×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

बंद हो सकते हैं 34,000 अस्पताल-नर्सिंग होम, वजह जान चौंक जाएंगे

कोरोना वायरस की मार प्राइवेट अस्पतालों पर पड़ी है। लॉकडाउन की वजह से इन अस्पतालों में मरीजों का आना कम हो गया है। करीब 80 फीसदी तक बेड खाली पड़े हैं। ओपीडी, सर्जरी और अन्य चिकित्सकीय सेवाएं ठप है।

Aditya Mishra
Published on: 18 April 2020 11:28 AM IST
बंद हो सकते हैं 34,000 अस्पताल-नर्सिंग होम, वजह जान चौंक जाएंगे
X

नई दिल्ली: कोरोना वायरस की मार प्राइवेट अस्पतालों पर पड़ी है। लॉकडाउन की वजह से इन अस्पतालों में मरीजों का आना कम हो गया है। करीब 80 फीसदी तक बेड खाली पड़े हैं। ओपीडी, सर्जरी और अन्य चिकित्सकीय सेवाएं ठप है।

नौबत यहां तक आ पहुंची है कि देश के 10,000 से अधिक निजी अस्पतालों के सामने वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया है। इनके पास अप्रैल के वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं। यहां ये बात भी ध्यान रखनी होगी कि सरकार ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में प्राइवेट अस्पतालों को भी शामिल किया है।

देश के एक बड़े अस्पताल समूह के वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी का कहना है कि इस संकट से निपटने के लिए हम नियमित काम बंद तो कर देंगे। लेकिन बिना सर्जरी, कंसल्टेशन एवं इलाज के अस्पताल डॉक्टरों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों का वेतन कैसे दे पाएंगे।

एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इंडिया (एएचपीआई) के एक अधिकारी की मानें तो बड़े से लेकर छोटे अस्पताल एक और सरकारी प्रोत्साहन पैकेज के इंतजार में हैं।

अगर तीन महीने में स्थितियां नहीं बदली तो छोटे अस्पताल और नर्सिंग होम बंद हो जाएंगे। इससे पहले घरेलू क्रेेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा ने भी 25 मार्च की एक रिपोर्ट में कहा था कि मेडिकल टूरिज्म के बिना बड़े अस्पतालों की कमाई आने वाले महीनों में 75 फीसदी तक घट जाएगी।

हालांकि, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद अस्पतालों की वित्तीय स्थितियों में सुधार होने की उम्मीद है।

ये भी पढ़ें...तबलीगी जमात के प्रमुख की कोरोना से मौत, मचा जमातियों में हड़कंप

बंद हो सकते हैं 34,000 अस्पताल-नर्सिंग होम

एएचपीआई के एक अधिकारी ने कहा, लॉकडाउन से पूरे उद्योग पर असर पड़ा है। सबसे ज्यादा 30 बेड से कम क्षमता वाले नर्सिंग होम और अस्पताल प्रभावित हुए हैं, जिनकी संख्या करीब 34,000 है। ये वर्षों से बड़े अस्पतालों से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हैं। वर्तमान संकट उनके ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है।

अधिकारी ने कहा कि जो अस्पताल थोड़ी अच्छी स्थिति में हैं, उनकी स्थिति भी गंभीर है। वे कटौती के साथ अप्रैल का वेतन दे रहे हैं, जबकि कुछ अस्पताल केवल डॉक्टर या नर्स जैसे अहम कर्मचारियों को ही भुगतान कर रहे हैं। सफाई कर्मचारियों और सिक्योरिटी गार्ड को वेतन नहीं मिल रहा है। छंटनी भी शुरू हो चुकी है।

डॉक्टर, नर्स और सफाई कर्मियों की सुरक्षा खतरे में

कोविड-19 के मरीजों के इलाज में जुटे अस्पताल डॉक्टरों, नर्सों और सफाई कर्मचारियों को संक्रमण से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पीपीई किट, प्रशिक्षण और अतिरिक्त जरूरी कर्मचारियों के कारण अस्पतालों का खर्च प्रति मरीज 25 फीसदी तक बढ़ गया है। उनके पास पीपीई किट पर्याप्त नही हैं। सर्जिकल मास्क की कीमत एक रुपये से बढ़कर 10 रुपये हो गई है।

एन95 मास्क के दाम 5 गुना बढ़कर 200 रुपये और पीपीई किट की कीमत 800 रुपये से बढ़कर 2,500 रुपये हो गई है। लागत घटाने के लिए अस्पताल एन95 मास्क के दोबारा इस्तेमाल के लिए प्लाज्मा मशीनों जैसी तकनीक अपना रहे हैं।

डॉक्टर चार दिन तक एक मास्क पहनने को मजबूर हैं। नर्सों को केवल मास्क और दस्ताने मिल रहे हैं, जबकि सफाई कर्मचारी बिना सुरक्षा उपकरण ही काम कर रहे हैं।

भारतीय राजनयिक के परिवार तक पहुंचा कोरोना, न्यूयॉर्क में पति ने तोड़ा दम

कमाई पर भी कोरोना की मार

लॉकडाउन से पहले जिन छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम की कमाई फरवरी में 2.6 करोड़ रुपये तक थी, वह मार्च में घटकर 2.35 करोड़ रह गई। अप्रैल के पहले 10 दिनों में इनकी कमाई महज 23 लाख रुपये रह गई। ऐसे में आशंका है कि फरवरी के मुकाबले इनकी अप्रैल की कमाई घटकर एक चौथाई यानी 75 फीसदी रह जाएगी।

गूगल देगा पैसा: बस आपको करना होगा ये काम, तो हो जाइए तैयार

रोजी रोटी का पर भी संकट

मेडिकल उद्योग के विशेषज्ञों की मानें तो यह संकट हेल्थकेयर पेशेवरों की आजीविका को भी नुकसान पहुंचा रहा है। जो अस्पताल सीजीएचएस और ईसीएचएस योजनाओं के तहत इलाज करते हैं, उनके लिए थोड़ी राहत है।

सरकार इन योजनाओं के तहत इलाज पर निजी अस्पतालों को करीब 2,000 करोड़ रुपये (26.4 करोड़ डॉलर) का भुगतान करती है। मौजूदा समय में यह रकम अस्पतालों के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकती है। लेकिन, भुगतान नहीं होने पर अस्पताल भी महामारी की चपेट में आकर खत्म हो जाएंगे।

अब सरकार से मदद की उम्मीद

निजी अस्पताल चलाने वाले डॉक्टरों का कहना है कि सरकारी योजनाओं के तहत इलाज पर ही उनके अस्पताल चल रहे हैं। मरीजों की संख्या 80 फीसदी से घटकर 20 फीसदी रह गई है। ईएनटी (आंख-कान-नाक) विभाग भी खाली है। इस दौरान केवल गर्भवती महिलाएं और हार्ट अटैक वाले मरीज ही आ रहे हैं।

इससे वित्तीय संकट पैदा हो गया है। ऐसे में अब सरकार का ही सहारा है। इन योजनाओं के तहत इलाज के पैसे मिलने पर ही अस्पताल चलाना संभव हो सकेगा। जिन अस्पतालों में ये सुविधाएं नहीं हैं, वे अधिकतम तीन महीने तक ही अपनी गाड़ी खींच पाएंगे।

इतना आसान नहीं कोरोना से छुटकारा पाना, वैक्सीन बनाने में लगेगा समय



\
Aditya Mishra

Aditya Mishra

Next Story