TRENDING TAGS :
जानिए क्यों चांद के साउथ पोल पर उतरेगा भारत, यहां जानें सब कुछ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का दूसरा मून मिशन चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक लॉन्च हो चुका है। चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया गया। चंद्रयान-2 चांद की ओर उड़ चला। इस मिशन को पूरा होने में करीब 50 दिन लगेंगे।
नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने दूसरा मून मिशन चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है। इसरो ने चंद्रयान-2 को 22 जुलाई(सोमवार) को दोपहर 2.43 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया। इस मिशन को पूरा होने में करीब 50 दिन लगेंगे।
इसरो चंद्रमा के साउथ पोल पर चंद्रयान-2 को उतारेगा। बता दें कि चांद के इस हिस्से के बारे में दुनिया के देशों को अधिक जानकारी नहीं है। इसरो ने बताया कि चंद्रयान-2 चांद के भौगोलिक वातावरण, खनिज तत्वों, उसके वायुमंडल की बाहरी परत और पानी की उपलब्धता की जानकारी को इकट्ठा करेगा।
इसरो मिशन मून के तहत चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। दरअसल चांद को फतह करने वाले अमेरिका, रूस और चीन ने अभी तक इस जगह पर नहीं पहुंच पाए हैं। चंद्रमा के इस भाग के बारे में अभी अधिक जानकारी नहीं मिली है। भारत के चंद्रयान-1 मिशन के दौरान साउथ पोल में बर्फ के बारे में जानकारी मिली थी।तभी से चांद के इस हिस्से के बारे में दुनिया के देशों की जानने में दिलचस्पी बढ़ी है। भारत इस मिशन में साउथ पोल के नजदीक ही अपना यान लैंड करेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत मिशन मून के जरिए दूसरे देशों पर बढ़त पा लेगा।
यह भी पढ़ें...चंद्रयान-2 लांच, अब दूर नहीं रहे चंदा मामा, 6 सितंबर को रचेंगे इतिहास
जानकारों का कहना है कि चंद्रयान-2 के जरिए भारत एक ऐसे अनमोल खजाने की तलाश कर सकता है जिससे न सिर्फ अगले करीब 500 साल तक इंसानी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकता है बल्कि खरबों डॉलर की कमाई भी हो सकती है। चांद से मिलने वाली यह ऊर्जा न सिर्फ सुरक्षित होगी बल्कि तेल, कोयले और परमाणु कचरे से होने वाले प्रदूषण से मुक्त होगी।
यह भी पढ़ें...लखनऊ की बेटी है चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर, जानें उनके बारें में सबकुछ
क्या है चांद का साउथ पोल
चंद्रमा के साउथ पोल की सतह के बड़े हिस्से में नॉर्थ पोल की तुलना में अधिक छाया रहता है। इस हिस्से में पानी भी होने की संभावना जताई जाती है। चांद के साउथ पोल में ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में प्रारंभिक सौर प्रणाली के लुप्त जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है। चंद्रयान-2 विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर का उपयोग करेगा जो दो गड्ढों- मंजिनस सी और सिमपेलियस एन के बीच वाले मैदान में लगभग 70° दक्षिणी अक्षांश पर सफलतापूर्वक लैंडिंग की कोशिश करेंगे।
भारत के लिए ये है चुनौती
भारत के मिशन चंद्रयान-2 के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं। यह पहली बार होगा जब भारत चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। चांद पर लैंडिंग करते ही भारत ऐसा करने वाले चौथा देश हो जाएगा। इसमें अमेरिका, रूस और चीन का नाम पहले ही शामिल है। इसरो चीफ के सिवन ने बताया कि लैंडिंग से 15 मिनट पहले का वक्त काफी चुनौतीपूर्ण रहेगा। उन्होंने कहा कि ये 15 मिनट काफी तनावपूर्ण होंगे, क्योंकि इसरो पहली बार चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।
यह भी पढ़ें...भूंकप के दौरान चांद पर ये काम करते हैं अंतरिक्ष यात्री, जानिए मानव मिशन के राज
इसलिए चांद पर फतह की कोशिश
एक टन हीलियम-3 की कीमत करीब 5 अरब डॉलर हो सकती है। चंद्रमा से ढाई लाख टन हीलियम- 3 लाया जा सकता है जिसकी कीमत कई लाख करोड़ डॉलर हो सकती है। चीन ने भी इसी साल हीलियम- 3 की खोज के लिए अपना चांग ई 4 यान भेजा था। इसी को देखते हुए अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय देशों की चंद्रमा के प्रति दिलचस्पी बढ़ गई है। यही नहीं दुनिया की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी ऐमजॉन के मालिक जेफ बेजोस चंद्रमा पर कॉलोनी बसाने की चाहत रखते हैं।