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आतंकी खतरे के बाद जम्मू-कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त फोर्स तैनात, विपक्ष का विरोध

जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय करना ज़्यादा बड़ी ज़रूरत थी और इस काम को अंजाम देने के लिये धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को उस समय दिये गये थे। ये विशेष अधिकार निचले अनुभाग में दिये जा रहे हैं।

Manali Rastogi
Published on: 28 July 2019 11:03 AM GMT
आतंकी खतरे के बाद जम्मू-कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त फोर्स तैनात, विपक्ष का विरोध
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आतंकी खतरे के बाद जम्मू-कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त फोर्स तैनात, विपक्ष का विरोध

श्रीनगर: घाटी में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती के आदेश पर सियासत तेज हो गयी है। इनपुट के बाद की गयी अतिरिक्त जवानों की तैनाती के बाद से ख़बरें आ रही हैं कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35ए की तैयारी की जा रही है। दरअसल, आज काउंटर टेररिस्ट ग्रिड की अहम बैठक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने बुलाई थी।

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इस बैठक का मकसद आतंकवादियों के किसी भी बड़े हमले को रोकना था। बता दें, 15 अगस्त करीब है। ऐसे में आतंकवादी इसके आसपास बड़ा हमला करने की साजिश तैयार करते हैं। पहले से तैयार रहने के लिए यह फैसला किया गया कि जम्मू-कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती की जाये। मगर इसपर राजनीतिक रूप से खलबली मची हुई है।

बीजेपी ने किया थे ये वादा

वहीं, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) चाहती है कि कश्मीर से अनुच्छेद 35 ए और 370 खत्म हो जाये और इसका वादा भी पार्टी पहले ही कर चुकी है। अब सैनिकों की तैनाती और बीजेपी के इस वादे को जोड़कर देखा जा रहा है। इसलिए 35ए के हटाने से संबंधित चर्चा तेज हो गई है।

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15 अगस्त या उसके आसपास कोई बड़ा आतंकी हमला न हो, इसलिए इस बार गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान जारी किया था, जिसके अनुसार, सीआरपीएफ की 50, बीएसएफ की 10, एसएसबी की 30, आईटीबीपी की 10 कंपनियां जम्मू-कश्मीर में तैनात कर दी जायेंगी।

सभी दल कर रहे विरोध

हालांकि, अब जम्मू-कश्मीर के सभी दल इसका विरोध कर रहे हैं। राज्य में अतिरिक्त जवानों की तैनाती पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने कड़ा विरोध जताया है। मालूम हो, अनुच्छेद 370 और 35ए को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही लंबित हैं। इसपर मोदी सरकार से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने को कहा है।

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पीडीपी नेता व जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी इसपर बयान दिया है। उन्होंने रविवार को कहा कि 35ए के साथ छेड़छाड़ करना बारूद को हाथ लगाने जैसा होगा। इसके लिए जो हाथ उठेगा वो हाथ नहीं पूरा जिस्म जलकर राख हो जाएगा। इससे पहले घाटी में सुरक्षा बलों की अतिरिक्त तैनाती को लेकर महबूबा मुफ्ती बयानबाजी कर चुकी हैं। इस संबंध में उन्होंने कहा कि केंद्र ने घाटी में खौफ पैदा करने के लिए यह फैसला लिया है।

क्या कहता है संविधान का 35ए अनुच्छेद?

भारतीय संविधान का 35ए अनुच्छेद एक अनुच्छेद है जो जम्मू और कश्मीर राज्य विधानमण्डल को "स्थायी निवासी" परिभाषित करने तथा उन नागरिकों को विशेषाधिकार प्रदान करने का अधिकार देता है। यह भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर सरकार की सहमति से राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया, जो कि भारत के राष्ट्रपति द्वारा 14 मई 1954 को जारी किया गया था। यह अनुच्छेद 370 के खण्ड (1) में उल्लेखित है।

अनुच्छेद 370 क्या कहता है?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक ऐसा लेख है जो जम्मू और कश्मीर राज्य को स्वायत्तता का दर्जा देता है। संविधान के भाग XXI में लेख का मसौदा तैयार किया गया है: अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान।

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जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा को, इसकी स्थापना के बाद, भारतीय संविधान के उन लेखों की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिए या अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से निरस्त करना चाहिए।

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बाद में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना खुद को भंग कर दिया, इस लेख को भारतीय संविधान की एक स्थायी विशेषता माना गया।

विशेष अधिकार

  • धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिये।
  • इसी विशेष दर्ज़े के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती।
  • इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।
  • 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
  • इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते।
  • भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
  • जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय करना ज़्यादा बड़ी ज़रूरत थी और इस काम को अंजाम देने के लिये धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को उस समय दिये गये थे। ये विशेष अधिकार निचले अनुभाग में दिये जा रहे हैं।

विशेष अधिकारों की लिस्ट

  • जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
  • जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।
  • जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
  • जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं।
  • भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।
  • जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
  • धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई (RTI) और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते है।
  • कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।
  • कश्मीर में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं है।
  • कश्मीर में चपरासी को 2500 रूपये ही मिलते है।
  • कश्मीर में अल्पसंख्यकों [हिन्दू-सिख] को 16% आरक्षण नहीं मिलता।
  • धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
  • धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।

Manali Rastogi

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