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अपनी ग्लोबल ताकत का एहसास करा रहा चीन
चीन को इस समय अमेरिका को सुपर पावर के रूप में रिप्लेस करने का मौका दिखा रहा है। शी जिनपिंग को चीन के बारे में जो योजना है उसमें वर्तमान स्थिति से बढ़िया मौका और नहीं हो सकता। सब देश महामारी में फंसे हुये हैं।
लखनऊ। भारत और चीन के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है। इन दोनों देशों के बीच दुनिया की सबसे बड़ी बिना रेखांकन वाली सीमा है। दोनों देशों के बीच 1962 में पूर्ण युद्ध हो चुका है और उसके बाद से लगातार छिटपुट झगड़े होते आए हैं लेकिन सन 75 के बाद से दोनों देशों के बीच एक भी गोली नहीं चली है। इससे इस थ्योरी को बल मिलता है कि चीन भारत के बीच झगड़े यदाकदा की घटनाएँ हैं जिनके युद्ध या बड़े संघर्ष में तब्दील होने की गुंजाइश बहुत कम है। लेकिन हाल के घटनाक्रम से आशंका उठी है कि इस बार झगड़ा बढ़ सकता है।
दोनों देश विवादित सीमा के आर पार सैन्य जमावड़ा बढ़ाते जा रहे हैं। जिस तरह चीनी प्रेसिडेंट शी जिनपिंग ने अपनी सेनाओं से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा है उससे लगता है मामला बढ्ने वाला है। चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी भी एक दशक से भारतीय सैन्य तैयारियों और तमाम रणनीतिक क्षेत्रों में राजनीतिक संकल्प की टेस्टिंग करती आई है। ये सब शांति के लक्षण नहीं हैं।
ताजा घटना पेंगोंग झील के पास
चीन – भारत के बीच सबसे ताजा झगड़ा 5 मई को लद्दाख की पेंगोंग झील के पास हुआ। इस झील का एक हिस्सा भारत तथा तिगुना हिस्सा चीन के कब्जे में है। समझा जाता है कि पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) ने इस क्षेत्र में भारतीय पैट्रोलिंग पर ऐतराज जताया था।
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9 मई को 15 हजार फुट की ऊंचाई पर तिब्बत के नाथु ला क्षेत्र में दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच पत्थर बाजी और मारपीट हुई थी। चीनी सैनिकों को वहाँ भी भारतीय गश्त पर ऐतराज था। इस झगड़े में कई दर्जन सैनिक घायल हो गए और एक सीनियर भारतीय अफसर को एयरलिफ्ट करके अस्पताल ले जाना पड़ा।
लंबी शांति के बाद बवाल
भारत चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा को ही इंटेरनेशनल सीमा माना गया है। चीन और भारत इस सीमा को अपने अपने नजरिए से आँकते हैं और इसी से विवाद बना हुआ है।
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भारत सरकार के अनुसार 2016 से 2018 के बीच चीनी सेना ने 1025 बार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की है। चूंकि सीमा का वास्तविक रेखांकन नहीं है ऐसे में इस तरह की घुसपैठ दोनों देशों के नजरिए पर निर्भर करती है।
डोकलम का मसला
2017 में भूटान के पास डोकलम इलाके में दो महीने तक भारत और चीन के बीच तनातनी रही थी। जब ये मामला शांत हो गया तब ये समझ लिया गया होगा कि दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में नए चरण का समावेश है।
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पुराना लेवल वह था जब अरुणाचल प्रदेश में सुमडोरोंग घाटी में भारत और चीनी सेनाओं के बीच 1987 में तनातनी हुई थी। इसके एक साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन की यात्रा पर गए थे और दोनों देशों के बीच संबंध ऊपरी तौर पर सामान्य हुये थे। दोनों देशों ने सीमा विवाद को दरकिनार कर आपसी सम्बन्धों को नई दिशा देने पर सहमति जताई थी।
आर्थिक आधार
भारत चीन सम्बन्धों में नई दिशा के पीछे आर्थिक आधार रहे हैं। दोनों देश एक स्थिर बाह्य वातावरण चाहते हैं जो घरेलू आर्थिक विकास के लिए जरूरी है। अगर बाहरी झगड़े बने रहेंगे तो देश का विकास पिछड़ जाएगा।
80 के दशक के उस दौर में चीन में डेंग शियाओपिंग के आर्थिक सुधारों का एक दशक पूरा हो रहा था जबकि भारत में राजीव गांधी भी सुधारों के रास्ते पर सतर्कता से चल रहे थे। 1988 के बाद से भारत ने तिब्बत के मसले पर चुप्पी ही साधी हुई है जो चीन को सूट करता है।
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वर्ल्ड बैंक के अनुसार उस समय भारत की जीडीपी 297 बिलियन डालर की थी जबकि चीन की 312 बिलियन डालर की थी। यानी दोनों देश लगभग बराबरी पर थे। उस समय भारत का सैन्य खर्चा 10.6 बिलियन डालर का था जो चीन के 11.4 बिलियन डालर के करीब ही था।
चीन बहुत आगे, बदल गया जमाना
1988 के बाद से जमाना बहुत बादल गया है। चीन और भारत अब बराबरी पर नहीं हैं। 2018 में चीन की जीडीपी 13.6 ट्रिलियन डालर की थी जो भारत की जीडीपी 2.7 ट्रिलियन डालर से पाँच गुना ज्यादा है।
