इंडोनेशिया में चुनाव ने ले ली 300 लोगों की जान

Update:2019-05-03 16:14 IST
इंडोनेशिया में चुनाव ने ले ली 300 लोगों की जान

मनीला: भारत में एक महीने तक चलने वाले चुनावों को देख कर लगता है कि दुनिया में इतना पेचीदा चुनाव और कहीं नहीं हो सकता लेकिन हाल ही में इंडोनेशिया में हुए चुनावों पर नजर डालेंगे, तो सिर चकरा जाएगा। सोचिए कैसा हो अगर लोकसभा, विधानसभा, नगर निकाय और ग्राम प्रधान चुनाव एक साथ ही संपन्न हो जाएं। इंडोनेशिया ने कुछ ऐसा ही किया। एक ही दिन में इस देश ने एक साथ चार अलग अलग तरह के चुनाव करा डाले। लोगों को अपने लिए केंद्र सरकार भी चुननी थी, राज्य सरकार व नगर पालिका भी और अपने राष्ट्रपति को भी। यही वजह है कि इसे दुनिया का सबसे पेचीदा चुनाव कहा जा रहा है।

इंडोनेशिया के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि एक सभी चुनाव एक साथ करा दिए गए। इसका एक नतीजा 300 मौतों के रूप में सामने आया है। ये मौतें चुनावी हिंसा की वजह से नहीं बल्कि अन्य अजोबोगरीब कारणों से हुई हैं। दरअसल इंडोनेशिया दुनिया में सबसे ज्यादा द्वीपों वाला देश है जहां 17 हजार से भी ज्यादा छोटे बड़े द्वीप हैं और सब जगह एक साथ चुनाव कराना काफी बड़ी चुनौती है। कई द्वीपों पर लगातार भूकंप और सूनामी का खतरा भी रहता है। इन द्वीपों तक मतदान पेटियां ले जाना एक जोखिम भरा और बेहद मुश्किल काम है।

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17 अप्रैल को इंडोनेशिया में चुनाव हुए थे। चुनाव के लगभग दो हफ्ते बाद यह बात सामने आई है कि इंडोनेशिया में अब तक 287 मतदान अधिकारियों और 18 पुलिस कर्मियों की जान जा चुकी है। चुनाव आयोग के प्रवक्ता आरीफ प्रियो सुसांतो ने बताया कि मारे गए लोगों के अलावा 2,095 लोगों के बीमार होने की भी खबर है। मौतों का मुख्य कारण थकावट और कुछ मामलों में थकावट के कारण हुए हादसे और बीमारियां हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि 2014 में हुए चुनावों के दौरान 150 लोगों की जान गई थी। उस दौरान दो चुनावों में तीन महीने का अंतर था।

इस बार के चुनावों में कुल 19.3 करोड़ मतदाता थे और इनमें से 81 फीसदी लोगों ने वोट डाला। इन्हें आयोजित कराने के लिए देश भर में करीब 70 लाख लोगों को काम पर लगाया गया था और आठ लाख से ज्यादा मतदान केंद्र बनाए गए थे। चुनाव आयोग के अनुसार चुनावों का एक साथ आयोजन करने का मकसद खर्चा और वक्त बचाना था लेकिन आयोग को अंदाजा नहीं था कि इतने बुरे परिणाम देखने को मिलेंगे। अब वित्त मंत्रालय मारे गए लोगों के परिवारों को मुआवजा देने की दिशा में काम कर रहा है।

भारत से इतर इंडोनेशिया में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता है, बल्कि कर्मचारियों को हाथ से ही सभी पर्चियां गिननी पड़ती हैं। ऐसे में चार अलग अलग चुनावों के कारण लोगों को चार पर्चे भरने पड़े और इन सब की गिनती में एक महीने से भी ज्यादा का वक्त लगेगा। भारत में 23 मई को तो इंडोनेशिया में 22 मई को नतीजों की घोषणा होनी है।

15 करोड़ वोट पड़े

चीन, भारत और अमेरिका के बाद इंडोनेशिया सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है। यहां की जनसंख्या २६ करोड़ की है जिसमें १९.३० करोड़ मतदाता हैं। इस बार के चुनाव में ८१ फीसदी लोगों ने वोट डाला यानी १५ करोड़ लोगों ने, जो रूस की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा हैं।

इंडोनेशिया के चुलनाव में हर मतदाता को पांच मतपत्रों पर मुहर लगानी थी। मतदाताओं ने एक ही समय में एक राष्ट्रपति, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के ५७५ सदस्यों, रीजनल रिप्रेजेंटेटिव आउंसिल के १३६ सदस्य और स्थानीय निकाय के २० हजार सदस्यों को चुना। इन सब पदों के लिए कुल २ लाख ४५ हजार प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे।

70 लाख मतदानकर्मी

चुनाव कराने और मतपत्रों की गिनती के लिए ७० लाख मतदानकर्मियों को लगाया गया था। इन्हें ८ लाख लाख मतदान केंद्रों पर तैनात किया गया। बताया जाता है कि अस्थाई कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी से पहले किसी मेडिकल जांच से नहीं गुजरना पड़ता। इंडोनेशिया में इन दिनों अच्छी खासी गर्मी पड़ रही है सो कर्मचारियों को रात-दिन इन हालातों में काम करना पड़ा। इसके अलावा सभी कर्मचारियों को सुबह तड़के से देर रात तक लगातार काम करते रहना पड़ा था।

इंडोनेशिया में राष्ट्रपति पद के लिए जोको विडोडो या जोकोवी और प्रबोवो सुबीआंतो के बीच मुकाबला है। सुबीआंतो जहां इंडोनेशियाई सेना के जनरल रह चुके हैं, वहीं जोकोवी वर्तमान में राष्ट्रपति हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो जोकोवी एक फिर राष्ट्रपति पद पर काबिज होंगे।

 

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