Russia Ukraine Crisis: अभेद्य सुरक्षा कवच है नाटो

नाटो का मतलब है – नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन। ये कुछ देशों का एक ग्रुप या संगठन है जिसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में हुई थी।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update:2022-02-27 18:26 IST

नाटो (फोटो-सोशल मीडिया)

Ukraine Russia Conflict: यूक्रेन और रूस के झगड़े में 'नाटो' काफी सुर्ख़ियों में है। यूक्रेन बार-बार नाटो से मदद की गुहार लगा रहा है जबकि रूस नाटो को दूर रहने की चेतावनी दे रहा है। ये नाटो है क्या? यूक्रेन और रूस के बीच इसका क्या मतलब है? जानते हैं नाटो के बारे में सब कुछ।

नाटो का मतलब है – नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन (North Atlantic Treaty OrganizationNorth Atlantic Treaty Organization)। ये कुछ देशों का एक ग्रुप या संगठन है जिसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में हुई थी। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन आदि को डर बना हुआ था कि जर्मनी या सोवियत संघ हमला कर सकते हैं।

इसी के चलते 4 मार्च 1947 को डनकर्क की संधि हुई जिसपर फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम ने गठबंधन और पारस्परिक सहायता के लिए हस्ताक्षर किए। 1948 में इस गठबंधन का विस्तार अन्य देशों को शामिल करने के लिए किया गया।

12 देश सदस्य

इस विस्तार को ब्रुसेल्स संधि संगठन (बीटीओ) भी कहा जाता है। इसके बाद ये बात चली कि एक ऐसा सैन्य गठनबंधन बनाय जाये जिसमें उत्तरी अमेरिका भी शामिल हो। इस प्रस्ताव के परिणामस्वरूप 4 अप्रैल 1949 को पश्चिमी संघ के सदस्य राज्यों के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा, पुर्तगाल, इटली, नॉर्वे, डेनमार्क और आइसलैंड ने उत्तरी अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर किये।

उस समय इस ग्रुप के मूल 12 सदस्य थे – बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लुक्सम्बर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका। हालाँकि अब सोवियत संघ तो नहीं रहा लेकिन अज भी ये संगठन बना हुआ है और अब इसके 30 सदस्य हैं।

नाटो सदस्यों के बीच संचार की भाषा इंग्लिश और फ्रेंच है। नाटो के स्थापित सिद्धांतों में से एक है इसके चार्टर का आर्टिकल 5 जिसके अनुसार नाटो के किसी देश के खिलाफ सशस्त्र हमला होने की स्थिति में उसे सभी सदयों के खिलाफ हमला माना जाएगा।

नाटो यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों का गठबंधन है। यह इन दो महाद्वीपों के बीच एक अनूठी कड़ी प्रदान करता है, जिससे वे रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में परामर्श और सहयोग कर सकते हैं, और बहुराष्ट्रीय संकट-प्रबंधन संचालन एक साथ कर सकते हैं।

नाटो का उद्देश्य

नाटो का उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य माध्यमों से अपने सदस्यों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है।

राजनीतिक - नाटो का दावा है कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देता है और सदस्यों को उनकी समस्याओं को हल करने, विश्वास बनाने और लंबे समय में संघर्ष को रोकने के लिए रक्षा और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर परामर्श और सहयोग करने में सक्षम बनाता है।

सैन्य – अगर किसी विवाद को सुलझाने के राजनयिक प्रयास विफल हो जाते हैं तो नाटो के पास क्राइसिस मैनेजमेंट अभियान चलाने की सैन्य शक्ति होती है। ये अभियान की संस्थापक संधि के सामूहिक रक्षा खंड के तहत किए जाते हैं। ये काम वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 या संयुक्त राष्ट्र के जनादेश के तहत, अकेले या अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से किया जाता है।

एक बार लागू हुआ है अनुच्छेद 5

अब तक, अनुच्छेद 5 को एक बार लागू किया गया है - 2001 में अमेरिका में 9/11 के आतंकवादी हमलों के जवाब में इसका उपयोग किया गया था।

रोजाना होती है बैठक

नाटो मुख्यालय में के सभी सदस्य रोजाना सभी लेवल पर और विभिन्न क्षेत्रों में सुरक्षा मुद्दों पर परामर्श करते हैं और उचित निर्णय लेते हैं। नाटो का निर्णय सभी 30 सदस्य देशों की सामूहिक इच्छा की अभिव्यक्ति माना जाता है, सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाते हैं। नाटो मुख्यालय में राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों और कर्मचारियों के अलावा नागरिक और सैन्य विशेषज्ञ रोजाना आते हैं।

