तुर्की की हालत खराब

Update: 2018-08-24 07:13 GMT

इस्ताम्बूल : तुर्की और अमेरिका के बीच बढ़ता विवाद और गहरा गया है। एक पादरी एंड्रयू ब्रूसन की रिहाई की मांग को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नाटो सहयोगी तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं जिससे तुर्की को जबर्दस्त झटका लगा है। तुर्की के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी ग्रोथ पर तो असर पड़ा ही है, विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता जा रहा है और तुर्की की मुद्रा लीरा लगातार फिसलती जा रही है।

तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगान अपने रुख पर अड़े हुए हैं। उन्होंने कहा है कि एक पादरी की वजह से तुर्की को धमकी देकर झुकाने की कोशिश करना गलत है। शर्म करो कि आप अपने नाटो सहयोगी को एक पादरी के लिए धमका रहे हैं। उन्होंने कहा, आप इस देश को धमकियों की भाषा से कभी नहीं झुका सकते। हमने न कभी इंसाफ से समझौता किया है और न कभी करेंगे। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था पर हमला किसी देश पर हमला करने से कम नहीं है। उन्होंने कहा, 'उनका इरादा तुर्की और तुर्की के लोगों को घुटनों पर ला खड़ा करना है और उन्हें बंधक बनाना है। ये लोग आतंकवादी संगठनों के दम पर और हजारों दूसरे तरीके अपनाकर भी तुर्की को नहीं झुका सकेंगे। वो अब सोचते हैं कि एक्सचेंज रेट के जरिये तुर्की को हरा देंगे, लेकिन उन्हें जल्द ही अपनी गलती का अहसास हो जाएगा।'

दूसरी ओर ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ ने तुर्की और अमेरिका के बीच बढ़ते विवाद में कूदते हुए वाशिंगटन पर आरोप लगाया कि उसे 'प्रतिबंध लगाने और धौंस दिखाने की लत' लग गयी है। उन्होंने कहा, 'अमेरिका को प्रतिबंधों और धमकाने की लत से मुक्ति पानी चाहिये नहीं तो समूची दुनिया मौखिक निंदा से आगे बढ़कर उसे मजबूर करने के लिये एकजुट हो जाएगी।' उन्होंने कहा, 'हम पहले भी पड़ोसियों के साथ खड़े हुए हैं और अब भी ऐसा करेंगे।

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चीन और फिलिस्तीन भी आये तुर्की के समर्थन में

तुर्की के संकट में कई देश उसका समर्थन का रहे हैं। एक नए उपाय में चीनी अरबपति जैक मा की अगुआई वाले सबसे अमीर पचास चीनी व्यापारियों ने साझेदारी स्थापित करने और नए निवेश के अवसरों की खोज के लिए तुर्की की ओर कदम बढ़ाया है। चीनी समूह में ऐसे व्यवसायी शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक का व्यक्तिगत धन 15 से 30 अरब डॉलर तक का है। फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने भी तुर्की को समर्थन देने की बात पर जोर दिया है। अब्बास ने एर्दोगान ने बात करके तुर्की के हालत बेहतर होने की उम्मीद जताई है।

कतर ने भी हाथ बढ़ाया

अमेरिका - तुर्की झगड़े में कतर ने तुर्की की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है और लीरा को संभालने के लिए कुछ कदम उठाने की घोषणा की है। कतर ने तुर्की के अधिकारियों के साथा बातचीत के बाद घोषणा की कि उन्होंने करेंसी स्वैप के लिए द्विपक्षीय समझौता किया है। करेंसी स्वैप से द्विपक्षीय व्यापार बढ़ेगा और लीरा में स्थिरता आएगी। इससे पहले, कतर ने घोषणा की थी कि वो तुर्की में 1500 करोड़ डॉलर का प्रत्यक्ष निवेश करेगा।लीरा में इस साल डॉलर के मुक़ाबले 40 फीसदी की गिरावट आई है।

