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World Asthma Day 2023: अगर परफ़्यूम लगाने समेत करते हैं ये काम तो हो जाए सचेत, जानिए एक्स्पर्ट की राय
World Asthma Day 2023: वर्ष 1998 में बार्सिलोना, स्पेन में हुई पहली विश्व अस्थमा बैठक में तय किया गया था कि हर साल मई के पहले मंगलवार को "विश्व अस्थमा दिवस" मनाया जाएगा।
World Asthma Day 2023: वर्ष 1998 में बार्सिलोना, स्पेन में हुई पहली विश्व अस्थमा बैठक में तय किया गया था कि हर साल मई के पहले मंगलवार को "विश्व अस्थमा दिवस" मनाया जाएगा। 35 से अधिक देशों द्वारा पहला विश्व अस्थमा दिवस मनाया गया था। इसका उद्देश्य दुनिया भर में अस्थमा की बीमारी और देखभाल के बारे में जागरूकता फैलाना है। इस वर्ष विश्व अस्थमा दिवस की थीम अस्थमा केयर फॉर ऑल है।
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केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि दमा अस्थमा एक आनुवांशिक बीमारी है। सांस की नलियों में कुछ कारकों के प्रभाव से सूजन आ जाती है। इससे रोगी को सांस लेने में दिक्कत होती है। श्वास नलिकाओं की भीतरी दीवार में लाली और सूजन भी आ जाती है और उनमें बलगम बनने लगता है। ऐसे कारकों में धूल या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआँ, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड, मानसिक चिंता, व्यायाम, पालतू जानवर, पेड़-पौधों एवं फूलों के परागकण तथा वायरस व बैक्टीरिया के संक्रमण आदि प्रमुख होते हैं।
उन्होंने बताया ग्लोबल बर्डन ऑफ अस्थमा रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग तीन करोड़ लोग दमा से पीड़ित हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में यह संख्या 50 लाख से अधिक है। दो तिहाई से अधिक लोगों में दमा बचपन से ही शुरू हो जाता है। इसमें बच्चों को खाँसी होना, सांस फूलना, सीने में भारीपन, छींक आना व नाक बहना तथा बच्चे का सही विकास न हो पाना जैसे लक्षण होते हैं। इसके अलावा खाँसी जो रात में गम्भीर हो जाती हो, सांस लेने में दिक्कत जो दौरों के रूप में तकलीफ देती हो, छाती में कसाव/जकड़न, घरघटाहट जैसी आवाज आना, गले से सीटी जैसी आवाज आना आदि भी अस्थमा के लक्षण हो सकते हैं। एक तिहाई लोगों में दमा के लक्षण युवावस्था में प्रारम्भ हाते हैं। दमा के इलाज में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसमें दवा की मात्रा का कम इस्तेमाल होता है, असर सीधा एवं शीघ्र होता है एवं दवा का कुप्रभाव बहुत ही कम होता है।
अस्थमा के इलाज में दो प्रमुख इन्हेलर है कारगर
दमा के इलाज के लिए दो प्रमुख तरीके के इन्हेलर कारगर हैं। इस संबंध में डॉ सूर्यकांत का कहना है कि रिलीवर इन्हेलर जल्दी से काम करके श्वांस की नलिकाओं की मांसपेशियों का तनाव ढीला करते हैं। इससे सिकुड़ी हुई सांस की नलियां तुरन्त खुल जाती हैं। इनको सांस फूलने पर लेना होता है। कंट्रोलर इन्हेलर श्वास नलियों में उत्तेजना और सूजन घटाकर उनको अधिक संवेदनशील बनने से रोकते हैं और गम्भीर दौरे का खतरा कम करते हैं। रोगी का परीक्षण व फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच पीईएफआर, स्पाइरोमेट्री, इम्पल्स ओस्लिमेटरी द्वारा किया जाता है। खून की जांच, छाती व साइनस का एक्स-रे इत्यादि भी किया जाता है।
अस्थमा से बचाव के कारगर उपाय
इण्डियन कॉलेज ऑफ एलर्जी अस्थमा एण्ड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि बदलते मौसम में सांस की तकलीफ बढ़ती है तो मौसम बदलने के चार से छह सप्ताह पहले ही सजग हो जाना चाहिए। धूल, धुंआ, गर्दा, नमी, सर्दी व धूम्रपान आदि। शीतलपेय, फास्टफूड तथा केमिकल व प्रिजरवेटिव युक्त खाद्य पदार्थो , चाकलेट, टाफी, कोल्ड ड्रिंक व आइसक्रीम आदि से बचें।
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दमा के दौरे को रोकने के लिए क्या करें और क्या न करें
आईएमए-एकेडमी ऑफ मेडिकल स्पेसिलिटीज के नेशनल वॉयस चेयरमैन डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि इस मौसम में घटते-बढ़ते तापमान में रोगी खास ख्याल रखें। दवा पास रखें और कंट्रोलर इन्हेलर समय से लें। सिगरेट/सिगार व बीड़ी के धुएं से बचें तथा प्रमुख एलर्जन से बचें। फेफड़े को मजबूत बनाने के लिए सांस का व्यायाम अर्थात प्राणायाम करें। बच्चों को लम्बे रोंयेंदार कपड़े न पहनायें व रोंयेदार खिलौने खेलने को न दें। रेशम के तकिये का इस्तेमाल न करें। सेंमल की रूई से भरे तकिए, गद्दा या रजाई का इस्तेमाल न करें। रोगी एयरकंडीशन या कूलर के कमरे से एकदम गर्म हवा में बाहर न जायें। धुआँ, धूल, मिट्टी, वाली जगह से बिना नाक मुँह ढंके न गुजरें। इत्र या परफ्यूम का इस्तेमाल न करें।
युवा वर्ग ज्यादा होता है अस्थमा से प्रभावित
चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ विकास राजपूत का कहना है कि अस्थमा की बीमारी से युवा वर्ग ज्यादा प्रभावित होता है। 20 से 40 वर्ष तक के युवा इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आते हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन उनके द्वारा 100 से ज्यादा मरीज देखे जाते जाते हैं इनमें 30 से ज्यादा मरीज अस्थमा से पीड़ित आते हैं। उन्होंने बताया जिले की जो आबादी है उसके अनुसार जिले में डेढ से दो लाख लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। एलर्जी राइनाइटिस वाले मरीजों को अस्थमा का ज्यादा खतरा रहता है। इसके अलावा अधिक फैट वाले व थायराइड से ग्रसित लोग भी अस्थमा का ज्यादा शिकार होते हैं। अस्थमा के मरीजों को लापरवाही नहीं करनी चाहिए और सही ढंग से डॉक्टर की सलाह लेकर अपना पूरा इलाज करना चाहिए। गर्मियों में तापमान के साथ वायु प्रदूषण भी बढ़ जाता है जो अस्थमा से जूझ रहे लोगों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। इसके अलावा गर्म हवा की वजह से अस्थमा के मरीजों की खांसी बढ़ जाती है अस्थमा के मरीजों को विशेष एहतियात बरतने की आवश्यकता होती है।