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कांग्रेस का सबसे ताकतवर नेता, जो हो गया विद्रोही, जानें आचार्य जेबी कृपलानी के बारे में
देश आजाद होने के बाद जब भावी प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस में मतदान हो रहा था तो सरदार वल्लभ भाई पटेल के बाद सबसे अधिक मत आचार्य कृपलानी को ही मिले थे। लेकिन महात्मा गांधी की इच्छा का आदर कर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी दोनों ने ही अपना नाम वापस ले लिया था।
रामकृष्ण वाजपेयी
नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में एक बड़ा नाम है जीवटराम भगवानदास कृपलानी का। खासकर कांग्रेस के लिए तो यह नाम सबसे महत्वपूर्ण है। लेकिन दुनिया इस नाम को आचार्य जेबी कृपलानी के नाम से जानती है जोकि पहले एक शिक्षक थे। फिर राजनेता। देश जब 1947 में आजाद हुआ तो आचार्य जेबी कृपलानी ही कांग्रेस के अध्यक्ष थे। वह एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गांधीवादी, समाजवादी, पर्यावरणवादी भी थे।
प्रधानमंत्री की रेस में थे शामिल
महत्वपूर्ण बात यह है कि देश आजाद होने के बाद जब भावी प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस में मतदान हो रहा था तो सरदार वल्लभ भाई पटेल के बाद सबसे अधिक मत आचार्य कृपलानी को ही मिले थे। लेकिन महात्मा गांधी की इच्छा का आदर कर सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी दोनों ने ही अपना नाम वापस ले लिया था। इस तरह प. जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने।
सरकार के गठन में अहम भूमिका
यह बात भी बहुत कम लोगों को पता होगी कि देश में इमरजेंसी के बाद राजनीतिक परिवर्तन की लहर में जयप्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी ने ही 1977 में जनता सरकार के गठन में अहम भूमिका निभायी थी और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया था।
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(फोटो- सोशल मीडिया)
उच्च मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था जन्म
आचार्य जे. बी. कृपालानी का जन्म 11 नवंबर 1888 में हैदराबाद (सिन्ध) के उच्च मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिताजी एक राजस्व और न्यायिक अधिकारी थे। जेबी कृपलानी आठ भाई-बहन थे उनमें आचार्य जी छठे थे। कृपलानी की प्रारम्भिक शिक्षा सिंध में हुई। इसके बाद उन्होंने मुम्बई के विल्सन कॉलेज में प्रवेश लिया। इसके बाद वह कराची के डी जे सिंध कॉलेज पढ़ने चले गए। लेकिन पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से 1908 में उन्होंने स्नातक किया। इतिहास और अर्थशास्त्र में उन्होंने एमए किया।
ऐसे बने जीवटराम भगवानदास कृपलानी से आचार्य कृपलानी
कृपलानी 1912 से 1917 तक बिहार में "ग्रियर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज मुजफ्फरपुर" में अंग्रेजी और इतिहास के प्राध्यापक रहे और इसी दौरान वह महात्मा गांधी के संपर्क में आए जब बिहार में चंपारण सत्याग्रह हुआ। 1919 में उन्होंने थोड़े समय के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया। 1920 से 1927 तक कृपलानी महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ के प्रधानाचार्य रहे। यहीं से उन्हें आचार्य कृपलानी कहा जाना शुरू हुआ।
कई बार जेल भी गए कृपलानी
इस दौरान 1921 से होने वाले कांग्रेस के अधिकांश आन्दोलनों में कृपलानी ने हिस्सा लिया और अनेकों बार जेल गये। कृपलानी अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य बने और 1928-29 में वे इसके महासचिव बने।
1936 में वे सुचेता कृपलानी के साथ विवाह सूत्र में बंध गए। सुचेता मजूमदार बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में शिक्षक थीं। उनकी पत्नी हमेशा कांग्रेस पार्टी के साथ रहीं, मंत्री पद भी रहीं और उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री भी बनीं।
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1946 में बने कांग्रेस का अध्यक्ष
आचार्य कृपलानी ने 1934 से 1945 तक कांग्रेस के महासचिव के रूप में सेवा की तथा भारत के संविधान के निर्माण में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभायी। सन् 1946 में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
नेहरू और पटेल से वैचारिक मतभेद होने के बावजूद वह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1948 में जब महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई उसके बाद कृपलानी की यह मांग मानने से नेहरू ने इंकार कर दिया कि सभी निर्णयों में पार्टी का मत लिया जाना चाहिए।
नेहरू को इस मामले में पटेल का समर्थन भी हासिल था। नेहरू ने कृपलानी से कहा कि यद्यपि पार्टी एक मोटा सिद्धान्त और दिशानिर्देश बना सकती है किन्तु सरकार के दिन-प्रतिदिन के कार्य में उसे हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। यही बात आगे आने वाले दिनों में सरकार और पार्टी के सम्बन्धों के लिए नजीर बन गयी।
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कांग्रेस से इस्तीफा और किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाने तक का सफर
बाद में जब 1950 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव हुए तो नेहरू ने आचार्य कृपलानी का समर्थन किया। दूसरी ओर पुरुषोत्तम दास टण्डन थे जिनका समर्थन पटेल कर रहे थे। इसमें पुरुषोत्तम दास टण्डन विजयी हुए। अपनी हार से तथा गांधी के असंख्य ग्राम स्वराज्यों के सपने को चकनाचूर होते देखकर वे विचलित हो गए और 1951 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया तथा अन्य लोगों के सहयोग से किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनायी।
पत्नी बनी रहीं कांग्रेस के साथ
यह दल आगे चलकर प्रजा समाजवादी पार्टी में विलीन हो गया। उन्होंने चार लोकसभा चुनाव प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जीते। लेकिन उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी कांग्रेस में बनी रहीं और पति-पत्नी संसद के भीतर अक्सर एक दूसरे के विरुद्ध विचार रखते रहे।
(फोटो- सोशल मीडिया)
लोकसभा के इतिहास का पहला अविश्वास प्रस्ताव
भारत-चीन युद्ध के ठीक बाद, अगस्त 1963 में आचार्य कृपलानी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाए जो लोकसभा के इतिहास में लाया गया पहला अविश्वास प्रस्ताव था। बाद में उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी से भी इस्तीफा देकर स्वतंत्र रूप में कार्य किया।
बाद में उन्होंने अपना शेष जीवन सामाजिक एवं पर्यावरण के हित के लिए लगाया। उनकी छवि एक 'आध्यात्मिक नेता' की बन गई। खासकर वे और विनोबा भावे, 'गांधीवादी धड़े' के नेता माने जाते थे। दोनो 1970 के दशक के अन्त तक पर्यावरण एवं अन्य संरक्षणों में लगे रहे।
इंदिरा गांधी की तानाशाही प्रवृत्ति का किया विरोध
कृपलानी ने इंदिरा गांधी की भी तानाशाही की प्रवृत्ति का विरोध किया अनशन पर भी बैठे। लोगों ने नागरिक अवज्ञा और अहिंसक विरोध का आग्रह किया। 1976 में इमरजेंसी के दौरान वह गिरफ्तार होने वाले पहले प्रमुख नेताओं में शामिल थे। अंततः उनकी लड़ाई सफल रही और जनता सरकार बनी। 19 मार्च 1982 को 93 साल की उम्र में अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
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