Hindu Identity In Danger: हिन्दू संघर्ष समिति के अध्यक्ष अरुण उपाध्याय का एलान, श्रीलंका में पूजास्थलों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे बर्दाश्त

Hindu Identity In Danger: श्रीलंका सरकार का पुरातत्व विभाग त्रिंकोमाली में पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व वाले शिव मंदिर को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है।

Newstrack :  Network
Update:2022-09-26 16:18 IST

Lucknow: बहुत ही शर्मनाक बात है कि आर्थिक रूप से बर्बाद हो चुका श्रीलंका (Sri Lanka in financial crisis) एक तरफ़ तो पूर्व क्रिकेटर अर्जुन रणतुंगा को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाकर भारत से रामायण के पौराणिक महत्व वाले स्थानों का प्रचार कर भारतीय पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करने हेतु प्रयासरत हैं वहीं दूसरी तरफ़ श्रीलंका सरकार (Government of Sri Lanka) का पुरातत्व विभाग त्रिंकोमाली में पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व वाले शिव मंदिर (Trincomalee Shiva Temple) को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है। यह बात हिन्दू संघर्ष समिति के अध्यक्ष अरुण उपाध्याय (Arun Upadhyay, president of Hindu Sangharsh Samiti) ने कही है। एक विज्ञप्ति में उपाध्याय ने कहा दुनिया भर में 120 करोड़ से अधिक हिंदू त्रिंकोमाली में प्राचीन शिव मंदिर की पूजा करते हैं। यह स्थान पवित्र है और मुख्य रूप से धार्मिक - ऐतिहासिक हिंदू ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है।

यह श्रीलंका में राज्य प्रायोजित नरसंहार से पीड़ित एक हानि-रहित अल्पसंख्यक की आस्था एवं विश्वास पर हमले का मामला है। श्रीलंका सरकार द्वारा हिंदुओं के पूजा स्थल के साथ छेड़छाड़ को हिंदुओं द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा महर्षि वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ रामायण में उल्लेख किया है कि राम ने रावण को हराने के बाद श्रीलंका के पांच शिव मंदिरों में भगवान शिव की पूजा की थी। पौराणिक आख्यानों के हिसाब से श्रीलंका शिव भूमि है और त्रिंकोमाली रावण की शक्ति साधना का प्रमुख केन्द्र था। ज्ञातव्य है कि रावण कैलाश पर्वत पर शिव की आराधना करने आया था। श्रीलंका में शिव और उनके राज्य के प्रति रावण की भक्ति निर्विवाद है।

त्रिंकोमाली शिव मंदिर के इतिहास को नष्ट करने के लिए निरंतर प्रयास- अरुण उपाध्याय

उपाध्याय ने कहा कि पश्चिम के आक्रामक कैथोलिक ईसाई मिशीनरी और श्रीलंका में कट्टरपंथी आक्रामक बौद्धों द्वारा त्रिंकोमाली शिव मंदिर के इतिहास को नष्ट करने के लिए निरंतर प्रयास रहे हैं। इतिहास में त्रिंकोमाली में किसी बौद्ध अवशेष का कोई रिकॉर्ड नहीं है। ये श्रीलंका के हिन्दूओं के उच्चतम मानबिंदु पर हमला है नागा, यक्ष, वेद्दा इत्यादि प्राचीन तमिल हिंदू समुदायों ने इस वैदिक काल से प्रतिष्ठित और अनेक धार्मिक महाकाव्यों में वर्णित शिव मंदिर की रक्षा और संरक्षण किया है ।

संघर्ष समिति के अध्यक्ष ने कहा बौध्द धर्म के आगमन के बाद भी, श्रीलंका के नागाओं, राजरत्ता, कल्याणी और रूहुनु राज्यों के शासको ने पीढ़ी दर पीढ़ी त्रिंकोमाली में इस महान शिव मंदिर को संरक्षित व संवर्धन किया। पुरातात्विक साक्ष्य और साहित्यिक साक्ष्य त्रिंकोमाली में शिव मंदिर के अनन्य हिंदू अतीत के निर्णायक बिंदु हैं।

उपाध्याय ने कहा श्रीलंका की बौद्ध बहुल सरकार द्वारा हिंदू आस्था के उच्चतम मानबिंदु त्रिंकोमाली मंदिर के मूल स्वरूप व चरित्र को नष्ट करने ,नुकसान पहुंचाने या छेड़छाड़ करने के किसी भी प्रयास का भारत और दुनिया भर में 120 करोड़ हिंदुओं द्वारा अत्यधिक प्रतिरोध किया जाएगा। हिन्दू संघर्ष समिति इसकी कड़ी निंदा करती है और भारत सरकार से इस मामले में तत्काल प्रभाव से हस्तक्षेप करने की माँग करती है तथा विश्व के सभी हिन्दुओं से इस मामले पर जागरूक व त्वरित प्रतिक्रिया की माँग करती है ।

