दुनिया का इकलौता मुल्क जहां बस, मेट्रो में सफर के नहीं देने होंगे पैसे

दुनिया के तमाम शहर ट्रैफिक को संभालने के लिए परेशान हैं, सबकी अपनी-अपनी मजबूरी है। कहीं गाड़ियों की संख्या ज्यादा है, तो कहीं आबादी को लेकर संकट। ऐसे में कुल सवा छल लाख की आबादी वाले और ढाई हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले एक छोटे से देश लक्जमबर्ग की सरकार ने एक अहम पहल की है।

Update:2020-03-07 17:56 IST

दुनिया का इकलौता मुल्क जहां बस, मेट्रो में सफर के नहीं देने होंगे पैसे । ट्रैफिक जाम की समस्या से आप, आपका शहर, प्रदेश या देश ही नहीं परेशान है। बल्कि दुनिया के तमाम देश इस समस्या से बेजार हैं। इसलिए कहीं पर कभी नो वैहिकल डे तो कहीं आड इवेन नंबर की गाड़ियां चलाकर यातायात को नियंत्रित करने का प्रयास होता रहता है। हम आज आपको एक ऐसे देश के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने अपने यहां ट्रैफिक की समस्या से निपटने के लिए पब्लिक वैहिकल्स में सवारी निशुल्क कर दी है।

दुनिया के तमाम शहर ट्रैफिक को संभालने के लिए परेशान हैं, सबकी अपनी-अपनी मजबूरी है। कहीं गाड़ियों की संख्या ज्यादा है, तो कहीं आबादी को लेकर संकट। ऐसे में कुल सवा छल लाख की आबादी वाले और ढाई हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले एक छोटे से देश लक्जमबर्ग की सरकार ने एक अहम पहल की है। लग्जमबर्ग भी ट्रैफिक जाम की समस्या से बेजार था। एक स्टडी के मुताबिक ड्राइवरों ने 2016 में करीब 33 घंटों का समय सिर्फ ट्रैफिक जाम में बिताया।

सुधार को सब तैयार

गौरतलब है कि इस देश में वर्तमान में तीन दलों की सरकार सत्ता में है लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए पक्ष विपक्ष सभी एकजुट हैं। कोई धरना प्रदर्शन नहीं हो रहा है। कोई इसका विरोध नहीं कर रहा है। हालांकि लग्जमबर्ग ने ट्रेनों और रात्रिकालीन बसों में निशुल्क यात्रा की सुविधा नहीं दी है। लेकिन इस देश में सार्वजनिक वाहनों बस और मेट्रो से सफर को निशुल्क कर दिया गया है। सरकार का दावा है कि इससे ट्रैफिक जाम की स्थिति में सुधार आएगा और सड़कों पर उतरने वाले निजी वाहनों की संख्या में कमी आएगी। सड़कों पर गाड़ियों की संख्या घटेगी।

लग्जमबर्ग में ज्यादातर लोग प्राइवेट वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। इस देश में 43% लोग प्रतिदिन पड़ोसी देशों से काम करने के लिए आते हैं। 48 प्रतिशत लोग विदेशी मूल के बसे हैं। संवैधानिक रूप से राजा प्रमुख है। लग्जमबर्ग धर्म निरपेक्ष है लेकिन रोमन कैथोलिक यहां पर ज्यादा हैं।

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