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फैज अहमद फैज: आधुनिक उर्दू शायरी को दी नई ऊंचाई, पढ़ें उनके मशहूर शेर

फैज स्कूल में अव्वल आया करते थे और शायरी करना उन्हें बेहद पसंद था। उन्होंने आधुनिक उर्दू शायरी को एक नई ऊंचाई दी।

Shreya
Published on: 13 Feb 2021 9:54 AM GMT
फैज अहमद फैज: आधुनिक उर्दू शायरी को दी नई ऊंचाई, पढ़ें उनके मशहूर शेर
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फैज अहमद फैज: आधुनिक उर्दू शायरी को दी नई ऊंचाई, पढ़ें उनके मशहूर शेर

लखनऊ: अपनी क्रांतिकारी रचनाओं के लिए विख्य़ात शायर फैज अहमद फैज का आज जन्मदिन है। उनकी रचनाओं में इंकलाबी और रूमानी का मेल देखने को मिलता है। फैज ने अपनी कई नज्मों, गजलों और उर्दू शायरी में आधुनिक प्रगतिवादी दौर की रचनाओं को सबल किया। शांति पुरस्कार से सम्मानित इस शायर पर इस्लाम से इतर रहने के भी आरोप लगे, हालांकि उनकी रचनाओं में गैर-इस्लामी रंग नहीं मिलते हैं।

फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 को लाहौर के पास सियालकोट शहर, पाकिस्तान (तत्कालीन भारत) में हुआ। उनके पिता सुल्तान मुहम्मद खां बैरिस्टर थे। फैज पांच बहनों और चार भाई में सबसे छोटे थे। इसलिए काफी ज्यादा दुलारे रहे। परिवार बेहद इस्लामिक था। लेकिन फैज को इस्लाम के खिलाफ भी बताया गया। हालांकि उनका कहना था कि ये उन पर केवल इल्जाम है सच नहीं।

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शायरी करा था बेहद पसंद

फैज स्कूल में अव्वल आया करते थे और शायरी करना उन्हें बेहद पसंद था। उन्होंने आधुनिक उर्दू शायरी को एक नई ऊंचाई दी। आज उनके जन्मदिन के अवसर पर हम आपको उनकी गजलों से कुछ बेहतरीन शेर बताने जा रहे हैं-

Faiz Ahmad Faiz poet (फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया)

ये हैं फैज अहमद फैज के कुछ शेर

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

इस के बाद आए जो अज़ाब आए

है वही बात यूँ भी और यूँ भी

तुम सितम या करम की बात करो

कब तक दिल की खैर मनाएं

कब तक दिल की खैर मनाएं कब तक रह दिखलाओगे

कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे

गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा

गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं

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चलो 'फैज' दिल जलाएं करें

चलो 'फैज' दिल जलाएं करें फिर से अर्ज-ए-जानां

वो सुखन जो लब तक आए पे सवाल तक न पहुंचे

उतरे थे कभी 'फ़ैज़' वो आईना-ए-दिल में

आलम है वही आज भी हैरानी-ए-दिल का

गुल के मुरझाने पर क्या गुलशन में कोहराम मचा

इक गुल के मुरझाने पर क्या गुलशन में कोहराम मचा

इक चेहरा कुम्हला जाने से कितने दिल नाशाद हुए

अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें

दिल ठहरे तो दर्द सुनाएँ दर्द थमे तो बात करें

वो सारे जमाने भूल गए

अब के खिजां ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गए

जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दोबारा गुज़रे था

कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी

सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी

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