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हजारों सैनिकों की लाशें: बर्बाद हो गया ये ताकतवर देश, रूस हुआ बेबस

दोनों देशों आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच जारी युद्ध के चलते रूस की तमाम कोशिशों के बाद सीजफायर का समझौता एक दिन भी चल न पाया।

Newstrack
Published on: 13 Oct 2020 1:45 PM GMT
हजारों सैनिकों की लाशें: बर्बाद हो गया ये ताकतवर देश, रूस हुआ बेबस
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दोनों देशों आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच जारी युद्ध के चलते रूस की तमाम कोशिशों के बाद सीजफायर का समझौता एक दिन भी चल न पाया।

नई दिल्ली। दोनों देशों आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच जारी युद्ध के चलते रूस की तमाम कोशिशों के बाद सीजफायर का समझौता एक दिन भी चल न पाया। ऐसे में आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच के संघर्ष नार्गोवो-काराबाख इलाके को लेकर चल रहा है। इस लड़ाई में 150 से ज्यादा नागरिकों की जानें जा चुकी हैं। वहीं नार्गोवो-काराबाख इलाका आधिकारिक रूप से अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन यहां आर्मीनिया का कब्जा है।

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अजरबैजान मुस्लिम बहुल देश

दरअसल आर्मीनिया एक ईसाई बहुल देश है और अजरबैजान मुस्लिम बहुल देश है। लेकिन नार्गोवो काराबाख इलाके में आर्मीनियाई ज्यादा हैं। ऐसे में इस संघर्ष में टर्की अजरबैजान के साथ मजबूती से डटा हुआ है जबकि आर्मीनिया से करीबी होने के बावजूद रूस कुछ नहीं कर पा रहा है।

ऐसे में टर्की ने कहा है कि अजरबैजान की क्षेत्रीय संप्रुभता का सम्मान करते हुए आर्मीनिया उसके इलाके से कब्जा छोड़े, तभी वो किसी शांति वार्ता का समर्थन करेगा।

WAR फोटो-सोशल मीडिया

इस पर टर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दवान का कहना है कि रूस पिछले 30 सालों में आर्मीनिया-अजरबैजान के मुद्दे को सही तरीके से सुलझाने में नाकाम रहा है। यही वजह है कि आर्मीनिया टर्की पर संघर्ष को भड़काने का आरोप लगा रहा है।

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आक्रामकता के बीच रूस कुछ नहीं कर पा रहा

हालाकिं टर्की की आक्रामकता के बीच रूस के कुछ न कर पाने को लेकर तरह-तरह के सवाल उठने शुरू हो गए हैं। इसी कड़ी में सोवियत के पतन के बाद अक्सर ये बात कही जाती रही है कि रूस की नियति में अभी बहुत कुछ देखना लिखा है। वहीं अब आर्मीनिया और अजरबैजान के युद्ध के बाद एक बार फिर से ये बात कही जाने लगी है।

बता दें, कभी सोवियत का हिस्सा रहे देश अब मॉस्को के प्रभाव से निकलकर अपने क्षेत्रीय ताकतों के करीब जा रहे हैं। पश्चिम में यूक्रेन और बेलारूस अपने यूरोपीय पड़ोसियों के ज्यादा करीब हो गए हैं।

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अजरबैजान की मांग को रूस ने स्वीकार नहीं किया

लेकिन चीन भी सोवियत का हिस्सा रहे पश्चिम एशियाई देशों पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। और अब अजरबैजान भी टर्की के निकटता जताता नजर आ रहा है।

ऐसे में कई विश्लेषकों का कहना है कि अगर रूस टर्की को क्षेत्रीय ताकत के तौर पर स्वीकार कर ले तो पूरी उम्मीद है कि वे सहयोग और प्रतिस्पर्धा के साथ यूं ही आगे बढ़ते रहेंगे। लेकिन अभी तक शांति वार्ता में टर्की को शामिल करने की अजरबैजान की मांग को रूस ने स्वीकार नहीं किया है।

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