Russia Ukraine War: सैकड़ों एटमी बमों के बराबर तबाही मचा सकते हैं परमाणु ऊर्जा संयंत्र

Russia Ukraine War: परमाणु ऊर्जा प्लांट के न्यूक्लीयर रिएक्टर में किसी भी तरह लीकेज हो गया तो वह परमाणु बमों जैसी तबाही मचा सकता है। परमाणु त्रासदी की यादें नागासाकी, हिरोशिमा पर गिराए गए बमों के साथ साथ चेर्नोबिल और फुकुशीमा संयंत्रों से जुड़ी हुईं हैं।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Deepak Kumar
Update:2022-03-04 15:09 IST

सैकड़ों एटमी बमों के बराबर तबाही मचा सकते हैं परमाणु ऊर्जा संयंत्र। (Photo- Social Media) 

Russia-Ukraine War: यूक्रेन के एनरहोदर शहर में यूरोप का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थित है जहां रूसी गोलाबारी की वजह से आग लग गई थी। हालांकि आग को बुझा कर स्थिति को कंट्रोल कर लिया गया है लेकिन ये घटना बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी बन सकती थी और इसी अंदेशे में अमेरिका ने अपनी न्यूक्लीयर रेस्पोंस टीम को अलर्ट कर दिया था।

यूक्रेन में ही चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा प्लांट (chernobyl nuclear power plant) स्थित है जहां हुआ हादसा आज भी भयानक यादें लौटा लाता है। दरअसल, परमाणु ऊर्जा प्लांट के न्यूक्लीयर रिएक्टर में अगर किसी भी तरह लीकेज हो गया तो वह परमाणु बमों जैसी तबाही मचा सकता है। परमाणु त्रासदी की यादें नागासाकी, हिरोशिमा पर गिराए गए बमों के साथ साथ चेर्नोबिल और फुकुशीमा संयंत्रों से जुड़ी हुईं हैं।

चेर्नोबिल हादसा

चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना (chernobyl nuclear accident) यूक्रेन के उत्तरी नगर प्रीप्यत के पास 26 अप्रैल 1986 को इस संयंत्र के चौथे रिएक्टर में हुई थी। जानमाल के नुकसान के मामले में ये आज तक का सबसे भयानक परमाणु हादसा रहा है। यह उन मात्र दो दुर्घटनाओं में से एक है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय परमाणु घटना स्केल के सातवें स्थान पर रखा गया है। चेर्नोबिल के बाद नंबर आता है जापान के फूकूशीमा डाईची परमाणु संयंत्र (Fukushima Daiichi Nuclear Plant in Japan) में हुई दुर्घटना का। चेर्नोबिल हादसे के बाद पर्यावरण को विकिरण से मुक्त करने और हादसे को बिगड़ने से रोकने के लिए कुल 1.8 करोड़ सोवियत रूबल (आज के 5 खरब भारतीय रुपए) खर्च किये गए थे।

दरअसल, चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (chernobyl nuclear power plant) में एक परीक्षण होना था जिसमें पता लगाया जाना था कि प्लांट के फेल हो जाने की स्थिति में क्या-क्या कदम उठाये जाने हैं। यह भी देखना था कि उस स्थिति में अगर बिजली की सप्लाई बंद हो जाती है तो टर्बाइन आदि बाकी उपकरण काम करते रहेंगे या नहीं। परीक्षण की तैयारी 25 अप्रैल को शुरू हो गई थी। रात में करीब 1.30 बजे टर्बाइन को नियंत्रित करने या रोकने वाले वाल्व को हटा दिया गया। उसके बाद रिऐक्टर को आपातकालीन स्थिति में ठंडा रखने वाले सिस्टम को भी बंद कर दिया गया। रिऐक्टर में एक ऑटोमेटिक स्विच लगा होता है जो किसी तरह की आपातकालीन स्थिति में रिऐक्टर के अंदर नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया को रोक देता है। तुरंत ही उस स्विच को भी बंद कर दिया गया। उसके बाद अचानक रिऐक्टर के अंदर नाभिकीय विखंडन की लगातार चलने वाली प्रक्रिया काबू से बाहर हो गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसका कारण रिऐक्टर का दोषपूर्ण डिजाइन और कंट्रोल रॉड में कमियों का होना था।

