Israel-Hamas War: ईरान कूद पड़ा तो क्या होगा?

Israel-Hamas War: ऐसे संघर्ष की खतरनाक संभावना है जो इजरायली और अमेरिकी सेनाओं को ईरान और उसके मिलिशिया गुटों के खिलाफ खड़ा कर देगा। हाल के अशुभ संकेत तेजी से स्थिति की गिरावट का संकेत देते हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2023-10-18 11:32 IST

Israel Hamas War   (photo: social media )

Israel-Hamas War: इजराइल-हमास युद्ध अब अगले लेकिन बेहद घातक चरण में प्रवेश कर चुका है। इजरायली फौज जमीनी हमले के लिए तैयार है, अमेरिकी सेना भी सपोर्ट के लिए खड़ी है। ऐसे में पश्चिमी सरकारों की सबसे बड़ी चिंता गाजा में फिलिस्तीनियों की दुर्दशा नहीं है बल्कि चिंता ये है कि युद्ध तेजी से पूरे पश्चिम एशिया को अपनी चपेट में न ले ले। ऐसे संघर्ष की खतरनाक संभावना है जो इजरायली और अमेरिकी सेनाओं को ईरान और उसके मिलिशिया गुटों के खिलाफ खड़ा कर देगा। हाल के अशुभ संकेत तेजी से स्थिति की गिरावट का संकेत देते हैं। और हालात की कुंजी एक ही देश के हाथों में है और वह है ईरान।

इज़राइल ईरान के परमाणु ठिकानों और रिवोल्यूशनरी गार्ड ठिकानों को नष्ट करने के इरादे से उनपर हमला कर सकता है, जिससे क्षेत्र में अराजकता पैदा होगी और अमेरिका एक व्यापक भू-राजनीतिक संघर्ष में फंस जाएगा।

ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने चेतावनी दी है कि - "अगर ज़ायोनी आक्रमण नहीं रुके, तो क्षेत्र के सभी दलों के हाथ ट्रिगर पर हैं।" वहीं, अमेरिका का कहना है कि पूर्वी भूमध्य सागर में दूसरे विमान वाहक समूह को तैनात करने के उसके फैसले का उद्देश्य इजरायल की सुरक्षा को मजबूत करना और किसी भी देश या गैर-देश गुट को संघर्ष को बढ़ाने से रोकना है। इस अस्पष्ट शब्द के पीछे ईरान के साथ संभावित आमने-सामने की टक्कर के बारे में चिंता छुपी हुई है।

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ईरान ऐसा देश है जो "गैर-देश गुटों" को नियंत्रित और समन्वयित करता है - हमास और गाजा में आतंकवादी समूह फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद; सीरिया, इराक और यमन में तेहरान-संबद्ध मिलिशिया; और सबसे शक्तिशाली, लेबनान का हिज़्बुल्लाह। इसे ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई "प्रतिरोध की धुरी" कहते हैं। मतलब ये कि किसी व्यापक संघर्ष में न सिर्फ ईरान कूद पड़ेगा बल्कि उसके द्वारा नियंत्रित सभी गुट भी आ जाएंगे।

ये तय है कि ईरान अपनी सेनाओं को सचेत कर रहा है कि जल्द ही नए युद्ध मोर्चे खुल सकते हैं। इज़राइल पहले से ही उत्तर में रोजाना हो रहे हिज़्बुल्लाह के छिटपुट हमलों से निपट रहा है।उसने साफ कहा है कि अगर हिजबुल्लाह हमास के युद्ध में शामिल होता है तो "लेबनान का विनाश" तय है।


छिपा हुआ रहता है ईरान

इज़राइल के साथ लंबे "छाया युद्ध" के दौरान, ईरान ने आम तौर पर छिप कर ही काम किया है। वह खुद सामने आने की बजाय आतंकी गुटों के जरिये ऑपरेट करता है। ईरान हमास को धन, प्रशिक्षण और हथियार देता है। सो ये कहना गलत ही होगा कि वह हमास के बड़े पैमाने के ऑपरेशन की योजना बनाने में शामिल नहीं था।

