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चींटी को मारने के लिए हथौड़ा नहीं ला सकते - बॉम्बे हाई कोर्ट, फेक न्यूज़ पर केंद्र के नए आईटी नियम पर सख्त टिप्पणी

Bombay High Court: न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने यह भी कहा कि नियमों में संशोधन की क्या जरूरत थी यह समझ से परे है। कोर्ट ने कहा कि उसे यह अजीब लगता है कि सरकार के एक प्राधिकारी को यह तय करने की पूर्ण शक्ति दी गई है कि क्या नकली, क्या गलत और क्या भ्रामक है।

Anant Shukla
Published on: 14 July 2023 1:24 PM GMT
चींटी को मारने के लिए हथौड़ा नहीं ला सकते - बॉम्बे हाई कोर्ट, फेक न्यूज़ पर केंद्र के नए आईटी नियम पर सख्त टिप्पणी
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दहेज़ मामले में युवक व उसके माता-पिता को कारावास की सजा: Photo- Social Media

Bombay High Court: फेक न्यूज़ के बारे में सरकार के संशोधित आईटी नियमों के बारे में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सख्त और तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा है कि न्यायालय के अतिरिक्त किसी को भी सत्य और असत्य का निर्णय करने का अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा है कि नए संशोधित आईटी नियम जरूरत से ज्यादा हैं। कोर्ट ने कहा है कि - चींटी को मारने के लिए कोई हथौड़ा नहीं ला सकता है।

न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने यह भी कहा कि नियमों में संशोधन की क्या जरूरत थी यह समझ से परे है। कोर्ट ने कहा कि उसे यह अजीब लगता है कि सरकार के एक प्राधिकारी को यह तय करने की पूर्ण शक्ति दी गई है कि क्या नकली, क्या गलत और क्या भ्रामक है। नागरिक को पूछने का अधिकार और सरकार जवाब देने को बाध्य अदालत ने कहा, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सरकार भी उतनी ही भागीदार है जितना एक नागरिक है और इसलिए एक नागरिक को सवाल करने और जवाब मांगने का मौलिक अधिकार है और सरकार जवाब देने के लिए बाध्य है।

हाईकोर्ट की पीठ संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। संशोधित नियमों के खिलाफ यह याचिका स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने हाईकोर्ट में दायर की है। याचिका में संशोधित नियमों को मनमाना और असंवैधानिक बताया गया है और दावा किया है कि उनका नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर भयानक प्रभाव पड़ेगा। 14 जुलाई को एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स की ओर से वकील गौतम भाटिया ने नियमों के खिलाफ अपनी दलीलें रखनी शुरू कीं। भाटिया ने अदालत को बताया कि सोशल मीडिया पर फर्जी सामग्री पर नजर रखने के लिए कम प्रतिबंधात्मक विकल्प उपलब्ध हैं।

फैक्ट चेकिंग यूनिट की जांच कौन करेगा ?

अदालत ने यह भी सवाल किया कि संशोधित नियमों के तहत स्थापित की जाने वाली फैक्ट चेकिंग यूनिट (एफसीयू) की जांच कौन करेगा। न्यायमूर्ति पटेल ने कहा – ऐसा मान लिया गया है कि एफसीयू जो कहेगा वह निर्विवाद रूप से अंतिम सत्य होगा। पीठ ने कहा कि ऑफ़लाइन सामग्री में कुछ फ़िल्टरेशन है लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए अभी तक ऐसी कोई फैक्ट चेकिंग नहीं हुई है। अदालत ने कहा - कुछ तथ्य जांच होनी चाहिए। किसी न किसी स्तर पर किसी को सोशल मीडिया पर सामग्री की तथ्य जाँच अवश्य करनी चाहिए। लेकिन आपका (याचिकाकर्ता) यह कहना सही हो सकता है कि यह नियम अत्यधिक हैं। आप चींटी को मारने के लिए हथौड़ा नहीं ला सकते। पीठ ने ज्यादती के पहलू को किनारे रखते हुए कहा, वह अभी तक यह नहीं समझ पा रही है कि आईटी नियमों में इस संशोधन की क्या जरूरत थी? न्यायमूर्ति पटेल ने कहा - ऐसी कौन सी चिंता है जिसके कारण इस संशोधन की आवश्यकता है? इसके पीछे क्या चिंता है? मैं अभी भी नहीं जानता।

पीठ ने कहा कि कोई भी व्यक्ति झूठ बोलने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर रहा है और एक नागरिक केवल यह कह रहा है कि उन्हें अपने बयान की सत्यता का बचाव करने का अधिकार है। पीठ ने कहा कि इंटरनेट पर हर चीज और हर कोई मात्र एक तारीख और बाइनरी है और एक व्यक्ति जो चाहे वह हो सकता है और यह जरूरी नहीं कि वह इम्परसोनेशन यानी प्रतिरूपण हो। अदालत ने कहा कि संशोधित नियम नकली, गलत और भ्रामक की सीमाओं पर भी चुप हैं।

पीठ ने नागरिकता कानून का जिक्र करते हुए कहा, अगर कोई यह राय लिखता है कि इस कानून के प्रावधानों का प्रभाव ऐसा-ऐसा था, तो क्या ऐसे विरोधी विचार को फर्जी, झूठा और भ्रामक मानकर हटाने का आदेश दिया जा सकता है? क्योंकि क़ानून सरकारी व्यवसाय के अंतर्गत आता है? अदालत ने सवाल किया - नियमों में ऐसा कुछ नहीं है जो हमें यह बताए कि सीमा क्या है? यह उस चीज़ की सीमा है जिसे नकली, झूठा और भ्रामक माना जाएगा। क्या अटकलें इसे नकली, गलत और भ्रामक बनाती हैं?

अंतिम रूप से सत्य कैसे मान लिया जाए?

अदालत ने इस बात पर भी विचार किया कि सरकार द्वारा गठित एक प्राधिकरण अंतिम रूप से यह कैसे तय कर सकता है कि क्या सच है और क्या नकली है। अदालत ने कहा कि - मुझे यह मुश्किल लगता है कि नियम फैक्ट चेक यूनिट को यह तय करने की पूर्ण शक्ति देते हैं कि क्या नकली है और क्या भ्रामक है। यह पूरी तरह से बाइनरी है। मेरे विचार से न्यायालय के अतिरिक्त किसी को भी सत्य और असत्य का निर्णय करने का अधिकार नहीं है। यहां तक कि एक अदालत भी यही कहती है कि शायद यह सच हो सकता है और शायद यह झूठ है।

अदालत ने कहा कि संशोधन के बिना भी, सरकार के पास प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) है जो नियमित रूप से कोई गलत या फर्जी सामग्री होने पर सोशल मीडिया पर पोस्ट करता है। अदालत ने कहा, क्या यह सरकार का मानना है कि यदि संशोधन नहीं किया गया तो सोशल मीडिया बिचौलिए अनियंत्रित हो जाएंगे?"

6 अप्रैल को किये गए थे संशोधन

इस साल 6 अप्रैल को, केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में कुछ संशोधनों की घोषणा की, जिसमें फर्जी, गलत या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के लिए एक सरकारी तथ्य-जांच इकाई का प्रावधान भी शामिल है। तीन याचिकाओं में अदालत से संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित करने और सरकार को नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की गई है।

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