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चंद्रयान-2: लैंडर विक्रम को नासा ने भेजा मैसेज, जानें क्या है डीप स्पेस नेटवर्क

चांद की सतह से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया था। इसके बाद से ही इसरो के वैज्ञानिकों ने लैंडर विक्रम से संपर्क साधने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। दूसरी तरफ अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने लैंडर विक्रम से संपर्क साधने में इसरो की मदद कर रहा है।

Dharmendra kumar
Published on: 20 April 2023 2:59 PM IST (Updated on: 20 April 2023 11:53 PM IST)
चंद्रयान-2: लैंडर विक्रम को नासा ने भेजा मैसेज, जानें क्या है डीप स्पेस नेटवर्क
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नई दिल्ली: चांद की सतह से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया था। इसके बाद से ही इसरो के वैज्ञानिकों ने लैंडर विक्रम से संपर्क साधने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। दूसरी तरफ अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने लैंडर विक्रम से संपर्क साधने में इसरो की मदद कर रहा है। नासा ने विक्रम से संपर्क साधने की कोशिश में 'हलो' मेसेज भेजा है।

बता दें कि 7 सितंबर को लैंडर विक्रम हार्ड लैंडिंग के बाद चांद की सतह पर गिर गया था। नासा ने अपने डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) के जेट प्रपल्शन लैब्रटरी (JPL) की प्रयोगशाला से विक्रम को एक रेडियो संदेश भेजा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नासा इसरो से सहमति के बाद रेडियो संदेश के जरिए विक्रम से संपर्क करने की कोशिश कर रहा है।'

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एक अन्य अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्कॉट टैली ने बताया कि नासा ने कैलिफर्निया स्थित अपने DSN के जरिए रेडियो संदेश विक्रम को भेजा है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, 'DSN ने 12 किलोवाट की रेडियो फ्रीक्वेंसी के जरिए विक्रम से संपर्क साधने की कोशिश की है। लैंडर को सिग्नल भेजने के बाद चांद एक रेडियो रिफ्लेक्टर की तरह व्यवहार करता है और सिग्नल का छोटा सा हिस्सा धरती पर भेज देता है जो 8 लाख किलोमीटर में घूमती हुई यहां पहुंचती है।'

क्या है डीप स्पेस नेटवर्क

DSN एक कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी है, जिसका इस्तेमाल अंतरिक्ष में भेजे गए सैटेलाइट से संपर्क साधने के लिए होता है। इस नेटवर्क को स्थापित करने के लिए एक बहुत ही बड़े नेटवर्क एंटिना का इस्तेमाल किया गया है जो हाई फ्रिक्वेंसी रेडियो सिग्नल भेजने में सक्षम है।

ISRO के डीप स्पेस नेटवर्क(IDSN) का हब कर्नाटक की राजधानी बेंगलूरू के ब्यालालू में स्थापित है। इसे 17 अक्टूबर 2008 को स्थापित किया गया था। इस एंटिना को हैदराबाद स्तिथ इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने डिजाइन किया है। इस एंटिना को स्थापित करने में कुल 65 करोड़ रुपये का खर्च आया है। ISRO के इस IDSN नेटवर्क की तरह का ही नेटवर्क अमेरिका, चीन, रूस, यूरोप और जापान अपने स्पेस प्रोग्राम के लिए करते हैं।

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इसरो अंतरिक्ष में सिग्नल भेजने के लिए ISRO Telemetry, Tracking and Command Network (ISTRAC) का प्रयोग करता है। इसमें तीन एंटिना लगे होते हैं, जिसमें एक 18m (59ft) का, एक 32m (105ft) का और एक 11m का एंटिना शामिल है।

IDSN बेसबैंड सिस्टम के जरिए सिग्नल ट्रांसमिट करता है। इसके सबसे बड़े 32 मीटर वाले एंटिन का व्हील एंड ट्रैक डिजाइन के आधार पर बनाया गया है। ये S बैंड और X बैंड दोनों को अपलिंक करने में सक्षम है। इस 32 मीटर के एंटिना को Chandrayaan 1 के ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किया गया था।

इसके अलावा 18 मीटर का एंटिना एक डीप स्पेस एंटिना के तौर पर जाना जाता है। वहीं, तीसरा एंटिना 11 मीटर का है, जिसका इस्तेमाल टर्मिनल एंटिना के तौर पर काम करता है। इन एंटिना का इस्तेमाल Chandrayaan 1, Chandrayaan 2 और Mangalyaan से संपर्क साधने के लिए किया गया है।

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नासा क्यों रुचि?

बता दें कि नासा कई वजहों से भारत के मून मिशन में काफी रुचि दिखा रहा है। पहली वजह है विक्रम पर लगे पैसिव पेलोड लेजर रिफ्लेक्टर। इसके जरिए लैंडर की सटीक स्थिति का पता चल सकता है और यह धरती से चांद की दूरी का सटीक आकलन कर सकता है। दूरी के आकलन के बाद नासा को अपने भविष्य के मिशन को बेहतर करने में मदद मिल सकती है।

Dharmendra kumar

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