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चर्चा में फिर राफेल डीलः ऑफसेट क्लाज खत्म होने का क्या होगा असर, क्यों हुआ खत्म

केंद्र सरकार की तरफ से ऑफसेट क्लॉज (Offset Clause) को बदल दिया गया है। अब सरकार-से-सरकार, अंतर-सरकार और एकल विक्रेता रक्षा में कोई ऑफसेट पॉलिसी लागू नहीं होगी।

Shreya
Published on: 29 Sept 2020 1:38 PM IST
चर्चा में फिर राफेल डीलः ऑफसेट क्लाज खत्म होने का क्या होगा असर, क्यों हुआ खत्म
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सरकार ने बदला ऑफसेट क्लॉज

नई दिल्ली: केंद्र सरकार की तरफ से ऑफसेट क्लॉज (Offset Clause) को बदल दिया गया है। अब सरकार-से-सरकार, अंतर-सरकार और एकल विक्रेता रक्षा में कोई ऑफसेट पॉलिसी लागू नहीं होगी। बता दें कि इस क्लॉज का फ्रांस के साथ हुए राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे में सबसे अहम रोल था। इसी क्लॉज के तहत फ्रांस की एविएशन कंपनी दसॉ एविएशन के साथ भारत ने 36 राफेल विमानों के लिए सौदा किया है। तो चलिए जानते हैं कि क्या है ऑफसेट क्लॉज और इसके हटने से रक्षा सौदों में क्या फर्क पड़ेगा।

क्या है ऑफसेट नियम?

ऑफसेट नियम को रक्षा सौदों में काफी अहम माना गया था। इस क्लॉज को सबसे पहले साल 2005 में मनमोहन सरकार की रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defense Procurement Process- DPP) के तहत लाया गया था। इस क्लॉज के तहत किसी विदेशी कंपनी को सौदे का एक हिस्सा भारत में निवेश करना होगा। साथ ही इसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, स्थानीय तौर पर विमानों से जुड़े एडवांस कंपोनेंट्स की मैन्युफैक्चरिंग या फिर रोजगार पैदा करने की भी जिम्मेदारियां शामिल हैं।

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क्यों हटाया गया ऑफसेट नियम

दरअसल, फ्रांस के साथ राफेल डील में ऑफसेट पॉलिसी पूरी ना होने पर नियंत्रक एंव महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। जिसके बाद सरकार ने नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 में ऑफसेट पॉलिसी को ही बदल दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय ने ऑफसेट पॉलिसी के माध्यम से विदेशी निर्माताओं से टेक्नॉलोजी हासिल करने में असफलता हाथ लगने के बाद फैसला किया।

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france rafale ऑफसेट क्लॉज (फोटो- ट्विटर)

CAG ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि फ्रांस की एविएशन कंपनी दसॉ एविएशन से 59 हजार करोड़ रुपये में 36 राफेल विमानों का सौदा करते समय सरकार की ओर से ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट में DRDO को कावेरी इंजन की तकनीक देकर 30 फीसदी ऑफसेट पूरा करने की बात की गई थी, जो कि अब तक पूरा नहीं हुआ है। ऑफसेट पॉलिसी के मुताबिक, विदेशी कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट का 30 फीसदी हिस्सा भारत में रिसर्च या उपकरणों पर खर्च करना होता है।

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ऑफसेट के हटने से क्या पड़ेगा असर?

अब ऑफसेट हटने का असर विमानों के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, विमानों से जुड़े एडवांस कंपोनेंट्स की स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग या फिर देश में रोजगारों पर पड़ सकता है। जानकारों की मानें तो ऑफसेट खत्म होने से खासतौर से रक्षा के क्षेत्र में खरीदे जाने वाले विदेशी सामान पहले से सस्ते होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि इस नियम के खत्म होने से बचत हो सकती है, क्योंकि विदेशी सैन्य ठेकेदार ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अपनी कीमतों में कई फीसदी वृद्धि करते हैं। अब ऑफसेट के तहत निवेश नहीं रह जाएगा तो ठेकेदार कीमतों में कटौती कर सकते हैं।

इसके अलावा ऑफसेट हटने से भारत में निर्माण को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि सरकार पूरी तरह देश में ही निर्माण पर निर्भर रहेगी। इसी वजह से आत्मनिर्भर भारत पॉलिसी को देखते हुए सरकार ने डीएपी-2020 नीति को आगे बढ़ाया है।

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