वाशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के साथ हुई परमाणु हथियार संधि से हटने की घोषणा कर दी है। इसके जवाब में रूस के वरिष्ठ अधिकारी ने ट्रंप को आगाह करते हुए कहा है कि ट्रंप का ये फैसला काफी खतरनाक साबित हो सकता है। दरअसल अमेरिका और रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के बीच शीत युद्ध के तनाव के बीच 1987 में परमाणु हथियार संधि हुई थी। इस समझौते को इंटरमीडिएट-रेन्ज न्यूक्लियर फोर्सेज़ ट्रीटी (आइएनएफ) नाम दिया गया था। इस संधि के अंतर्गत मध्यम दूरी के परमाणु हथियारों का निरस्त्रीकरण करना था।
जानते हैं क्या है आइएनएफ संधि
अस्सी के दशक में शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने अपनी इंटरमीडिएट रेन्ज बैलेस्टिक मिसाइल यूरोप और पश्चिमी देशों की ओर तान रखी थी। इसी तनाव को कम करने के लिये दिसम्बर 1987 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन और सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव के बीच परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर एक समझौता हुआ था। इस समझौते के अनुसार दोनो देशों ने जमीन की सतह से 500-5500 किमी तक मार करने वाले मध्यम दूरी के परमाणु हथियारों को नष्ट करने की प्रतिबद्धता जताई गई थी। इस संधि की वजह से साल 1991 से अब तक करीब 2,700 मिसाइलों को नष्ट किया जा चुका है। इस संधि के नियमानुसार दोनों देश एक दूसरे के मिसाइलों के परीक्षण और तैनाती पर नजर रखने की अनुमति देते हैं।
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क्यों अमेरिका हट रहा है संधि से
अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि रूस इस संधि के नियमों का लगातार कई सालों से उल्लंघन कर रहा है। अमेरिका का मत है कि रूस ने यूरोपीय देशों को निशाना बनाते हुए क्रूज़ मिसाइलें तैनात कर रखी हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि रूस और चीन लगातार परमाणु हथियारों का निर्माण कर रहे हैं, पर हमने अभी तक इस संधि का पूरा सम्मान दिया है जो अब आगे संभव नहीं है।
क्या है रूस का नजरिया
रूस भी समय-समय पर अमेरिका पर आइएनएफ संधि के नियमों को तोडऩे का इल्जाम लगाता रहता है। रूस का आरोप है कि अमेरिका ने यूरोप के रोमानिया में जानबूझकर नाटो सेना के बहाने न्यूक्लियर मिसाइल तैनात कर रखी है, ताकि कम से कम समय में इसका इस्तेमाल हमपर किया जा सके। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने 2007 में आइएनएफ संधि से हटने की धमकी भी दी थी। पुतिन सरकार के विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि अमेरिका समय-समय पर अपनी सहूलियतों के हिसाब से काम करता रहा है। संधि का उल्लंघन भी उसी का हिस्सा है।
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अमेरिका का परमाणु संधि से बाहर होने पर दुनिया में असर
अगर अमेरिका इस संधि से बाहर होता है तो ये दोनों देशों के साथ-साथ दुनिया को भी गलत संदेश देगा। दरअसल अमेरिका और रूस के बीच हुआ आइएनएफ समझौता दो साल बाद 2021 में समाप्त हो रहा है। अगर अमेरिका इस संधि से बाहर हुआ तो फिर इस संधि के नवीनीकरण की गुंजाइश कम हो जायेगी। रूसी उप विदेश सचिव के अनुसार, 'सन् 2010 के समझौते में तय किया गया था कि दोनों देश अपने परमाणु हथियारों की संख्या 1550 तक कर लेंगे। लेकिन अमेरिका के बाहर होने से अब इस लक्ष्य को पूरा नही कर सकते।Ó एक अनुमान के मुताबिक इस समय रूस के पास 7000 और अमेरिकी जखीरे में 6800 परमाणु हथियार हैं।
रूसी सांसद एलेक्सी पुश्कोव ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, 'अगर अमेरिका इस डील से बाहर हुआ तो ये ऐसा दूसरा मौका होगा जब वो नियमों का उल्लंघन करेगा। इससे पहले भी सन् 2001 में अमेरिका एंटी बेलेस्टिक मिसाइल ट्रीटी से बाहर जा चुका है।'
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क्या होगा परमाणु समझौते का भविष्य
राष्ट्रपति ट्रंप के संधि से बाहर होने के ऐलान के बाद भी उम्मीद है कि रूस नियमों को मानकर आइएनएफडील को बचा सकता है। लेकिन अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन के बारे में कहा जाता है कि वो हथियारों से जुड़ी किसी भी संधि के खिलाफ हैं। ट्रंप का कहना है कि अगर रूस और चीन हमारी शर्तों के साथ चलने को तैयार हैं तो हम इस समझौते के बारे में फिर से विचार कर सकते हैं।