Fake news: सच पर भारी लाखों बिलियन का झूठा बाजार, तो भरोसा किस पर...
सोशल मीडिया पर हर रोज हम लोग काफी संख्या में ऐसी पोस्ट देखते हैं , जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता...
Y-Factor (Yogesh Mishra): हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स कहा करते थे , "एक झूठ को अगर कई बार दोहराया जाए तो वह सच बन जाता है।" इन दिनों आभासी दुनिया भी गोएबल्स के इस कहने पर चलने लगी है। आपको ऐसे अनेक व निरंतर उदाहरण मिल रहे होंगे। सोशल मीडिया (Social Media) पर हर रोज हम लोग काफी संख्या में ऐसी पोस्ट देखते हैं , जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता। यहां केवल झूठी जानकारी ही नहीं बल्कि
वीडियो को भी तोड़- मरोड़ कर पेश कर अपने दावे को पुख्ता करने की कोशिश का भी चलन हैं। विचारों और सियासी सोच के आधार पर विभिन्न खेमों में बंटे लोग अपनी बात को सचसाबित करने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अप्रैल महीने में किए गए किए गए एक सर्वे में खुलासा हुआ था कि 30 दिनों में फेसबुक (Facebook) और व्हाट्सएप (Whatsapp) पर हर दो भारतीयों में से एक को झूठी खबर प्राप्त हुई। सोशल मीडिया के इन दोनों मंचों का यूजर्स तक गलत जानकारी पहुंचाने के लिए जमकर उपयोग किया गया।
ऑनलाइन स्टार्टअप सोशल मीडिया मैटर्स और नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट फॉर गवर्नेंस पॉलिसीज एंडपॉलिटिक्स की ओर से किए गए सर्वे में पाया गया के 53 फ़ीसदी भारतीयों को सोशल मीडिया मंचों पर चुनाव से जुड़ी गलत सूचना ही मिलती है। इस सर्वे में करीब 62 फ़ीसदी लोगों का मानना था कि लोकसभा चुनाव फेक न्यूज़ के प्रसार से जरूर प्रभावित होगा।
सर्वे के नतीजों के मुताबिक फेसबुक और व्हाट्सएप गलत सूचनाओं को फैलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सबसे प्रमुख मंच हैं। सर्वे में यह भी कहा गया कि 50 करोड़ लोगों की इंटरनेट तक पहुँच होने के कारण झूठे समाचारों (Fake News) का व्यापक प्रभाव पड़ता है। यदि ऐसे केसों की पड़ताल की जाए जिनके जरिए झूठ फैलाने की कोशिश की गई तो उनका कोईअंत ही नहीं है । मगर यहां कुछ प्रमुख झूठे केसों का उदाहरण जरूर दिया जा सकता है।
केस नंबर एक इस साल वैलेंटाइन डे के दिन 14 फरवरी को फेसबुक पर हिंदी और बंगाली में एक संदेश जमकर वायरल हुआ। इस संदेश में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फोटो के साथ कैप्शन लिखा गयाथा कि 14 फरवरी सिर्फ वैलेंटाइन डे ही नहीं है। 1931 में इसी दिन भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरू को लाहौर में फांसी की सजा सुनाई गई थी। अब यदि इस संदेश की सच्चाई की पड़ताल की जाए तो सच्चाई यह है कि भगत सिंह, सुखदेव औरराजगुरु को फांसी की सजा लाहौर में 7 अक्टूबर,1930 को सुनाई गई थी। बाद में देश के इन तीनों प्रसिद्ध क्रांतिकारियों को 23 मार्च , 1931 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। संदेश में किये गये दावे के मुताबिक 14 फरवरी की तारीख का इस पूरे मामले से कोई लेना-देना ही नहीं था।
केस नंबर दो - पिछले दिनों ट्विटर और सोशल मीडिया पर डाली गई एक वीडियो क्लिप में दावा किया गया किपाकिस्तान की नेशनल असेंबली में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में खूब नारे गूंजे।भाजपा सांसद शोभा करांडलाजे ने भी ट्विटर पर एक वीडियो डालते हुए दावा किया कि पाकिस्तान की संसद में इमरान खान के सरकार के खिलाफ विपक्षी सांसदों ने मोदी-मोदी के नारे लगाए।
इस वीडियो में दिख रहा है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री के संबोधन के दौरान विपक्ष की ओर से मोदी-मोदी के नारे लगाए जा रहे हैं। एक टीवी चैनल के नामी एंकर ने भी इस वीडियो क्लिप को ट्वीट करते हुए कहा कि अभी तो यह झांकी है, लाहौर , कराची बाकी है। कुछ न्यूज़ पोर्टल में भी यह खबर प्रसारित हो गई कि पाकिस्तान संसद में मोदी मोदी के नारे गूंजे। जब इस वीडियो क्लिप के सच्चाई की पड़ताल की गई तो पता चला है कि पाकिस्तान की संसद में वोटिंग वोटिंग के नारे गूंजे थे , जिसे मोदी-मोदी के नारे के रूप में पेश किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में इस तरह की कोई नारे बाज़ी नहीं हुई। हालांकि यह सच्चाई है कि सदन की कार्यवाही के दौरान सत्ता पक्ष के नेताओं ने विपक्ष पर भारत के प्रधानमंत्री पीएम मोदी के साथ मिलीभगत करके देश में अराजकता फैलाने का आरोप ज़रूर लगाया।
बाकी की जानकारी वीडियो में देखें......