US Deports Indians: सच्चाई का आईना है अमेरिका से वापसी
America Se Kyu Nikale Gaye Bhartiya: हाल ही में अमेरिका से कुछ अवैध भारतीय प्रवासियों को भारत भेजा गया। लेकिन जिस तरह से भेजा गया, उसे लेकर देश में काफी हंगामा मचा। हालांकि एक बड़ा सवाल ये भी है कि आखिर भारतीय अपना ही देश छोड़कर दूसरे देशों में बसने पर मजबूर क्यों हैं।;
America Se Kyu Nikale Gaye Bhartiya: अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के राष्ट्रपति पद पर विजय को लेकर भारत की बाँछें अमिरकियों से कुछ कम नहीं खिलीं। लग रहा था ट्रंप के आने के बाद मानो भारत के हाथ अलादीन का चिराग़ लग गया है। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौर में तमाम कामों की एक फ़ेहरिस्त पेश करते हुए कहा था कि कार्यकाल के पहले दिन उन्हें इस फ़ेहरिस्त पर अमल कर देना है। इस फ़ेहरिस्त में अवैध अप्रवासियों का एजेंडा भी था। लिहाज़ा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद से अवैध प्रवासियों का मुद्दा गरमाया हुआ है। वहां अवैध रूप से घुसे लोगों को ढूंढ ढूंढ कर उनके देश वापिस भेजा जा रहा है। भारत भी इन देशों में शामिल है।
यूं तो अमेरिका में साढ़े सात लाख से ज्यादा ही अवैध भारतीय प्रवासी बताए जाते हैं। लेकिन अभी तक वापसी 104 लोगों की ही हुई है। आगे क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। ट्रम्प अवैध प्रवासियों को निकाल बाहर करने के वादे के साथ सत्ता में लौटे हैं सो ये तय ही है कि उनकी कार्रवाई सुस्त नहीं पड़ने वाली। अभी मेक्सिको, होंडुरास, अल सल्वाडोर जैसे कई देशों के घुसपैठियों को बाहर किया जा चुका है। जो निकाले जा रहे उनकी बेइज्जती में भी कोई रियायत नहीं है। हथकड़ी, बेड़ी, जंजीर से बांध कर ये लोग भेजे जा रहे हैं।
अमेरिका के कानूनी अधिकार क्षेत्र में ऐसा बर्ताव
भारत लौटी खेप में भी ऐसा ही रहा और हमारे विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा भी है कि ऐसा बर्ताव अमेरिका के कानूनी अधिकार क्षेत्र में है। संसद को बताया यह भी गया है कि अमेरिका से पहले भी कई विमान भर कर अवैध प्रवासी लौटाए जा चुके हैं और ये एक रूटीन प्रक्रिया है, सो अब कोई हैरान होने वाली बात नहीं। संसद में अपनी बात रखते हुए जयशंकर ने मनमोहन सिंह का कार्यकाल में कितने लोग कब कब भारत वापस भेजे गये, इन आँकड़ों का भी खुलासा किया।
जयशंकर इन आँकड़ों को पेश करते समय यह बताना चाहते थे कि उनकी सरकार के दौर में ही नहीं, हर सरकारों के दौर में अवैध घुसपैठ और उन्हें भारत वापस भेजने का चलन रहा है। पर यह सब कहते हुए वह यह भूल रहे थे कि इस समय भारत विश्व गुरु की होड़ में है। वह सोने की चिड़िया वाले युग में लौट रहा है। वह एक महाशक्ति बन रहा है। वह भी ऐसी महाशक्ति जिससे चीन, रुस और अमेरिका भी आँख नहीं दिखा सकते हैं। यह भी एक सच्चाई कि भारत एक बड़ा बाज़ार है। इस बाज़ार से दूरी बनाकर अपने देश की अर्थव्यवस्था को गति दे पाना किसी के बूते की बात नहीं है। यही नहीं, अगर मनमोहन सिंह व कांग्रेस के कालखंड में अवैध घुसपैठिये वापस भेजे जा रहे थे, तो नरेंद्र मोदी व भाजपा के कालखंड में अंतर क्या है? जनता ने कांग्रेस को तो सिरे से ख़ारिज कर दिया है।
प्रक्रिया पर लोगों की हैरानी
बहरहाल, लोग तो हैरान हैं। हैरानी जंजीर बांधने पर है। हालाँकि जनता की हैरानी इस पर भी है कि ये सब बहुत पहले से हो रहा है। हैरानी इस बात पर भी है कि हमारे यहां चुनावों में तथा वैसे भी बयानों - भाषणों में बांग्लादेशी - म्यांमार से आये अवैध प्रवासियों की बातें तो बड़ी बड़ी होती हैं। लेकिन आज तक विमान तो दूर, ट्रक भर कर भी इनको वापस भेजे जाने की खबर नहीं मिली। लेकिन इस पर न तो किसी से कोई सवाल है पूछा गया न ही अवैध अप्रवासियों/ घुसपैठियों के वायदे नेताओं वरैदनीति दलों को याद दिलाये गये।
हर चीज में राजनीति की तरह, भारतीय ‘घुसपैठियों’ की हथकड़ी में वापसी पर भी थोड़ी बहुत राजनीति हो रही है। नेता आहत हैं कि क्यों जंजीरे बांधी गईं। पंजाब के मंत्री तो ये तक डिमांड कर रहे हैं कि अमेरिका में घुसपैठ करने वाले वहां की इकोनॉमी में योगदान कर रहे हैं, सो उनको ‘वैध’ कर दिया जाना चाहिए। यह खतरनाक और मूर्खतापूर्ण कुतर्क है। ऐसे तो हमारे यहां के घुसपैठियों, जिनका हम कुछ नहीं कर पाये, के बारे में कल को कोई भी यही बात कह सकता है।
क्या हमारी आज़ादी के 78 साल की यही गौरवपूर्ण उपलब्धि है?
