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झगडा इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड का

सरकार का कहना है कि प्रस्तावित कोड पुराने और जटिल श्रम नियमों को सरल करेगा, कारोबारी माहौल और रोजगार में सुधार लाएगा| वहीं यूनियनों ने संबंधित बिल को श्रमिक विरोधी कहा है|

Shivakant Shukla
Published on: 8 Jan 2020 5:53 PM IST
झगडा इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड का
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नई दिल्ली: दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने बुधवार को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान कर रखा है| इनका मुख्य विरोध केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘औद्योगिक संबंध कोड’ या इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड है। सरकार का कहना है कि प्रस्तावित कोड पुराने और जटिल श्रम नियमों को सरल करेगा, कारोबारी माहौल और रोजगार में सुधार लाएगा| वहीं यूनियनों ने संबंधित बिल को श्रमिक विरोधी कहा है|

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यूनियनों ने कहा है कि नए कोड से नियोक्ताओं को कर्मचारियों को काम पर रखने बड़ी आसानी से निकलने की अनुमति मिल जायेगी| ये भी कहा जा रहा है कि इस कोड में श्रमिकों के हितों की रक्षा की कोई बात नहीं है| इस कोड के चलते श्रमिकों के लिए काम की बेहतर शर्तों और वेतन जैसे मुद्दों पर बातचीत करना कठिन हो जाएगा| हड़ताल करना बहुत कठिन होगा|

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2 अगस्त, 2019 को ‘कोड ऑफ वेजेस’ पारित किया गया था

सरकार का प्रयास इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड बिल , के जरिये तरह तरह के श्रमिक कानूनों को सुव्यवस्थित, एकीकृत और असान बनाने का है| इसके लिए चार लेबर कोड बनाये जायेंगे जो मजदूरी, औद्योगिक संबंधों, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थितियों पर अलग अलग होंगे| 2 अगस्त, 2019 को ‘कोड ऑफ वेजेस’ पारित किया गया था| ट्रेड यूनियनों की मांग है कि संहिताकरण को कम से कम तुरंत रोका जाए। तीन संहिताएं अभी पारित होनी हैं।भारत में श्रम कानून में सुधार आवश्यक है|

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विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों में 2011-12 से 2017-18 के बीच 3.5 मिलियन की कमी आई है। वर्तमान में, मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, श्रम कल्याण, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य और औद्योगिक संबंधों के लिए केंद्र सरकार के 44 श्रम-संबंधित कानून हैं। श्रम समवर्ती सूची में है जिससे केंद्रीय और राज्य सरकारों को कानून बनाने का अधिकार है नतीजन 100 से अधिक राज्य श्रम कानून हैं।

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ठेकेदारों के जरिये सीधे काम पर रखने की अनुमति मिल जायेगी

श्रम मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार औद्योगिक संबंध संहिता तीन पुराने श्रम कानूनों-ट्रेड यूनियनों अधिनियम, 1926, औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की जगह लेगी। बिल में एक विवादास्पद प्रावधान फिक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट का है जिससे कंपनियों को कम अवधि के लिए श्रमिकों को ठेकेदारों के जरिये सीधे काम पर रखने की अनुमति मिल जायेगी|

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एक निश्चित अवधि के लिए श्रमिकों को काम पर रखने से, नियोक्ता केवल उस अवधि के लिए मजदूरी और लाभ का भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध होंगे, जिसकी उन्हें वास्तव में आवश्यकता है। यह एक कंपनी के लिए मानव संसाधन लागत को कम करेगा।



Shivakant Shukla

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