परीक्षण के समय पावर आउटपुट अचानक शून्य के बराबर हो गया। प्लांट के कर्मचारी परीक्षण के अनुसार पावर को वापस ऊपर नहीं ले आ पाए जिससे रिएक्टर एक अस्थिर स्थिति में आ पहुंचा। कर्मचारियों ने संयंत्र को बंद करने का फैसला किया। मगर बंद होने के बजाय एक अनियंत्रित परमाणु श्रृंखला अभिक्रिया की शुरुआत हुई जिससे अधिक मात्रा में ऊर्जा छोड़ी जाने लगी। इससे रिएक्टर के भीतर का हिस्सा पिघलने लगा। जिसके बाद दो या अधिक विस्फोटों की वजह से रिएक्टर का भीतरी हिस्सा और रिएक्टर बिल्डिंग तबाह हो गयी। पूरे वातावरण में रेडियोधर्मी पदार्थ फैल गए।

विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि रिऐक्टर को ढकने वाली एक हजार टन से ज्यादा की प्लेट और उसके ऊपर की छत की धज्जियां उड़ गईं। रिऐक्टर में इस्तेमाल होने वाली ईंधन की छड़ों के परखच्चे उड़ गए। छड़ें हवा में काफी ऊंचाई तक उछल गई जिससे पर्यावरण में रेडियोधर्मी पदार्थ फैल गया। इससे अगले नौ दिनों तक हवा में रेडियोधर्मी प्रदूषण फैलता रहा जो तत्कालीन सोवियत संघ के कुछ भागों और पश्चिमी यूरोप तक पहुँच गया। आखिरकार 4 मई 1986 को इस पर नियंत्रण किया जा सका। 70 प्रतिशत प्रदूषण 16 किलोमीटर दूर बेलारूस में जा पहुंचा था।

रेडिएशन से होने वाले कैंसर से सोवियत संघ के हुई करीब 5,000 नागरिकों की मौत

रिएक्टर में विस्फोट के बाद बचाव टीम के 134 स्टाफ सदस्यों को तीव्र विकिरण सिंड्रोम के साथ अस्पताल में ले जाया गया क्योंकि उन्होंने आइनाइज़ करने वाले विकिरण को अधिक मात्रा में सोख लिया था। 134 लोगों में से 28 लोगों की मृत्यु कुछ ही दिनों के अंदर हो गई, और बाकियों की मृत्यु अगले कुछ 10 वर्षों में विकिरण से जुड़े कैंसर से हुई। इस] दुर्घटना के आम जनता पर स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। 2011 में इस क्षेत्र के 15 बच्चों को थाइरॉइड कैंसर हुआ था जिससे उनकी मृत्यु हो गई। इस रेडिएशन से होने वाले कैंसर से बाद में सोवियत संघ के करीब 5,000 नागरिकों की मौत हो गई थी। लाखों लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ था। साल 2000 में चेर्नोबिल में काम कर रहे बाकी ने सभी रिऐक्टर्स को भी बंद कर दिया गया। इस प्लांट के 50 किलोमीटर के दायरे से बस्तियां हटा लीं गईं और आज तक ये इलाका वीरान है क्योंकि अब भी यहाँ विकिरण खतरनाक लेवल पर मौजूद है।

अनुमान लगाया गया है कि चेर्नोबिल से छोड़ी गई विकिरण की मात्रा हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु बमबारी से चार सौ गुना ज़्यादा थी। चेर्नोबिल दुर्घटना के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र थे यूक्रेन, बेलारूस और रूस। वैसे, इबेरिया प्रायद्वीप के अलावा यूरोप के अधिकांश हिस्से में भी विकिरण का पता लगाया गया था।