पादरी की गिरफ्तारी पर ठनी

तुर्की ने अमेरिका के एंड्रयू ब्रूसन नाम के एक पादरी को अक्टूबर 2016 में गिरफ्तार कर लिया था। वो दो सालों तक तुर्की की जेल में रहे। उन्हें अब भी तुर्की ने छोड़ा नहीं है। एंड्रयू को रिहा नहीं करने पर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी और उसने ऐसा कर दिखाया। ट्रंप ने तुर्की के इस्पात और एल्यूमीनियम पर भी आयात शुल्क को बढ़ाकर दोगुना कर दिया। एंड्रयू की गिरफ्तारी राजनीतिक समूहों के साथ कथित संबंधों को लेकर हुई थी। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव सारा सेंडर्स का कहना है, 'हमें लगता है कि वह (एंड्रयू)अनुचित और अन्यायपूर्ण हिरासत का शिकार हैं।

एंड्रयू काफी समय से तुर्की में रह रहे हैं। वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं व इज्मिर के एक चर्च में वह पादरी के तौर पर काम करते हैं। इस चर्च से तकऱीबन दो दर्जन जनसमूह जुड़े हुए हैं। तुर्की प्रशासन का आरोप है कि एंड्रयू के गैर-कानूनी कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) और गुलेन आंदोलन के साथ संबंध हैं। गुलेन आंदोलन पर 2016 के असफल तख्तापलट का आरोप लगाया जाता है। वहीं, एंड्रयू ने इन सभी आरोपों से इनकार किया है, लेकिन अगर वह दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें 35 साल तक की जेल की सजा सुनाई जा सकती है। स्वास्थ्य कारणों से उन्हें पिछले महीने घर में नजरबंद कर दिया गया था, लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि यह काफी नहीं है। पोम्पियो ने ट्वीट किया था, हमें एंड्रयू के खिलाफ विश्वसनीय सबूत नहीं मिले हैं।

दो साल पहले असफल तख्तापलट के बाद एंड्रयू समेत 20 अमरीकियों पर मामला चलाया गया था। इस दौरान हुई कार्रवाई में 50 हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था। राष्ट्रपति ने पेंसिल्वेनिया स्थित मुस्लिम नेता फेतुल्लाह गुलेन पर इसकी कोशिश का आरोप लगाया, लेकिन गुलेन ने इससे इनकार किया। तुर्की चाहता है कि अमेरिका उनका प्रत्यर्पण करे। अर्दोआन संकेत दे चुके हैं कि वो गुलेन के बदले पादरी को दे सकते हैं। सीरिया के गृह युद्ध में कुर्दिश बलों को अमेरिकी समर्थन से भी अर्दोआन नाराज हैं। उनका मानना है कि यह बल पीकेके का विस्तारित रूप है। पीकेके तुर्क-कुर्द विद्रोह समूह है जो 1980 से स्वायत्ता के लिए लड़ रहा है। अमेरिका और तुर्की इसे एक आतंकी समूह मानते हैं।

अभी लीरा का शुमार दुनिया की वैसी मुद्रा में है जिसके दुर्दिन ठीक होने के नाम ही नहीं ले रहे। इस साल लीरा में अब तक 40 फीसदी की गिरावट आई है। यह गिरावट लंबी अवधि से जारी है। पांच साल पहले दो लीरा देकर एक अमेरिकी डॉलर खऱीदा जा सकता था, लेकिन अब एक डॉलर के लिए 6.50 लीरा देने पड़ रहे हैं। कुछ समय पहले तक दुनियाभर की आर्थिक शक्तियों में तुर्की को वही स्थान हासिल था जो भारत और चीन को हासिल है। यानी तीनों देश तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं थीं।

इन देशों की ग्रोथ दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले काफी अच्छी थी। साल 2008 के मंदी के माहौल के बाद अमेरिका समेत दुनिया के तमाम विकसित देशों ने ग्रोथ हासिल करने के लिए ब्याज दरें घटाई ताकि उद्योगों को सस्ता कर्ज़ मिल सके। तुर्की ने इस माहौल का खूब फ़ायदा उठाया और वहाँ की कंपनियों को विदेशों ख़ासकर कई यूरोपीय बैंकों से सस्ता कर्ज़ मिला, जिसके दम पर वहाँ के रियल एस्टेट कारोबार और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को रफ्तार मिली। भारत और चीन के मुक़ाबले तुर्की विदेशी मुद्रा के कर्ज पर अधिक निर्भर था और यही उसके मौजूदा संकट की बड़ी वजह है। तुर्की की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा का दबदबा है और कुल कर्ज़ में 70 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा डॉलर में लिया गया कर्ज़ है।

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