- ईरान का पिछला स्वरूप और अब इज़राइल पर हमला करने की इच्छा का एक मजबूत मकसद है - यहूदी राज्य के अस्तित्व पर इसकी मौलिक आपत्ति।

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- एक और वजह है इजरायल में नेतन्याहू सरकार के प्रति जन विरोध और उनकी कमजोर पकड़। ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई और ईरान के कट्टरपंथी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी इसे बखूबी भांप रहे हैं।

- ईरान ये भी देख रहा है कि अमेरिका का बिडेन प्रशासन यूक्रेन के प्रति व्यस्त है और उसका झुकाव एशिया की ओर है। अफगान और इराक से सेना की वापसी और सीरियाई शासन का पुनर्वास, इस धारणा को मजबूत करता है कि अमेरिका मध्य पूर्व में रुचि खो रहा है।


क्या है संभावना

ज्यादा मुमकिन ये है कि ईरान स्वयं युद्ध में अपनी सेना नहीं उतरेगा। इसकी बजाय वह अपने द्वारा नियंत्रित हिजबुल्लाह और अन्य आतंकी गुटों से हमले करवाएगा। आतंकियों को वह पीछे से हथियार और अन्य सपोर्ट देगा। इससे वह इजरायल और अमेरिका के खिलाफ अपना एजेंडा चलाएगा।

- अगर इजरायल ईरान पर हमले करता है तो इससे क्षेत्रीय संघर्ष में बदल सकता है। नतीजतन सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे राज्यों के साथ-साथ खाड़ी के शिपिंग मार्गों पर भी असर पड़ सकता है।

- इससे इजरायल के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रतिक्रिया भी हो सकती है, जिसमें ईरान के समर्थित हिजबुल्लाह और हमास भी शामिल हैं। हिजबुल्लाह के बारे में माना जाता है कि उसके पास 100,000 से अधिक मिसाइलें हैं, जो एक क्रूर संघर्ष को जन्म देने के लिए जवाबी कार्रवाई कर सकता है।


रूस और चीन

रूस के साथ ईरान के मजबूत होते सैन्य संबंध भी इजराइल के लिए चिंता का विषय हैं। यूक्रेन युद्ध में ईरान ने रूस को ड्रोन उपलब्ध कराए हैं और बदले में, वायु रक्षा और मिसाइल विकास में रूसी मदद मांगी है। इज़राइल ने मई में उच्च-स्तरीय अधिकारियों को मास्को भेजा था और रूस से परहेज करने को कहा था। लेकिन रूस ईरान के पक्ष में खड़ा हो जाएगा। चीन भले ही अभी चुप्पी साधे है लेकिन क्षेत्रीय गणित देखते हुए वह भी ईरान के साथ जा सकता है।

पहले कभी दोस्त थे

1979 की ईरानी क्रांति से पहले, इज़राइल और ईरान सहयोगी दोस्त थे। लेकिन नए इस्लामिक शासन के तहत ईरानी नेताओं ने यहूदी इजरायल को दुश्मन करार दिया और उसे खत्म करने की कोशिश में हिजबुल्लाह और हमास जैसे समूहों का समर्थन करते हुये इजरायल विरोधी कड़ा रुख अपनाया।

पिछले कुछ वर्षों में ईरान की परमाणु क्षमताएं बढ़ी हैं, और इज़राइल इसे अस्तित्व के खतरे के रूप में देखने लगा है। इसके जवाब में कई ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या के पीछे कथित तौर पर इज़राइल का हाथ रहा है। अप्रैल 2021 में, इजरायल को नतांज़ में एक यूरेनियम संवर्धन प्लांट में विस्फोट के लिए जिम्मेदार माना गया था।

कुल मिलाकर ईरान के द्वारा कोई कार्रवाई या ईरान के खिलाफ इजरायल की सीधी कार्रवाई का नतीजा पश्चिम देश बनाम अरब देशों के संघर्ष के रूप में सामने आएगा। जिसकी जांच बहुत दूर तक फैलेगी।

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