Russia-Ukraine War: बिडेन का खतरनाक दांव, यूक्रेन ने चलाई बैलिस्टिक मिसाइल, परमाणु युद्ध की काली छाया
Russia-Ukraine War: अमेरिका की सुरक्षा छत्रछाया खोने की स्थिति में ब्रिटेन और यूरोपीय देशों को पुतिन के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है।
Russia-Ukraine War: रूस - यूक्रेन युद्ध की आग में अमेरिका ने घी डालने का काम किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा यूक्रेन को अमेरिका निर्मित लम्बी दूरी की बैलेस्टिक मिसाइलें इस्तेमाल करने की इजाजत देने के तुरंत बाद यूक्रेन ने रूस पर इन्हें दाग भी दिया। यही नहीं, यूक्रेन ने रूसी ठिकानों पर ब्रिटेन निर्मित लंबी दूरी की स्टॉर्म शैडो मिसाइलें भी दागी हैं। इन नए हमलों पर रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने गुस्से में जवाब देते कहा है कि उन्होंने रूस के परमाणु सिद्धांत में बदलावों को मंजूरी दे दी है। अब डर है कि यूक्रेन द्वारा लंबी दूरी की मिसाइलों के इस्तेमाल के चलते पुतिन अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ बड़ी जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं। यही नहीं, अमेरिका की सुरक्षा छत्रछाया खोने की स्थिति में ब्रिटेन और यूरोपीय देशों को पुतिन के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। रूस भले ही ब्रिटेन पर सीधे हमला न करे लेकिन वह विदेशों में ब्रिटिश ठिकानों को निशाना बना सकता है। रूस के दरवाजे पर मौजूद फिनलैंड और पोलैंड जैसे यूरोपीय सहयोगी, पहले से ही रूस के संभावित हमले के बचाव की तैयारी शुरू कर चुके हैं।
क्या किया है बिडेन ने?
हुआ ये है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन ने अपने कार्यकाल के खत्म होते दौर में नीतिगत बदलाव करते हुए यूक्रेन को रूस के अंदर "आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम" (ATACMS) का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी है। यही नहीं, बिडेन ने यूक्रेन को "एन्टी पर्सनल लैंड माइन" यानी बारूदी सुरंगें सप्लाई करने की भी इजाजत दी है। आर्मी टैक्टिकल मिसाइल रूस के भीतर लम्बी दूरी तक मार कर सकती है और इसमें न्यूक्लियर वॉरहेड लगाए जा सकते हैं।
बिडेन प्रशासन ने इस साल की शुरुआत में गुप्त रूप से यूक्रेन को ये मिसाइलें भेजी थीं, इस शर्त के तहत कि यूक्रेन रूस के अंदर इनका इस्तेमाल नहीं करेगा। बीते सितंबर में, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी दी थी कि रूसी क्षेत्र पर इन लंबी दूरी की मिसाइलों के इस्तेमाल को युद्ध में नाटो देशों की “प्रत्यक्ष भागीदारी” माना जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का यह निर्णय उत्तर कोरियाई सैनिकों द्वारा रूस के समर्थन में युद्ध में उतरने से जुड़ा है।
मामला क़ुर्स्क का
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में कुर्स्क क्षेत्र महत्वपूर्ण है जहां यूक्रेन के अचानक आक्रमण ने रूस को चौंका दिया था। रूस इस बार उत्तर कोरियाई सैनिकों की मदद से कुर्स्क को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रहा है। रूस एक बड़े हमले की तैयारी कर रहा है जिसमें कथित तौर पर 50,000 सैनिक शामिल होंगे। माना जाता है कि अमेरिका ने यूक्रेन को कुर्स्क क्षेत्र में अपनी सेना की रक्षा करने के लिए ही नया कदम उठाया है। कुर्स्क महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह यूक्रेन और रूस के बीच एक बफर जोन है, और दोनों देश इस पर सैन्य नियंत्रण चाहते हैं।
क्या है लंबी दूरी की मिसाइलों से खतरा?
