साधारण पर्वतारोही सर एडमंड हिलेरी के असाधारण कारनामे, जानें इनके बारे में सबकुछ

उन्होंने एवरेस्ट यात्रा के बाद हिमालय ट्रस्ट के माध्यम से नेपाल के शेरपा लोगों के लिए कई सहायता कार्य भी किये। उन्होंने 1956, 1960−61 और 1963−65 में भी हिमालय की अन्य चोटियों पर पर्वतारोहण किया था।

Update: 2021-01-11 03:10 GMT
स्कूल के दिनों से ही पर्वतारोहण का शौक था और उन्होंने एवरेस्ट यात्रा के बाद हिमालय ट्रस्ट के माध्यम से नेपाल के शेरपा लोगों के लिए कई सहायता कार्य भी किए।

लखनऊ: दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर पहली बार चढ़ाई करने में सफल व्यकित रहे न्यूज़ीलैंड के पर्वतारोही सर एडमंड हिलेरी की आज पुण्यतिथि है। विश्व के सर्वोच्च पर्वत शिखर पर सबसे पहले कदम रखने वाले सर एडमंड हिलेरी के अंदर इस साहसिक कार्य का जज्बा कूट कूट कर भरा था लेकिन इस उपलब्धि को हासिल करने के बाद भी उनका स्वभाव बहुत सहज और सरल था। सर एडमंड हिलेरी ने 29 मई 1953 को केवल 33 साल की आयु में नेपाल के पर्वतारोही शेरपा तेंनजिंह नोर्गे के साथ माउंट एवरेस्ट पर पहली बार कदम रखा था।

इतिहास में दर्ज दो नाम

दुनिया के इतिहास में 29 मई का दिन कई वजहों से खास है। दरअसल 29 मई, 1953 के दिन दो लोगों ने वह कारनामा कर दिया जो अब तक सपना ही बना हुआ था। एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नॉर्गे ने इस दिन एवरेस्ट की ऊंची चोटियों पर फतह हासिल कर ली थी। ऐसा करने वाले वह पहले इंसान थे। हिलेरी को इस सफलता के लिए ब्रिटेन की महारानी ने नाइट की उपाधि दी थी। ।शेरपा के हिलेरी का साथ चमत्कार से कम नहीं था। क्योंकि शेरपा को ये सफलता एक या दो बार में नहीं बल्कि सातवीं बार में हाथ लगी। उन्होंने छह बार प्रयास किए इसके बाद 1953 में उन्होंने सरदार के रुप में ब्रिटिश एवरेस्ट के अभियान पर गए हिलेरी के साथ दूसरा शिखर युगल बनाया। इसके बाद 29 मई को दिन में 11.30 बजे वो एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचे। उन्होंने वहां 15 मिनट का वक्त गुजारा।

 

 

बचपन से पर्वतारोहण का शौक था

न्यूजीलैंड में 20 जुलाई 1919 को जन्मे सर हिलेरी को स्कूल के दिनों से ही पर्वतारोहण का शौक था और उन्होंने एवरेस्ट यात्रा के बाद हिमालय ट्रस्ट के माध्यम से नेपाल के शेरपा लोगों के लिए कई सहायता कार्य भी किये। उन्होंने 1956, 1960−61 और 1963−65 में भी हिमालय की अन्य चोटियों पर पर्वतारोहण किया था।

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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पायलट रहे

एवरेस्ट के बाद हिलेरी ने 50 और 60 के दशक में हिमालय की दस और चोटियों पर भी चढ़ाई की थी। 20 जुलाई 1919 को जन्मे हिलेरी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पायलट भी रहे लेकिन बाद में उनकी पहचान पर्वतारोही के रुप में बनी

11 जनवरी 2008 को न्यूजीलैंड के ओकलैंड में उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। हिलेरी को 1985 में भारत में न्यूजीलैंड का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था। नेपाल सहित अन्य कई देशों ने भी उन्हें अपने राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित किया। वह बांग्लादेश में न्यूजीलैंड के उच्चायुक्त और नेपाल में राजूदत भी रहे।

 

 

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दोनों ध्रुवों और माउंट एवरेस्ट जाने वाले पहले शख्स

सर हिलेरी 1958 में कामनवेल्थ ट्रांसअंटार्किटक एक्सपिडीशन के तहत दक्षिणी ध्रुव गए थे। वह 1985 में नील आर्मस्ट्रांग के साथ एक छोटे विमान में उत्तरी धु्रव गए थे। इस तरह वह दोनों ध्रुवों और माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाले पहले शख्स थे।

असाधारण लक्ष्य साधारण मनुष्य को असाधारण बना देते हैं। पर महानता तब परिभाषित होती है जब वह मनुष्य साधारण, सरल, सुलभ और सहज बना रहता है। एडमंड हिलेरी का जीवन ऐसी ही महानता का उदाहरण है।

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