इसी तरह डिफ़ेंस की बात करें तो चीन ने 2019 में 261.1 बिलियन डालर खर्च किए जबकि भारत का डिफेंस खर्चा 71.1 बिलियन डालर का था। ये करीब चार गुने का अंतर है। हालांकि भारत पिछले तीन दशकों में विश्व में एक आर्थिक और ग्लोबल शक्ति के रूप में उभरा है लेकिन चीन की तुलना में भारत की ताकत काफी घटी है।
चीन की आक्रामक नीति
भारत और चीन के बीच की सहमति अब पहले जैसी नहीं है। सही मानों में देखा जाए तो 2008 के ग्लोबल आर्थिक संकट से दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में फर्क पड़ा है। तबसे चीन अपने विदेशी मामलों में अधिकाधिक आक्रामक हुआ है।
दक्षिण चीन महासागर में कृत्रिम द्वीप बनाने से लेकर हाँगकाँग की नीति और वर्तमान कोविड-19 महामारी के दौर में आक्रामक कूटनीति तक चीन ने नए तेवरों को दिखाया है।
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कुछ एक्स्पर्ट्स मानते हैं कि ये अमेरिका के हाथ से ग्लोबल लीडरशिप की शक्ति निकाल कर चीन के हाथ में जाने का अंतरण काल है। हालांकि भारत भी ग्लोबल राजनीति में और अधिक आक्रामक रवैया अपना रहा है लेकिन अमेरिका को चीन की तरफ से ज्यादा चिंता है।
चिंताजनक हालात
विश्व में शक्ति सतुलन की बदलती स्थिति के बीच भारत और चीन में सीमाई झगड़े बड़ी चिंता का सबब बनते जा रहे हैं। भारत और चीन ने विवाद सुलझाने और संबंध सुधारने के लिए 1993, 1996 और 2005 में अलग अलग समझौते किए थे।
हालिया समझौता 2019 में ममल्लापुरम में मोदी और जिनपिंग के बीच शिखर सम्मेलन में हुआ। इससे दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में समग्र बदलाव आने की उम्मीद बनी थी। लेकिन 1988 से लेकर अब तक सीमा समेत अन्य लंबित विवाद हमेशा के लिए समाप्त नहीं हो पाये।
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विदेश मंत्री एस जयशंकर के अनुसार भारत और चीन एक असामान्य जटिल रिश्ते में फंसे हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद, तिब्बत का मसला, दलाई लामा, चीन – पाक रिश्ते, एशिया में भारत और चीन के बीच प्रभाव का मसला आदि दोनों देशों की शक्ति बढ़ने के साथ साथ बड़े होते गए हैं।
चीन को चुनौती
शक्ति के अधिकांश क्षेत्रों में चीन भले ही भारत से आगे हो लेकिन भारत अपनी क्षमताएं बढ़ाता जा रहा है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2014 से 2018 के बीच हर साल भारत ने चीन से ज्यादा विकास दर दर्ज की है।
कोविड-19 का दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन भारत की अपेक्षाकृत छोटी अर्थव्यवस्था और तेज विकास दर का मतलब ये है कि चीन से दूरी कम होते जाने की पूरी संभावना बनती है।
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चीन भले ही जापान और अमेरिका जैसी बड़ी शक्तियों की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है लेकिन भारत अकेले ऐसी शक्ति है जो चीन के मुक़ाबिल तेजी से आगे आ रही है। चीन को यही अखर रहा है।
अमेरिका देख रहा फायदा
इसके अलावा भारत अमेरिका और जापान के साथ मिल कर रणनीतिक भागीदारी को मजबूती दे रहा है। अमेरिका अभी अपना फायदा देख रहा है कि चीन को नीचे करने में उसे भारत एक मजबूत मददगार के रूप में मिलेगा।
चीन को इस समय अमेरिका को सुपर पावर के रूप में रिप्लेस करने का मौका दिखा रहा है। शी जिनपिंग को चीन के बारे में जो योजना है उसमें वर्तमान स्थिति से बढ़िया मौका और नहीं हो सकता। सब देश महामारी में फंसे हुये हैं।
वर्ल्ड इकॉनमी चौपट हुई जा रही है। शक्ति संतुलन का तख़्ता पलट करने के इस मौके के समय चीन चारों ओर अफरातफरी का माहौल बनाए तो ताज्जुब की बात नहीं होनी चाहिए।
आंकड़ों के लिहाज से जानते हैं कि डिफेंस मजबूती में भारत और चीन एक दूसरे के सामने कहाँ ठहरते हैं।
भारत | चीन |
सैन्यकर्मी |
सक्रिय सैनिक | 21,40,000 | 23,00,000 |
रिजर्व | 11,55,000 | 80,00,000 |
मिलिट्री के लिए उपलब्ध | 31,91,29,420 | 38,58,21,101 |
जमीनी फोर्स |
टैंक | 4426 | 7760 |
बख्तरबंद वाहन | 5681 | 6000 |
कुल आर्टीलेरी (तोपें) | 5067 | 9726 |
सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टीलेरी | 290 | 1710 |
रॉकेट आर्टीलेरी | 292 | 1770 |
एयर फोर्स |
कुल विमान | 2216 | 4182 |
युद्धक विमान | 232 | 1150 |
बहुउद्देशीय विमान | 329 | 629 |
अटैक विमान | 220 | 270 |
हेलीकाप्टर | 725 | 1170 |
नौसेना | ||||||||||||||||||
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