- बैलेस्टिक मिसाइल काफी लंबी दूरी तक जाने की क्षमता रखती हैं।
- इस तरह की मिसाइलों में एटमी विध्वंसक लगाए जा सकते हैं।
- वर्तमान में दुनिया के 31 देशों के पास बैलिस्टिक मिसाइलें हैं। हालाँकि, इनमें से केवल नौ देश, जिनमें भारत, पाकिस्तान, अमेरिका, चीन और उत्तर कोरिया शामिल हैं, के पास 1,000 किलोमीटर से अधिक की रेंज वाले परमाणु हथियार होने की जानकारी है या होने का संदेह है।
- अमेरिका ने यूक्रेन को जिन मिसाइलों के इस्तेमाल के लिए अधिकृत किया है, वे सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल हैं जो 300 किलोमीटर तक के टारगेट को भेदने में सक्षम हैं। इस रेंज का मतलब है कि यूक्रेन अब रूस के अंदर के टारगेट्स को भेद सकता है।
- अमेरिका स्थित आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के अनुसार, बैलिस्टिक मिसाइलों को शुरू में रॉकेट द्वारा लांच किया जाता है, लेकिन फिर वे अपने टारगेट की ओर बिना पावर के बढ़ती हैं।
- इन मिसाइलों को ठोस रॉकेट से ईंधन दिया जाता है और वे वायुमंडल में बैलिस्टिक रूट का अनुसरण करते हुए तेज गति से ऊपर उठती हैं और फिर अत्यंत तेज रफ्तार से सटीक एंगल पर नीचे आती हैं, जिससे उन्हें रोकना मुश्किल हो जाता है।
- इन मिसाइलों को अधिकतम दूरी के आधार पर अलग अलग कैटेगरी में रखा जाता है, जो मिसाइल के इंजन यानी रॉकेट की ताकत और मिसाइल के पेलोड यानी बम के वजन पर निर्भर करता है। मिसाइल की सीमा में अधिक दूरी जोड़ने के लिए, रॉकेट को एक दूसरे के ऊपर एक क्रम में रखा जाता है जिसे स्टेजिंग कहा जाता है।
क्या असर होगा इन मिसाइलों का
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत के बाद से, नाटो देशों ने यूक्रेन को भारी तोपखाने और एडवांस्ड हथियारों की सप्लाई को रोक दिया है, क्योंकि उन्हें डर है कि इससे युद्ध और बढ़ सकता है। लेकिन अब विशेषज्ञों का मानना है कि आर्मी टैक्टिकल मिसाइल पर अमेरिकी नीति में बदलाव से यूक्रेन को दूसरे देशों द्वारा इसी तरह की और छूट देने के दरवाजे खुल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, ब्रिटेन और फ्रांस ने यूक्रेन को स्टॉर्म शैडो/स्काल्प मिसाइलों की आपूर्ति की है, लेकिन यूक्रेन को अभी तक सिर्फ अपने देश की मान्यता प्राप्त सीमाओं के अंदर ही इनका उपयोग करने की अनुमति है।
बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल
बिडेन प्रशासन अब यूक्रेन को एंटीपर्सनल लैंड माइंस (एपीएल) भी देगा। अभी तक अमेरिका ने यूक्रेन को एंटी-टैंक माइंस ही दी हैं, इनकी तुलना में एंटीपर्सनल माइंस अधिक आसानी से ट्रिगर होती हैं। 160 से अधिक देशों ने एक संधि के तहत एंटीपर्सनल लैंड माइंस पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन अमेरिका और रूस ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। जमीन के नीचे छिपी ये बारूदी सुरंगे न सिर्फ सैनिकों बल्कि युद्ध के बाद नागरिकों के जीवन के लिए बड़ा खतरा होती हैं।
यूरोप पर बढ़ता खतरा
यूक्रेन को सैन्य सहायता देने के मामले में राष्ट्रपति जो बिडेन की नीति में बदलाव से इस बात की चिंता है कि इससे ब्रिटेन और यूरोपीय सहयोगी कमज़ोर स्थिति में आ सकते हैं। अमेरिका के बदलते स्टैंड और डोनाल्ड ट्रंप की जीत से यूरोप में पैनिक की स्थिति है क्योंकि उन्हें डर है कि अब उन्हें अपनी हिफाज़त खुद ही करनी होगी जिसकी तैयारी उन्होंने की ही नहीं थी।