आजादी के बाद भी बर्बाद दक्षिणी सूडान, दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक
हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका के नाम से मशहूर दक्षिण सूडान आज दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। यहाँ के 80 लाख लोग यानी करीब दो तिहाई आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है।
खार्तूम: अफ्रीकी देश सूडान से अलग हो कर 9 जुलाई 2011 को दक्षिण सूडान (South sudan) एक आजाद देश घोषित हुआ था। लेकिन आज़ादी की ख़ुशी डेढ़ साल से भी कम समय में धूल धूसरित हो गई। प्राकृतिक संसाधन संपन्न यह देश घातक गृहयुद्ध में फंस गया जिसने करीब चार हजार लोगों की जान ले ली। गृहयुद्ध के कारण देश की 1.10 करोड़ की आबादी में से 16 लाख लोग दक्षिण सूडान के भीतर ही विस्थापित हैं, जबकि 20 लाख से ज्यादा लोगों ने दक्षिण सूडान के बाहर अन्य देशों में शरण ली है।
हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका (horn of africa) के नाम से मशहूर दक्षिण सूडान आज दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। यहाँ के 80 लाख लोग यानी करीब दो तिहाई आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है। संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूनिसेफ ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि दक्षिण सूडान अब तक का सबसे बुरा मानवीय संकट झेल रहा है। यूनिसेफ ने एक रिपोर्ट में कहा है कि दक्षिणी सूडान में पांच साल से कम उम्र के करीब तीन लाख बच्चों के सामने भुखमरी का खतरा है।
देश में जिस तरह से हिंसा अपने चरम पर है, वैसे ही भ्रष्टाचार ने भी देश को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी अधिकारी सार्वजनिक धन की लूट के साथ-साथ मनी लॉन्ड्रिंग, रिश्वतखोरी और कर चोरी में लिप्त हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस देश में भ्रष्टाचार इतना आम हो गया है कि इसने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र और राज्य के हर संस्थान को संक्रमित कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, यह भ्रष्टाचार मानवाधिकारों के हनन को बढ़ावा दे रहा है और दक्षिण सूडान के जातीय संघर्ष का एक प्रमुख कारक है।
जातीय मानसिकता
दक्षिण सूडान में विभिन्न जातीय समूहों के बीच संघर्ष से हालात एक बार बिगड़ना शुरू हुए जो अभी तक सुधरने की बजाय और भी खराब होते चले जा रहे हैं। दरअसल, आज़ादी के संघर्ष के दौरान, दक्षिण सूडान के प्रमुख जातीय समूह डिंका के बीच वर्चस्व की मानसिकता बढ़ी और देखते देखते यह भावना जातीय वर्चस्व के रूप में बदल गई। दक्षिण सूडान के राष्ट्रपति साल्वा कीर भी डिंका समुदाय से आते हैं।
साल 2013 में प्रेसिडेंट कीर ने देश के उपराष्ट्रपति रीक मचर पर साजिश का आरोप लगाते हुए उन्हें बर्खास्त कर दिया। मचर देश के दूसरे सबसे बड़े जातीय समूह नुएर से संबंध रखते थे। मचर की बर्खास्तगी के साथ ही देश में जबरदस्त गृह युद्ध शुरू हो गया जिसमें नरसंहार, बलात्कार और बाल सैनिकों की भर्ती भी शामिल थी। पांच साल तक चले गृहयुद्ध के बाद 2018 में प्रतिद्वंद्वियों के बीच एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। फरवरी 2020 में आखिरकार गठबंधन सरकार बनी लेकिन स्थानीय स्तर पर संघर्षों का दौर अभी भी जारी है। 2020 की दूसरी छमाही में प्रतिद्वंद्वी समुदायों के बीच हुई हिंसा में 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने फरवरी 2021 में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें बताया गया था कि जातीय आधार पर संगठित सशस्त्र समूहों के बीच और नागरिक आबादी के खिलाफ हमलों में तेजी आई है। देश के सशस्त्र बलों को भी जातीय आधार पर विभाजित किया गया है।
डराने-धमकाने का खेल
जानकारों का कहना है कि दक्षिण सूडान में एक ऐसी सरकार है जो नागरिकों को डराकर और विपक्ष के लोगों को खुश और अपने साथ रखकर काम करती है। सरकार का विरोध करने वाले लोगों के लिए विपक्ष में रहना बहुत मुश्किल है क्योंकि इसका मतलब है कि आपको सरकारी नियुक्ति या आदेश को अस्वीकार करना होगा। जानकारों का कहना है कि जबतक वर्तमान नेता सत्ता में हैं तब तक सुधार की कोई गुंजाईश नहीं है।
क्या है इतिहास
सूडान के उत्तरी हिस्से पर कभी तुर्क साम्राज्य का शासन रहा। 18वीं सदी में पूरे सूडान पर मिस्र ने शासन किया, इस वजह से सूडान के उत्तरी हिस्से में बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी हो गई और इन्हें 'आधे अरबी' कहा जाता है जबकि दक्षिणी हिस्से में बाद में ईसाई बहुसंख्यक हो गए।
सूडान और दक्षिणी सूडान में भारत के राजदूत रहे दीपक वोहरा कहते हैं कि 19वीं सदी के मध्य में मिस्र के शासक मोहम्मद अली ने अपने लोगों को कहा कि वे मिस्र के दक्षिण (सूडान) में जाएं और वहां से सोना, हाथी दांत और ग़ुलाम लेकर आएं। सूडान के उत्तरी हिस्से के लोग दक्षिणी हिस्से से ग़ुलाम लेकर आए और तभी से उत्तर और दक्षिण सूडान में संघर्ष शुरू हो गया।
फैक्ट फाइल
- सूडान पर ब्रिटेन का अधिपत्य रहा था और उसे 1956 में आज़ादी मिली थी।
- सूडान में उत्तर की मुस्लिम बहुल आबादी और दक्षिण की ईसाई बहुल आबादी के बीच कई दशकों से चले आ रहे संघर्ष में 20 लाख लोगों की मौत हुई। उत्तरी सूडान के दारफूर इलाके में राष्ट्रपति बशीर पर जनसंहार का आरोप लगा। उनके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत ने गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया। संयुक्त राष्ट्र संघ के दखल के बाद 2005 में हिंसा को खत्म करने के लिए एक शांति प्रस्ताव आया, जिसमें दो राष्ट्रों का जिक्र किया गया। शांति संधि में दक्षिण सूडान को नया देश बनाने की बात कही गई।
- दक्षिण सूडान को 9 जुलाई 2011 को जनमत-संग्रह के पश्चात स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इस जनमत-संग्रह में 98.83 फीसदी जनता ने सूडान से अलग एक नए राष्ट्र के निर्माण के लिए मत डाला। यह विश्व का 196वां स्वतंत्र देश, संयुक्त राष्ट्र का 193वां सदस्य तथा अफ्रीका का 55वां देश है। जुलाई 2012 में देश ने जिनेवा सम्मेलन पर हस्ताक्षर किए।