भारत के साथ खड़ा हुआ US तो बौखलाया चीन, अब दी ये चेतावनी

भारत चीन तनाव के बीच भी अमेरिका ने लगातार भारत का साथ दिया है। जिससे चीन को अब यह डर सताने लगा है कि कहीं अमेरिका और भारत उसके खिलाफ एक साथ ना हो जाएं।

Update:2020-06-26 10:43 IST

नई दिल्ली: भारत चीन तनाव के बीच भी अमेरिका ने लगातार भारत का साथ दिया है। जिससे चीन को अब यह डर सताने लगा है कि कहीं अमेरिका और भारत उसके खिलाफ एक साथ ना हो जाएं। वहीं अमेरिका ने कल यानी गुरुवार को अपनी सेना को यूरोप से हटाकर एशिया में तैयार करने का अहम फैसला लिया है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने चीन को भारत और दक्षिणपूर्व एशिया के लिए खतरा बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि उसकी वजह से अमेरिका ने यूरोप में अपनी सेना घटानी शुरू कर दी है। वहां से हटाकर सेना को दूसरी जगह तैनात किया जा रहा है।

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भारत ने शीत युद्ध में एक पक्ष चुन लिया

अब इस घटनाक्रम से चीन को मिर्ची लगी है। जिसके बाद चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत के अमेरिकी के करीब जाने पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। फाइनेंशियल टाइम्स के एक कॉलमनिस्ट गिडोन रैचमैन ने लिखा कि भारत की तरफ से नए शीत युद्ध में एक पक्ष चुन लिया गया है। इन्होंने यह भी कहा कि चीन की यह मूर्खता है कि वह अपने प्रतिद्वंदी को अमेरिका के पाले में डाल रहा है।

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रातों रात ही पैदा नहीं हुआ है सीमा विवाद

इस लेख को लेकर ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि, ऐसा नहीं है कि चीन और भारत के बीच सीमा विवाद रातों रात ही पैदा हुआ है। एक समय था जब चीन और भात के बीच तनाव चरम पर था। उस समय भी भारत किसी देश पर निर्भर नहीं हुआ था। चीन ने उस तर्क को गलत ठहराया कि भारत मौजूदा सीमा विवाद में किसी एक पक्ष के साथ जाने के लिए मजबूर हो जाएगा।

भारतीय पक्ष के उकसावे के बाद हुआ संघर्ष

ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, चीन सीमा विवाद को युद्ध की तरफ नहीं ले जाना चाहता है। अखबार ने आगे लिखा कि भारत के उकसावे के बाद ही लद्दाख की गलवान घाटी में संघर्ष शुरू हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद माना है कि भारतीय सीमा के अंदर कोई नहीं घुसा। ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि गिडोन रैचमैन जैसे लोगों ने अमेरिका के आकर्षण का गलत अनुमान लगा लिया है।

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ताइवान के सारे हित अमेरिका के पक्ष में है

हमने यूएस के हाथों में पड़े देशों और क्षेत्रों को देखा है, वे अमेरिका या उसके हितों के लिए काम करने के इच्छुक हैं। लेकिन वे या फिर अपने हितों का सौदा कर रहे हैं या तो अमेरिका के हाथों अपनी संप्रभुता गंवा रहे हैं। अखबार आगे लिखता है कि ताइवान के संप्रभुता की बात करना ही बेकार है। क्योंकि उसके सारे हित अमेरिका के काबू में है। उसे ना चाहते हुए भी अमेरिका के इशारों पर नाचना पड़ता है। हालांकि यह सोचना काफी मुश्किल है कि कोई वैश्विक महाताकत अमेरिका के हाथों में रहना चाहेगी। भारत की यह विशेषता है कि वह अपनी कूटनीतिक स्वतंत्रता बरकरार रखना चाहता है।

अमेरिका और भारत के संबंध विश्लेषकों की राय से बहुत दूर

मुखपत्र ने लिखा कि, अमेरिका और भारत के संबंध विश्लेषकों की राय से बहुत दूर हैं। दोनों केवल एक-दूसरे का इस्तेमाल कर रहे हैं। अखबार ने कहा कि यूएस हिंद-प्रशांत की रणनीति में भारत को अपना मोहरा बनाना चाहता, जिससे वह चीन को रोक सके और दुनिया में अपना प्रभुत्व बरकरार रख सके।

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भारत इसलिए कर रहा अमेरिका का इस्तेमाल

वहीं भारत दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन के प्रभाव को काउंटर करने और पाकिस्तान को रोकने के लिए अमेरिका का इस्तेमाल कर रहा है। हालांकि भारत इस बात से भी वाकिफ है कि अमेरिका उसके लक्ष्य को पूरा करने में उसकी सहायता नहीं करेगा।

बातचीत के जरिए ही हल होगा विवाद

ग्लोबल टाइम्स अंत में लिखता है कि भारत चीन के बीच सीमा विवाद में भले ही कितने उतार-चढ़ाव आएं और आगे भारत की तरफ से कोई भी कदम उठाया जाए, लेकिन चीन का मानना है कि सभी विवादों को केवल बातचीत के जरिए ही खत्म किया जा सकता है और इसमें दोनों पक्षों को किसी बाहरी ताकत के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।

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