Nepal Election 2022: भारत के लिए क्यों है नेपाल चुनाव अहम, चीन की भी पैनी नजर

Nepal Election 2022: ओली के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भारत और नेपाल के संबंधों में काफी गिरावट आ चुकी है। वामपंथी नेता बीजिंग के इशारे पर लगातार काठमांडु से भारत विरोधी बयान देते रहते थे।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-11-23 17:31 IST

Nepal Election 2022। (Social Media)

Nepal Election 2022: एशिया के दो महाशक्तियों भारत और चीन के बीच स्थित नेपाल को एक 'बफर स्टेट' की संज्ञा दी जाती रही है। सांस्कृतिक रूप से नेपाल की पहचान ऐतिहासिक रूप से भारत के साथ जुड़ी हुई है। दोनों देशों की बहुसंख्यक आबादी हिंदू धर्म को मानती है। दोनों देशों के बीच 'रोटी – बेटी' का संबंध रहा है। यहां के नागरिक एक दूसरे के यहां बिना वीजा के यात्रा कर सकते हैं। लेकिन हाल के दिनों दोनों देशों के संबंधों में खटास आई है।

नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां खासकर पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाला गुट चीन की तरफ अधिक झुकाव रखता है। हालिया संपन्न आम चुनाव में मुकाबला चीन की तरफदारी करने वाले ओली और वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देऊबा के बीच ही थी। देऊबा भारत के साथ टकराव भरे रिश्तों के बजाय प्रगाढ़ संबंध के पक्षधर हैं। यही वजह है कि उनके चुनावी प्रदर्शन पर काफी कुछ भारत का भी दांव पर है।

ओली ने भारत विरोध को खूब हवा दी

नेपाल में चुनाव प्रचार के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत के खिलाफ जमकर जहर उगला। उन्होंने अपनी रैलियों में भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद को उठाते हुए भड़काऊ भाषण दिया। वह अपनी रैलियों में कहा करते थे कि वह नेपाल की एक इंच भूमि भी भारत के हिस्से में नहीं जाने देंगे। प्रधानमंत्री बनते ही भारत के साथ सीमा विवाद हल कर देंगे। ओली के तेवर बताते हैं कि उसे पीछे से किसका समर्थन हासिल है।

भारत और नेपाल के संबंधों में काफी गिरावट आ चुकी है: ओली पीएम

ओली के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भारत और नेपाल के संबंधों में काफी गिरावट आ चुकी है। वामपंथी नेता बीजिंग के इशारे पर लगातार काठमांडु से भारत विरोधी बयान देते रहते थे। साल 2019 में ओली ने प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भारत सरकार द्वारा जारी नए नक्शे पर आपत्ति जताई थी, जिसमें कालापानी इलाके को भारत के हिस्से में दिखाया गया था। ओली ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताते हुए संसद से नया नक्शा भी पास करा लिया था। जिसपर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। भारत इन जगहों को उत्तराखंड राज्य का हिस्सा मानता है।

देऊबा बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने के पक्षधर

नेपाली में ओली सरकार के गिरने के बाद प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेर बहादुर देऊबा ने फिर से दोनों देशों के संबंधों में गर्मजोशी लाने की कवायद शुरू की और इसके अच्छे परिणाम भी आए। वामपंथी ओली के उलट देऊबा भारत के साथ जारी सीमा विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने के पक्षधर हैं। देऊबा का फोकस दोनों देशों के संबंधों को मजबूती प्रदान करने पर रहा है। नेपाली कांग्रेस के नेता किसी एक पक्ष की तरफ झुकने की बजाय दोनों पक्षों के बीच संतुलन कायम रखना चाहते हैं। भारत के लोकतांत्रिक ढ़ांचे के कारण स्वाभाविक तौर पर चीन के बजाय पार्टी ने हमेशा भारत को तरजीह दी है।

अमेरिका की भी नेपाल पर नजर

नेपाल आम चुनाव पर अमेरिका की भी नजर है। चीन ने जिस तरह दुनिया के छोटे और गरीब देशों को अपने जाल में फंसाया है, उसमें अगला नंबर नेपाल का हो सकता है। पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली की सरकार के दौरान बीजिंग का काठमांडू में जबरदस्त राजनीतिक प्रभाव बढ़ा है। इससे भारत के साथ – साथ अमेरिका भी चिंतित है। नेपाल के सियासी दलों में चीन और अमेरिका से आर्थिक मदद लेने पर भी मतभेद है। वर्तमान देऊबा सरकार ने मेरिका मिलेनियम चैलेंज कोआपरेशन के तहत 42 हजार करोड़ रुपये की मदद को स्वीऊकार कर इसे संसद से पारित भी करवा लिया है। वहीं, पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को लेकर ज्यादा उत्सुक हैं। भारत और अमेरिका शुरू से इस प्रोजेक्ट के खिलाफ रहे हैं।

नेपाल में मतों की गिनती जारी, देऊबा ने जीती अपनी सीट

नेपाल की 275 लोकसभा सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान खत्म हो गया था। इसके बाद 21 नवंबर से कड़ी सुरक्षा के बीच वोटों की गिनती शुरू हुई थी, जो कि जारी है। अब तक के मतगणना के मुताबिक, वर्तमान पीएम देऊबा की अगुवाई वाले गठबंधन ने 10 सीटों पर जीत हासिल कर ली है, वहीं पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले विपक्षी खेमे ने तीन सीटें जीती हैं। इस चुनाव में 1 करोड़ 80 लाख मतदाताओं ने हिस्सा लिया था। इसके परिणाम के एक हफ्ते में आने की संभावना है।     

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