कीव से करीब 130 किलोमीटर उत्तर में प्रिपयेट शहर में चेर्नोबिल प्लांट

चेर्नोबिल प्लांट यूक्रेन की राजधानी कीव से करीब 130 किलोमीटर उत्तर में प्रिपयेट शहर में था। उस समय यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा होता था। यह बेलारूस की सीमा से करीब 20 किलोमीटर दक्षिण में था। चेर्नोबिल प्लांट में चार न्यूक्लियर रिऐक्टर्स थे। यूक्रन के इस हिस्से में आबादी बहुत कम थी। रिऐक्टर से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर नया बसा शहर प्रिपयेट था। वहां करीब 49,000 लोग रहते थे। चेर्नोबिल के पुराने शहर में 12,500 लोग रहते थे। पावर प्लांट के 30 किलोमीटर के अंदर दुर्घटना के समय कुल जनसंख्या करीब 1.5 लाख थी।

परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में हुए हादसे

- 29 सितम्बर 1957 : रूस के ओब्लास्ट क्षेत्र (oblast region of russia) में स्थित किश्तिम शहर में एक परमाणु ईंधन पुनर्संसाधन संयंत्र के एक भंडारण टैंक के भीतर हुए रासायनिक विस्फोट के बाद विकिरण फ़ैल गया था जिसके चलते करीब 200 लोगों की मौत कैंसर की वजह से हो गयी थी।

- 10 अक्टूबर 1957 : यूनाइटेड किंगडम के सेलाफील्ड (Selafield of the United Kingdom) में परमाणु बम प्रोजेक्ट में आग लग जाने से रिएक्टर का भीतरी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया जिसके चलते वातावरण में भरी मात्रा में आयोडीन रिलीज हो गयी। इस हादसे के कारन करीब ढाई सौ लोग की मौत कैंसर से होने का अनुमान है।

- 3 जनवरी 1961 : अमेरिका के आयडाहो फाल्स (Idaho Falls of America) में नेशनल रिएक्टर टेस्टिंग स्टेशन में विस्फोट हो गया था जिसमें सभी तीन ऑपरेटर मारे गए।

- 5 जनवरी 1976 : चेकोस्लोवाकिया के एल प्लांट (The L Plant of Czechoslovakia) में गड़बड़ी होने से रिएक्टर से ईंधन रॉड बहार निकल आई थी। इस दुर्घटना में दो लोगों की मौत हो गयी।

- अमेरिका में वर्जीनिया राज्य में एक परमाणु ऊर्जा प्लांट में पानी सप्लाई पाइप फट गया जिससे 4 लोग मारे गए।

- 30 सितम्बर 1999 : जापान के इबाराकी (Ibaraki of Japan) में तोकैमुरा प्लांट में हुए हादसे में दो कर्मचारियों की मौत हुई।

- 9 अगस्त 2004 : जापान के फूकै (fukai of japan) स्थित मिहामा परमाणु पल्न्त में विस्फोट से 4 कर्मचारी मारे गए थे।

- 11 मार्च 2011 : सुमनी लहरों की वजह से जापान के फुकुशीमा प्लांट (Fukushima Plant of Japan) के तीन रिएक्टर को भारी नुकसान पहुंचा। इस हादसे में कम से कम 4 लोग मारे गए और वातावरण में विकिरण फ़ैल गया।

दुनिया में कितने परमाणु रिएक्टर

अमेरिका - 93

फ़्रांस - 56

चीन - 51

रूस - 38

जापान - 33

साउथ कोरिया - 24

भारत - 23

कनाडा - 19

यूनाइटेड किंगडम - 13

यूक्रेन - 15

स्वीडन - 6

स्पेन - 7

बेल्जियम - 7

जर्मनी - 6

चेक रिपब्लिक - 6

पाकिस्तान - 5

फ़िनलैंड - 4

स्विट्ज़रलैंड - 4

हंगरी - 4

स्लोवाकिया - 4

अर्जेंटीना - 3

साउथ अफ्रीका - 2

मेक्सिको - 2

बुल्गारिया - 2

रोमानिया - 2

ब्राज़ील - 2

स्लोवानिया, नीदरलैंड्स, अर्मेनिआ, ईरान, - 1

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