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भगवान को सजा: कठघरे में अब देवी-देवता, मिलता है ऐसा कठोर दण्ड

ये बात है छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल की, जहां आदिवासी समुदाय के लोग देवी-देवताओं को भी सजा देते हैं। ये आदिवासी समुदाय सदियों से बहुत सारे देवी-देवताओं की पूजा करते आ रहा है। इस समुदाय में भगवान और इंसान के बीच का अटूट रिश्ता आस्था और विश्वास पर टिका है।

Vidushi Mishra
Published on: 14 March 2023 3:42 AM IST
भगवान को सजा: कठघरे में अब देवी-देवता, मिलता है ऐसा कठोर दण्ड
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नई दिल्ली : मुसीबत में फंसे हर इंसान को सबसे पहले इंसाफ करने वाले भगवान की याद आती है। क्योंकि लोग जानते हैं कि भगवान कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं करते हैं। आमतौर पर किसी भी बात को सच साबित करने से पहले भी भगवान की कसमें खाई जाती हैं, जिससे उसकी बात सच साबित हो सके। इसी किस्से से जुड़ी एक बात हम आपकों बताने जा रहे, जहां लोग न्याय के कटघरें में भगवान को खड़ा करके उन्हें जुल्म की सजा भी देते हैं।

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ये बात है छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल की, जहां आदिवासी समुदाय के लोग देवी-देवताओं को भी सजा देते हैं। ये आदिवासी समुदाय सदियों से बहुत सारे देवी-देवताओं की पूजा करते आ रहा है। इस समुदाय में भगवान और इंसान के बीच का अटूट रिश्ता आस्था और विश्वास पर टिका है।

इस समुदाय के लोगों का भगवान पर बहुत विश्वास है और शायद इसी के चलते भगवान को भी दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया के दौर से गुजरना पड़ता है। इसके साथ ही ये भी प्रथा सदियों से चली आ रही है जिसमें यहां न्याय का दरबार लगता है। न्याय के इस दरबार में भगवान को भी दण्ड मिल जाता है।

वर्षों पुराना है ये मंदिर

कोंडागांव से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित केशकाल घाट की वादियों में वर्षों पुराना भंगाराम माई का दरबार है। वादियों में स्थित इस दरबार को देवी-देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है।

मान्यताओं के अनुसार, भंगाराम माई की मान्यता के बिना क्षेत्र में स्थित नौ परगना में कोई भी देवी-देवता कार्य नहीं कर सकते। वर्ष में एक बार भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा को मंदिर प्रांगण में विशाल जातरा मेला आयोजित होता है।

इस साल भी भंगाराम माई के दरबार में देवी-देवताओं के विशाल मेले का आयोजन हुआ। इस मेले में बड़ी सख्यां में श्रद्धालु अपने देवी-देवताओं के साथ पहुंचे। लेकिन इस स्थान से जुड़ी जरूरी बात ये है कि विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना मना है।

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अपराधी को दंड और अभियोगी को न्याय

लोग जिन देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, अगर वे देवी-देवता अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते तो उन्हीं देवी-देवताओं को ग्रामीणों की शिकायत के आधार पर भंगाराम के मंदिर में सजा भी मिलती है।

न्यायालय में सुनवाई के दौरान देवी-देवता एक कठघरे में खड़े होते हैं। यहां भंगाराम न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते हैं। ऐसा माना जाता है कि सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और अभियोगी को न्याय मिलता है।

परेशानी दूर न होने पर देवता जिम्मेदार

गांव में होने वाली किसी प्रकार की मुसीबत या परेशानी को दूर न कर पाने पर गांव में स्थापित देवी-देवताओं को ही दोषी माना जाता है। विदाई स्वरूप उक्त देवी-देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी या मुर्गी को सोने चांदी आदि के साथ लाट, बैरंग, डोली आदि को लेकर ग्रामीण साल में एक बार लगने वाले मेले भंगाराम जातरा में पहुंचते हैं। यहां भंगाराम की उपस्थिति में कई गांवों से आए शैतान, देवी-देवताओं की एक-एक कर शिनाख्त करते हैं।

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ये है सजा का प्रावधान

इसके पश्चात अंगा, डोली, लाड, बैरंग आदि के साथ लाए गए चूजे, मुर्गी, बकरी, डांग आदी को खाईनुमा गहरे गड्ढे के किनारे फेंका जाता है। ग्रामीण इसे कारागार कहते हैं। देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के बाद मंदिर परिसर में अदालत लगती है।

देवी-देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है। आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल आदि गांव के खास लोग मौजूद होते हैं। दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है। मंदिर में देवी-देवताओं को खुश करने के लिए बलि देने व भेंट चढ़ाने का भी विधान है।

आपकों बता दें कि भंगाराम बाबा के मंदिर परिसर में एक गड्ढा नुमा घाट बना हुआ है। गांव के लोग इसे कारागार कहते हैं। सजा के तौर पर दोष सिद्ध होने के पश्चात देवी-देवताओं के लाट, बैरंग, आंगा, डोली आदि को इसी गड्ढे में डाल दिया जाता है। मान्यता यह भी है कि दोषी पाए जाने पर इसी तरह से देवी-देवताओं को सजा दी जाती है।

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छत्तीसगढ़ के इस गांव की ये अनोखी परम्परा है। जहां सजा के भागीदार उनके देवी-देवता भी होते हैं।



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