मुख्य कार्य और सिद्धांत

नाटो का मौलिक और स्थायी उद्देश्य है - अपने सभी की स्वतंत्रता और सुरक्षा की रक्षा करने के लिए

राजनीतिक और सैन्य साधनों से सदस्य। नाटो का कहना है कि आज की अप्रत्याशित दुनिया में स्थिरता बनाये रखने के लिए ये गठबंधन एक अनिवार्यता है।

सदस्य देश

नाटो का सबसे ताजा सदस्य देश उत्तर मैसेडोनिया है जो 27 मार्च 2020 को इस गठबंधन में शामिल हुआ। नाटो वर्तमान में बोस्निया और हर्जेगोविना, जॉर्जिया और यूक्रेन को महत्वाकांक्षी सदस्यों के रूप में मान्यता देता है, यानी ये देश आगे चल कर सदस्य बन सकते हैं। 2020 में नाटो के सभी सदस्यों का संयुक्त सैन्य खर्च वैश्विक खर्च का 57 फीसदी से अधिक था।

सदस्यों ने सहमति व्यक्त की है कि उनका लक्ष्य 2024 तक अपने जीडीपी के कम से कम 2 फीसदी को रक्षा खर्च तक बनाए रखना है। नाटो को उसके सदस्यों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। नाटो के बजट में अमेरिका का योगदान लगभग तीन-चौथाई है। केवल 10 देश जीडीपी के 2 फीसदी के लक्ष्य खर्च स्तर तक पहुंच सके हैं। अमेरिका ने 2021 में अपने जीडीपी का 3.52 फीसदी रक्षा पर खर्च करने का अनुमान लगाया था।

सदस्य देश ये हैं - अल्बानिया (2009), बेल्जियम (1949), बुल्गारिया (2004), कनाडा (1949), क्रोएशिया (2009), चेक गणराज्य (1999), डेनमार्क (1949), एस्टोनिया (2004), फ्रांस (1949), जर्मनी (1955), ग्रीस (1952), हंगरी (1999), आइसलैंड (1949), इटली (1949), लातविया (2004), लिथुआनिया (2004), लक्ज़मबर्ग (1949), मोंटेनेग्रो (2017), नीदरलैंड्स (1949), उत्तर मैसेडोनिया (2020), नॉर्वे (1949), पोलैंड (1999), पुर्तगाल (1949), रोमानिया (2004), स्लोवाकिया (2004), स्लोवेनिया (2004), स्पेन (1982), तुर्की (1952), यूनाइटेड किंगडम (1949) और अमेरिका (1949) ।

खुली सदस्यता

नाटो की सदस्यता इस संधि के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने और उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा में योगदान करने की स्थिति में किसी भी अन्य यूरोपीय राज्य के लिए खुली है। इसी के तहत यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की बात चल रही थी।

गैर-सदस्य

नाटो में 40 गैर-सदस्य देश भी हैं जो नाटो के साथ व्यापक राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर काम करते हैं। ये देश गठबंधन के साथ व्यवहारिक सहयोग करते हैं और नाटो के नेतृत्व वाले अभियानों और मिशन में योगदान करते हैं। लेकिन भागीदार देशों के पास सदस्य देशों के समान निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।

नाटो के अभियान

बोस्निया और हर्जेगोविना (1992-2004)

1949 में नाटो की स्थापना के 46 साल बाद संगठन के लिए पहली बार सैन्य हस्तक्षेप 1995 में हुआ जिसे ऑपरेशन डेलिब्रेट फोर्स कहा जाता है। इसके तहत बोस्निया में रिपब्लिका सर्पस्का की सेना को टारगेट किया गया था, जिसकी उपस्थिति से संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षित क्षेत्रों" के लिए खतरा पैदा हो गया था।

सर्बिया और कोसोवो (1999 से जारी)

कोसोवो में सर्बिया और सर्बियाई बलों के बुनियादी ढांचे को टारगेट करने के लिए नाटो ने हवाई अभियान चलाया। शांति संधि होने तक लगभग 3 महीने तक बमबारी चली जिसके बाद कोसोवो युद्ध समाप्त हुआ। लेकिन कोसोवो में शांति स्थापना के लिए नाटो के नेतृत्व वाली कोसोवो फोर्स (अंतर्राष्ट्रीय शांति सेना) अभी भी तैनात है। ये तैनाती नाटो के प्रस्ताव के तहत की गयी है।

