वापस घर लौटना नहीं चाहते लड़ाके

Update: 2019-03-08 07:54 GMT
World News : सीरिया से अब वापस घर लौटना नहीं चाहते लड़ाके

सीरिया। आईएसआईएस के बढ़ते प्रभाव को कुचलने के लिए दुनिया भर से हजारों विदेशी सीरिया आए थे। इनमें जहां काफी लोग जिहाद के उद्देश्य से सीरिया आ रहे थे वहीं काफी लोग ऐसे भी थे जो सिर्फ एडवेंचर के कारण युद्ध में भाग लेना चाहते थे। ऐसे लोगों में पूर्व सैनिक, धर्मार्थ कर्मचारी, छात्र, इंजीनियर, फैक्ट्री कामगार वगैरह शामिल थे। यानी समाज के हर तरह के लोग। इन लोगों की तुलना १९३० के दशक के 'इंटरनेशनल ब्रिगेड्सÓ से की जाती है जिसमें विदेशी लड़ाके स्पेन की फासिस्ट सत्ता से संघर्ष करने वहां पहुंचे थे।

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अब आईएसआईएस का स्वघोषित खलीफत लगभग ध्वस्त हो चुका है जिसके बाद से दुनिया भर से आए क्रांतिकारी खाली हो गए हैं। इनमें बहुतों का कहना है कि वह घर लौटने को तैयार नहीं हैं और सीरिया में ही बने रहेंगे क्योंकि यहां अब भी बहुत सा काम होना बाकी है। चूंकि गृह युद्ध अब नए चरण में पहुंच चुका है सो इन लड़ाकों की आगे क्या भूमिका होगी यह तय नहीं है। भले ही यह लड़ाके आईएसआईएस के खिलाफ लड़े हों लेकिन फिर भी अमेरिका, ब्रिटेन आदि कई देश इन्हें आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का जिम्मेदार ठहराते हैं।

ओंटारियो, कनाडा के 30 वर्षीय काइल टाउन कारखाने में काम करते थे लेकिन वहां से सीरिया आ गए क्रांति में भाग लेने के लिए। काइल कुर्द सेना की इन्फैंट्री यूनिट में काम करते हैं। इनका कहना है कि आईएसआईएस से लडऩे के अलावा भी सीरिया में अभी बहुत काम बाकी है। वामपंथी कुर्दिश मिलीशिया पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स (वाईपीजी) में काइल के अलावा हजारों पश्चिमी वालंटियर हैं। वाईपीजी सीरिया में अमेरिका के नेतृत्व वाले एंटी आईएसआईएस गठबंधन का प्रमुख सहयोगी है। इसे अमेरिकी वायुसेना के सहयोग के अलावा भारी मात्रा में सैन्य उपकरण और दो हजार अमेरिकी सैनिकों की मदद मिली हुई है। युद्ध से पहले तो कोई वाईपीजी के बारे में जानता नहीं था लेकिन अब आईएसआईएस की खिलाफत के कारण इसे पश्चिमी देशों में खासी लोकप्रियता हासिल है। वाईपीजी में महिला सैनिक भी हैं जिन्हें वाईपीजे कहा जाता है। इन महिला सैनिकों ने भी फ्रंट लाइन पर मोर्चा संभाला है।

