India Taiwan Relation: ताइवान से भारत के अच्छे संबंध, मौजूदा हालात में बरती जा रही सावधानी

India Taiwan Relation: ताइवान के मामले पर चीन और अमेरिका आमने सामने हैं। लेकिन भारत ने अभी तक इस संकट पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2022-08-03 10:50 IST

India Taiwan Relation News (image social media 

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India Taiwan Relation: ताइवान के मामले पर चीन और अमेरिका आमने सामने हैं। लेकिन भारत ने अभी तकप इस संकट पर कोई टिप्पणी नहीं की है। भारत ने हमेशा सावधानी बरती है कि ताइवान पर राजनीतिक रूप से लोडेड बयान जारी न करे। दरअसल, भारत के ताइवान के साथ अभी औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, क्योंकि यह एक-चीन (वन चाइना) नीति का पालन करता है। हालाँकि, दिसंबर 2010 में तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के दौरान, भारत ने संयुक्त विज्ञप्ति में एक-चीन नीति के समर्थन का उल्लेख नहीं किया था।

2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए, तो उन्होंने ताइवान के राजदूत चुंग-क्वांग टीएन को अपने शपथ ग्रहण में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष लोबसंग सांगे के साथ आमंत्रित किया था। 

वन-चाइना नीति का पालन करते हुए, राजनयिक कार्यों के लिए भारत का ताइपे में एक कार्यालय है - भारत-ताइपे एसोसिएशन (आईटीए), जिसका नेतृत्व एक वरिष्ठ राजनयिक करते हैं। ताइवान का नई दिल्ली में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (टीईसीसी) है। दोनों की स्थापना 1995 में हुई थी। भारत और ताइवान के संबंध वाणिज्य, संस्कृति और शिक्षा पर केंद्रित हैं। अब अपने तीसरे दशक में, चीन की संवेदनशीलता के कारण इन्हें जानबूझकर लो-प्रोफाइल रखा गया है। 

उदाहरण के लिए, डोकलाम में भारत-चीन सीमा गतिरोध होने के बाद से संसदीय प्रतिनिधिमंडल का दौरा और विधायिका स्तरीय संवाद 2017 से बंद है। लेकिन हाल के वर्षों में चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध होने के कारण भारत ने ताइवान के साथ अपने संबंधों को निभाने की कोशिश की है। 2020 में गलवान संघर्ष के बाद केंद्र सरकार ने विदेश मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव (अमेरिका) गौरांगलाल दास को ताइपे में अपना दूत बनने के लिए चुना। 

उस वर्ष 20 मई को, भाजपा ने अपने दो सांसदों - मीनाक्षी लेखी और राहुल कस्वां को ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में वर्चुअल मोड के माध्यम से भाग लेने के लिए कहा। अगस्त 2020 में ताइवान के पूर्व राष्ट्रपति ली टेंग-हुई के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए, भारत ने उन्हें "मिस्टर डेमोक्रेसी" के रूप में वर्णित किया। इसे बीजिंग के लिए एक संदेश के रूप में माना जाता है। ली के शासन के दौरान ही भारत ने 1995 में आईटीए की स्थापना की थी।

1996 में, ली को ताइवान के पहले प्रत्यक्ष राष्ट्रपति चुनाव में दूसरे कार्यकाल के लिए चुना गया था। राष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने लोकतांत्रिक विकास के रास्ते में आने वाले कानूनों से छुटकारा पाया, विधायिका में बदलाव किया, स्वतंत्र विधायी चुनाव हुए, और ताइवान के लोगों को पहली बार अपने राष्ट्रपति को चुनने के लिए मतदान करने की अनुमति दी। ताइवान की वर्तमान राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन को ली की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है।

इस साल मई में, ताइपे में ताइवान एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन की विजिटिंग फेलो सना हाशमी ने सिंगापुर के नेशनल यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज के लिए एक पेपर में लिखा था - "भारत-ताइवान संबंधों में किसी भी महत्वपूर्ण डेवलपमेंट होने की स्थिति में चीन की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आने का जोखिम है। लेकिन यह ताइवान तक भारत की स्थिर, हालांकि धीमी पहुंच को दिखाता है। यह देखते हुए कि निकट भविष्य में भारत-चीन संबंधों के सामान्य स्थिति में लौटने की संभावना नहीं है।

भारत को ताइवान के लिए एक साहसिक, व्यापक और दीर्घ कालिक दृष्टिकोण अपनाने पर विचार करना चाहिए।" ताईवान की राष्ट्रपति त्साई की सरकार भारत के साथ सहयोग के क्षेत्रों का विस्तार करने की इच्छुक है क्योंकि भारत, ताइवान की दक्षिण की ओर की नई नीति के लिए प्राथमिकता वाले देशों में से एक है। अब तक, यह काफी हद तक एक आर्थिक और लोगों से लोगों के बीच संबंध रहा है। चीन के साथ तनाव के बीच भारत अब ताइवान संबंधों को आगे बढ़ाने की जरूरत पर ध्यान दे रहा है।

व्यापार संबंध

भारत और ताइवान ने 2002 में एक द्विपक्षीय निवेश समझौते (बीआईए) पर हस्ताक्षर किए, जो 2005 में लागू हुआ। दिसंबर 2018 में दोनों पक्षों द्वारा एक अद्यतन बीआईए पर हस्ताक्षर किए गए। 

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