अमेरिका से निकाले गए भारतीयों का मसला हम सभी के लिए परेशानी की बात होनी चाहिए। दुख और शर्मिंदगी की बात होनी चाहिए। आक्रोश की बात होनी चाहिए। लेकिन शर्मिंदगी, दुख और आक्रोश हथकड़ी-जंजीर बांध कर वापस भारत भेज देने पर नहीं पर नहीं बल्कि इस बात पर होना चाहिए कि आज हमारे साथी भारतीय नागरिक बांग्लादेशी और रोहिंग्या सरीखे घुसपैठियों की मानिंद देखे जा रहे हैं। क्या हमारी आज़ादी के 78 साल की यही गौरवपूर्ण उपलब्धि है? भारत से हर साल लाखों अमीर, गरीब और मिडिल क्लास वाले येन-केन-प्रकारेण बाहर पलायन कर जाते हैं, आखिर क्यों?
आज जो नेता जंजीर-हथकड़ी पर तमतमाये हुए हैं, उन्हें तनिक शर्म नहीं आती कि उन्होंने किस हाल में देश और समाज को पहुंचा दिया है, जहां विदेश निकल जाना जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि मानी जाने लगी है? हम इस पर गर्व करने लगे हैं कि मेरा बेटा- बेटी विदेश में हैं। पर हम इस तथ्य पर घमंड करें या चुल्लू भर पानी ढूंढें कि बांग्लादेश-म्यांमार छोड़कर शायद ही किसी देश से कोई यहां बसना चाहता होगा। अमेरिका, रुस, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्विट्जरलैंड, आदि विकसित देशों से लोग दूसरे किसी देश में क्यों नहीं जाकर बसना चाहते हैं।
शक की नजरों से देखे जा रहे भारतीय
जरा यूट्यूब पर भारतीय ट्रैवेल व्लोगर्स के वीडियो देखिए। उन्हें वीज़ा होते हुए भी संदेह की निगाह से देखे जाने, सीमा पार करने से इनकार किये जाने और घण्टों की पूछताछ से रूबरू होने, बेइज्जत होने के कितने ही किस्से हैं। लेकिन क्यों? सिर्फ इसलिए कि हम पर गलत तरीके से अमेरिका-यूरोप घुसने का शक स्थापित हो चुका है।
किसने बनाये हैं ये हालात? भला कौन चाहेगा अपना घर, अपना वतन छोड़ना? क्यों मजबूर हुए हैं हम? आज विदेश क्या, हम तो देश में ही इधर से उधर भटकने को मजबूर हैं। जिस तरह बिहार, यूपी, बंगाल के लाखों लोग ट्रेनों में भेड़ बकरी की तरह ठूंस कर मुंबई, दिल्ली, बंगलोर, हैदराबाद जैसी जगहों पर जाने को मजबूर हैं, वैसे ही अनगिनत लोग भाग जाने को आतुर हैं। अचरज इस बात का भी है कि देश से पलायन करने वालों में पंजाब जैसा कृषि समृद्ध राज्य और गुजरात जैसा व्यवसाय समृद्ध राज्य टॉप पर हैं। कहाँ और क्या गड़बड़ हो गई है कि इन राज्यों से लोग पचासों लाख रुपये खर्च कर भाग रहे हैं? अमेरिका सीमा पर बर्फीले तूफान में या पनामा के जंगल में हलाक हो रहे हैं।
जरा सोचिए, खासकर पंजाब, हरियाणा, गुजरात में लोगों को अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया भेजने का बहुत बड़ा बिजनेस स्थापित हो चुका है। पढ़ाई की आड़ में फर्जी एडमिशन और नकली दस्तावेजों की बिना पर कितने ही लोग बाहर जा चुके हैं और जा रहे हैं। यह इतना बड़ा रैकेट हो चला है कि चार्टर्ड विमानों में भरकर अवैध प्रवास कराया जाने लगा है। कोई इस धंधे पर नजर क्यों नहीं डालता? क्यों नहीं कोई पूछता कि इस धंधे के तरक्की करने की वजह क्या है?
हालात आंख खोलने वाले हैं। रेतीले तूफान में शतर्मुर्ग की तरह मुंह छुपाने से काम नहीं चलने वाला। जंजीर और हथकड़ी पर रोने वाले और इसे रूटीन बताने वाले, दोनों ही जवाबदेह हैं। और जवाब मांगा जाना चाहिए। सवाल हमें खुद से भी पूछना चाहिए कि हमने ऐसा क्या क्या कर दिया है कि हम खुद अपने बच्चों से भाग जाने को कहने को मजबूर हैं। देश और समाज कोई पारलौकिक चीज नहीं होती, वह इंसानों से बनती है। बतौर इंसान ये हम सबके सामने सवाल है जिसका जवाब हमको भी देना होगा।
(लेखक पत्रकार हैं। दैनिक पूर्वोदय से साभार।)