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वाईपीजी का कहना है कि युद्ध की समाप्ति पर वह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करेगा। इस गुट की विचारधारा काफी कुछ माक्र्सवादी है और अपने देश की पूंजीपति व्यवस्था से ऊबे तमाम पश्चिमी लोगों को यह विचारधारा अपील करती है। वाईपीजी विदेशी लोगों को अपने ग्रुप में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करता है और उन्हें उत्तरी सीरिया पहुंचने में पूरी मदद करता है। वाईपीजी को आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों की मदद की दरकार रही है। अपने ग्रुप में पश्चिमी देशोन के नागरिकों के शामिल होने से उसे उन देशों में अच्छी खासी पब्लिसिटी भी मिलती रही है। वाईपीजी के एक प्रवक्ता नूरी महमूद के अनुसार रोजावा (उत्तरी सीरिया) में मुक्त नागरिकता का सिद्धांत चलता है। इसका कहना है कि अगर लोगों को इस क्षेत्र के इतिहास, संस्कृति और फिलासफी में विश्वास है तो इस समुदाय का हिस्सा बनने के लिए उनका स्वागत है। बता दें कि सितम्बर 2018 में इस क्षेत्र को 'डेमोक्रेटिक फेडरेशन ऑफ नार्दर्न सीरिया' घोषित किया गया था। ए उनका स्वागत है। बता दें कि सितम्बर 2018 में इस क्षेत्र को 'डेमोक्रेटिक फेडरेशन ऑफ नार्दर्न सीरिया' घोषित किया गया था।

पिछले कुछ महीनों से आईएसआईएस का दायरा बहुत सीमित हो गया है। पांच साल पहले तक इस्लामिक स्टेट का पश्चिमी सीरिया से लेकर पूर्वी इराक के 88,000 वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा था। आज यह आंकड़ा सिमटकर लगभग 300 लड़ाकों और सिर्फ 0.5 वर्ग किलोमीटर तक रह गया है। उसके सैकड़ों लड़ाके और उनके परिवारवाले सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ) के समक्ष सरेंडर कर चुके हैं। इनमें 800 यूरोपियन नागरिकों के अलावा दो अमेरिकी भी हैं। एसडीएफ के शिविरों में एक दर्जन से ज्यादा ब्रिटिश महिलाएं, बच्चे और कम से कम ६ ब्रिटिश आईएसआईएस लड़ाके बंद हैं। इनमें शमीमा बेगम भी है जो अब वापस ब्रिटेन जाना चाहती है। अमेरिका समर्थित सेना ने 280 इराकी जिहादियों को वापस इराक भेज दिया है। एसडीएफ द्वारा गिरफ्तार किए गए आईएस लड़ाकों में 500 से ज्यादा इराकी हैं।

लंदन की 29वर्षीय डेनियल इलिस ने ऑक्सफोर्ड से इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की है। वह वाईपीजी में शामिल हो कर सैनिक बनना चाहती थीं। वह बताती हैं कि उन्होंने वाईपीजी को ईमेल किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। इसके बाद उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय कम्यून में बतौर असैनिक वालंटियर अपना नाम रजिस्टर कराया और उत्तरी सीरिया पहुंच गईं। यहां वह पानी सप्लाई, बिजली सिस्टम आदि सिविल कामों में अपना योगदान दे रही हैं। डेनियल बताती हैं कि वह सीरिया गए अन्य वालंटियर्स के किस्सों से बहुत प्रभावित थीं और इसी वजह से उन्होंने भी सीरिया जा कर कुछ करने का फैसला लिया। उन्हें खास तौर पर अन्ना कैम्पबेल से बहुत प्रेरणा मिली थी। अन्ना पहली ब्रिटिश महिला थी जो तुर्की की सेना के खिलाफ वाईपीजे की तरफ से लड़ती हुई मारी गई थी। वर्तमान स्थिति के बारे में डेनियल कहती हैं यह अंत नहीं है बल्कि यह तो कुछ नए की शुरुआत है। पेन्सलवेनिया, अमेरिका के 25 वर्षीय हंटर पेज एक रेस्तरां में काम करते थे। हंटर कहते हैं कि वह अपने काम करने की जगह पर व्याप्त नस्लवादी, लिंगभेदवादी व्यवस्था से ऊब कर सीरिया आए हैं। वह कहते हैं कि सीरिया में बाहर से आने वाले लोग निजी और राजनीतिक कारणों से ही आए हैं। हंटर पेज ने मई 2018 में वाईपीजी की इंटरनेशनल ब्रिगेड को ज्वाइन किया।

 

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