Pandit Jawahar lal Nehru: पंडित नेहरू से जुड़ी कुछ अनसुनी कहानियां, देखें Y-Factor...
नेहरू की आदत में था कि परेशानी में पड़े लोगों को पैसे बांटे...
Pandit Jawahar lal Nehru: पंडित जवाहर लाल नेहरू को लेकर तमाम तरह के किस्से और कहानियां हर समय चर्चा में आते जाते हैं। आज हम नेहरू के जीवन के कुछ उन पहलुओं के बारे जिक्र करेंगे, जिस पर यकीन करना मुश्किल होगा। हर किसी ने यह सुना होगा कि नेहरू जब पढ़ते थे तो उनका कपड़ा विदेश से धुल कर आता था। यह भी जरूर सुना होगा कि नेहरू के पिता ने विश्वविद्यालय के सभी गेटों पर उनके लिए गाड़ियां खड़ी कर रखी थीं।
इसमें कितनी हकीकत है और कितना फंसाना। यह कहना मुश्किल है। लेकिन हम जो बताने जा रहे हैं वह सिर्फ हकीकत है। नेहरू की आदत में था कि परेशानी में पड़े लोगों को पैसे बांटे। उनकी इस आदत से परेशान उनके पीए मथाई ने उनकी जेब में पैसे रखने पर रोक लगा दी थी। जबकि नेहरू अपनी जेब में हमेशा दो सौ रुपये ही रखते थे।
रोक लगाए जाने के बाद नेहरू ने लोगों की मदद करने के लिए उधार लेना शुरू कर दिया। बाद में यह आदेश करवाया गया कि कोई भी अधिकारी नेहरू को दस रुपये से अधिक उधार न दें। नेहरू के सचिव मथाई ने जब यह देखा कि उधार मांगने की उनकी आदत खत्म नहीं हो रही है। तब प्रधानमंत्री सहायता कोष से कुछ पैसे उनके पास रखवाने शुरू कर दिए।
नेहरू बेहद कंजूस थे। वह अपने ऊपर बहुत कम पैसा खर्च करते थे। वह ए.सी. का इस्तेमाल नहीं करते थे। वह रात में बरामदे में सोना पसंद करते थे। उन्हें मिट्टी की सुगंध पसंद थी। पंजाब के मुख्यमंत्री रहे भीम सेन सच्चर ने यह बात कुलदीप नैय्यर को बताई कि नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित शिमला के राजभवन में रुकीं। उन्होंने कोई भुगतान नहीं किया। बाद में नेहरू जी को पता चला तब उन्होंने कहा कि मैं इतने पैसे तो एक साथ नहीं दे सकता। लेकिन पांच किश्तों में इसे अदा कर दूंगा। उन्होंने यह किया भी।
नेहरू को पानी और बिजली की बर्बादी बिल्कुल पसंद नहीं थी। वह कहीं यात्रा करते थे तो कार रुकवा कर बह रहे पानी का नल बंद करवाते थे। विदेश में गए तो वहां जिस भवन में उनके लिए दावत रखी गई थी। चलते समय उन्होंने खुद हर कमरे की लाइट बुझाई थी। एक बार डिब्रूगढ़ की यात्रा के दौरान नेहरू के सुरक्षा अधिकारी रुस्तम जी उनका सिगरेट केस लेने कमरे में गए। तो देखा कि उनका नौकर उनके फटे हुए काले मोजे सिल रहा है।
नेहरू की शाहखर्ची लोगों को एक बार तब दिखी थी जब उन्होंने सैस ब्रूनर की गांधी पर बनाई गई पेंटिंग खरीदने के लिए फटाक से पांच हजार रुपये खर्च कर दिये। जब उनका निधन हुआ तब उनके पास सिर्फ पुश्तैनी घर आनंद भवन था। बैंक में इतने ही पैसे थे कि वे हाउस टैक्स चुका पाए।
आजादी के समय प्रधानमंत्री का वेतन तीन हजार रुपये प्रतिमाह तय किया गया था। नेहरू पहले उसे 2250 रुपये और फिर 2000 रुपये प्रतिमाह पर ले आये। नेहरू के कुछ मंत्रियों ने सलाह दी कि प्रधानमंत्री का वेतन मंत्रियों के वेतन से दोगुना होना चाहिए। नेहरू नहीं माने। महात्मा गांधी की हत्या के पहले नेहरू 17 यार्क रोड पर फोर बेडरूम के एक बंगले में रहते थे। इसे आज मोती लाल नेहरू मार्ग के नाम से जाना जाता है। लेकिन बाद में सुरक्षा के नाते कमांडर इन चीफ के निवास में रहने आ गए। यह सलाह उन्हें लार्ड माउंटवेटन ने भी दी थी। लेकिन जब वे इस मकान में रहने आए तो उन्होंने प्रधानमंत्री को मिलने वाली इंटरटेनमेंट की धनराशि लेने से मना कर दिया। यह उस समय पांच सौ रुपये महीने थी।
नेहरू को गुस्सा बहुत आता था। गुस्से में वे सारी हदें पार कर जाते थे। 1953 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली दिल्ली आए। हवाई अड्डे पर कैमरामैन ने उन्हें घेर लिया। नेहरू को यह बात इतनी खराब लगी कि वह गुस्से में चिल्लाते हुए कैमरामैन के पीछे दौड़ पड़े।