अयोध्या राम के लिए है

विज्ञप्ति में कहा गया है कि अयोध्या राम के लिए है। त्रिंकोमाली शिव के भक्त, वैदिक ब्राह्मण, रावण के लियें है। हिन्दू समाज द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के पुनर्निर्माण हेतु बाबरी मस्जिद के कलंक को हटा दिया गया था। बाबरी में जो हुआ वह त्रिंकोमाली में होगा यदि बौद्ध त्रिंकोमाली के हिंदू समाज की आस्था के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या श्रीलंका सरकार पुरातत्व स्थलों को व्यवस्थित रूप से नष्ट करके श्रीलंका की हिंदू ऐतिहासिक जड़ों को मिटाना चाहती है? इन पुरातत्व स्थलों को शांतिप्रिय समावेशी उदार पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में संरक्षित किया जाना है। ये पुरातत्व स्थल हैं, हमारे अतीत को देखने और समझने के लिए सहायकों और आने वाली पीढ़ी के लिए खिड़कियॉं और ये भारत श्रीलंका के प्राचीन संबंधों के सबूत भी है । ये ऐतिहासिक पुरातत्व स्थल अतीत के अनमोल खजाने हैं।

चीन जैसे कुटिल देश के जाल में फँसने को मजबूर श्रीलंका

उपाध्याय ने कहा विरासत की रक्षा और संरक्षण के लिए बने वैश्विक निकायों को वैश्विक समुदाय के खिलाफ इस तरह के नासमझ आक्रामक अपराध के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। और उस पर सबसे बड़ी विडंबना ये है कि श्रीलंका अपनी आर्थिक दुर्दशा को दूर करने के लिये भारतीय पर्यटकों की ओर टकटकी लगाकर बैठा है उन्हें भारत के हिंदू पर्यटकों से पैसा तो कमाना है और उन्हें रामायणकालीन स्थलों की मार्केटिंग करनी है जबकि उनके बहुत से वरिष्ठ राजनेता वहाँ की संसद में श्रीलंका में रामायण के ऐतिहासिक तथ्यों को कपोल कल्पित बताते है। हिन्दू और हिन्दुस्तान के विरोध में उनका सांप्रदायिक पूर्वाग्रह उनके चीन जैसे कुटिल देश के जाल में फँसने को मजबूर करता है । वहाँ के धर्मांध राजनेताओें की बुध्दि पर तरस आता है वो हिन्दुओं और भारत को हर राजनैतिक मंच पर अपमानित करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते । शायद इसे ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना कहा जाता है ।

विज्ञप्ति में कहा गया कि हैरानी की बात है कि उत्तर-पूर्व के हिंदू तमिलों का सिंहलीकरण और बौद्धीकरण तब हो रहा है जब श्रीलंका सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। इस संकट में ना केवल भारत ने सबसे ज़्यादा मदद की है बल्कि वो हाल के महीनों में श्रीलंका मे बड़े निवेश लाने के लिए विभिन्न तरीकों से प्रयास कर रहा है। परन्तु श्रीलंका के कृतघ्न राजनेता अलग अलग राजनैतिक मंचों पर भारत को नीचा दिखाने का कोई मौक़ा नहीं चूकते तमिल हिन्दुओं को वो भारत का बड़ा समर्थक मानते हैं इसलिये पूर्वाग्रह के साथ वो समय समय पर तमिल हिन्दुओं को निशाना बनाते रहते है। इस समय वहॉं के तमिल हिन्दू भारत सरकार से निम्न के लिए आवश्यक कदम उठाने की अपील करते हैं, कि वो इस मामले में तत्काल प्रभाव से हस्तक्षेप करे और सुनिश्चित करें कि कुरुंथौर-मलाई में बौद्ध स्तूप का निर्माण बंद हो और मंदिर के सच्चे अधिकारी हिन्दू समाज को शिव मंदिर सौंपा जायें।

तिरुकोनेश्वरम मंदिर की भूमि का अतिक्रमण करना बंद करें

उन्होंने मांग की कि ज़बरदस्ती बौद्ध चरित्र थोपने के लिए तिरुकोनेश्वरम मंदिर की भूमि का अतिक्रमण करना बंद करें और मंदिर और पवित्रता की रक्षा करें। जब तक उत्तर-पूर्व के हिंदू तमिलों का सिंहलीकरण और बौद्धीकरण पूरी तरह से बंद नहीं हो जाता, तब तक श्रीलंका को और सहायता देना बंद करें। पूर्वोत्तर श्रीलंका में हिंदू पहचान की रक्षा करने और क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता बहाल करने के लिए भारत-लंका समझौते को पूरी तरह से लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव डालें। भारत को जल्द से जल्द श्रीलंका पर दबाव डालकर तमिल हिन्दुओं को उचित राजनैतिक सहभागिता दिलवानी होगी।

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