अफगान युद्ध

अमेरिका में 9\11 के हमलों के बाद नाटो संगठन के इतिहास में पहली बार नाटो चार्टर के अनुच्छेद 5 को लागू किया गया। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी भी सदस्य पर हमला सभी पर हमला माना जाएगा। 4 अक्टूबर 2001 को नाटो ने फैसला किया कि अमेरिका पर हमले वास्तव में नाटो संधि की शर्तों के तहत जवाबी कार्रवाई लायक हैं।

हमलों के जवाब में नाटो द्वारा आठ आधिकारिक कार्रवाइयों को अंजाम दिया गया। 16 अप्रैल 2003 को नाटो, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल (आईएसएएफ) की कमान संभालने के लिए सहमत हो गया, जिसमें 42 देशों के सैनिक शामिल थे। समझौते के समय आईएसएएफ का नेतृत्व करने वाले दो राष्ट्र, और सभी उन्नीस नाटो राजदूतों ने सर्वसम्मति से इसे मंजूरी दी।

लीबिया अभियान

लीबिया के गृहयुद्ध के दौरान 17 मार्च 2011 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1973 को पारित किया गया, जिसमें युद्धविराम का आह्वान किया गया, और नागरिकों की रक्षा के लिए अधिकृत सैन्य कार्रवाई की संस्तुति की गई थी।

इसके बाद नाटो के कई देशों समेत एक गठबंधन ने लीबिया पर एक नो-फ्लाई ज़ोन लागू करना शुरू कर दिया, जिसकी शुरुआत 19 मार्च को फ्रांसीसी वायु सेना द्वारा ऑपरेशन हरमट्टन से हुई। 24 मार्च को, नाटो प्रारंभिक गठबंधन से नो-फ्लाई क्षेत्र का नियंत्रण लेने के लिए सहमत हो गया, जबकि जमीनी इकाइयों को टारगेट करने की कमान गठबंधन की सेनाओं के पास रही। नाटो ने कतर और संयुक्त अरब अमीरात की सहायता से 27 मार्च 2011 को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को आधिकारिक रूप से लागू करना शुरू किया।

समुद्री डाकुओं के खिलाफ अभियान

17 अगस्त 2009 को नाटो ने अदन की खाड़ी और हिंद महासागर में समुद्री यातायात को सोमाली समुद्री लुटेरों से बचाने के लिए एक अभियान में युद्धपोतों को तैनात किया, और क्षेत्रीय राज्यों की नौसेनाओं और तट रक्षकों को मजबूत करने में मदद की। ये अभियान अब भी जारी है।

नाटो की शक्ति

नाटो को दुनिया भर में दुनिया के सबसे मजबूत और सबसे शक्तिशाली गठबंधन के रूप में जाना जाता है लेकिन दुनिया भर में मिशन और संचालन का समर्थन करने के लिए नाटो अपने 30 सहयोगी और सहयोगी देशों की सैन्य ताकत पर निर्भर करता है।

नाटो के पास अपने स्वयं के सशस्त्र बल नहीं हैं, लेकिन इसके पास एक स्थायी, एकीकृत सैन्य कमान संरचना है, जिसमें सभी सदस्य राज्यों के सैन्य और नागरिक दोनों कर्मी शामिल हैं। ये कर्मचारी समान उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सामूहिक रूप से काम करते हैं।

नाटो गठबंधन को प्रत्येक सदस्य देश की सैन्य क्षमताओं और विशेषज्ञता पर भरोसा करना होता है। हर देश इसमें योगदान करता है जिसमें सैनिक, टैंक, पनडुब्बियां और लड़ाकू जेट भी शामिल हैं। 1949 से नाटो ने अपनी सामूहिक सैन्य शक्ति में वृद्धि की है। आज नाटो में कुल 35 लाख सैन्य कर्मी हैं। इसके अलावा सदस्य देश नाभकीय शास्त्रों से भी लैस हैं।

नाटो के मिशन और अभियानों को पूरा करने की जिम्मेदारी अलाइड कमांड ऑपरेशंस की होती है जिसका नेतृत्व सुप्रीम एलाइड कमांडर यूरोप करता है। जब ऑपरेशन या मिशन समाप्त होता है, तो बहुराष्ट्रीय बल अपने-अपने देशों में लौट आते हैं।

जब उत्तरी अटलांटिक परिषद (एनएसी) कोई ऑपरेशन, मिशन या अभ्यास करने का फैसला करती है, तो नाटो के सैन्य अधिकारी एक संचालन ड्राफ्ट का प्रस्ताव देते हैं जिसे 'कांसेप्ट ऑफ़ ओपरेशंस' (कॉनॉप्स) कहा जाता है)। इसके तहत उपकरण, कार्य बल और साधन का गृह किया जाता है और इस प्रक्रिया को फ़ोर्स जेनरेशन कहा जाता है।

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