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11 नवंबर: इस दिन प्रथम विश्व युद्ध हुआ था समाप्त, जानिए इससे जुड़ी अनसुनी बातें
प्रथम विश्व युद्ध की इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों के ख़िलाफ़ जर्मनी ने पहली बार ज़हरीली गैस का इस्तेमाल किया था जो उनके लिए बहुत नया और कटु अनुभव था।
लखनऊ: इतिहास एक दिन में नहीं बनता है। इतिहास के लिए हर दिन के अपने मायने होते है। ठीक उसी तरह आज के दिन के भी इतिहास के लिए कुछ अलग ही मायने हैं।
11 नवंबर 1918 को ही प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति हुई थी। जबकि इसकी शुरुआत 28 जुलाई 1914 को हुई थी। इस लड़ाई की आग की लपटों ने आधी दुनिया को जला दिया था।
यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ्रीका में लड़ा गया था। जिससे युद्ध में भाग ले रहे कई देशों में कुपोषण, भुखमरी आदि जैसी समस्याओं ने जन्म लिया।
इस विश्व युद्ध के खत्म होते-होते रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और उस्मानिया ढह गए। आज इस घटना को हुए सौ साल से अधिक का समय पूरा हो गया है। इस युद्ध में 74,000 भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी।
प्रथम विश्व युद्ध (फोटो:सोशल मीडिया)
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ज़हरीली गैस छोड़ने के बाद लाशों से भर गया था मैदान
प्रथम विश्व युद्ध की इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों के ख़िलाफ़ जर्मनी ने पहली बार ज़हरीली गैस का इस्तेमाल किया था जो उनके लिए बहुत नया और कटु अनुभव था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सेना से जुड़े लोग उस काले दिन को कई सालों तक भूला नहीं पाए थे। जब पहली बार ज़हरीली गैस छोड़ी गई थी तो एक भारतीय सैनिक ने अपने घर चिट्ठी भेजकर अपना दर्द बयान किया था।
उसने पत्र में लिखा था। ऐसा लगा जैसे जहन्नुम धरती पर उतर आया हो। जैसे भोपाल गैस त्रासदी हुई थी, पूरा मैदान मरे हुए लोगों से पट गया था। जहां तहां केवल लाशें ही पड़ी थी। लोग मक्खियों की तरह मर रहे थे।
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प्रथम विश्व युद्ध (फोटो:सोशल मीडिया)
जहरीली गैस का असर कम करने के लिए सूंघना पड़ा था पेशाब
एक सैनिक मीरदाद आठ बेहोश सैनिकों को अपनी पीठ पर उठाकर ले जा रहे थे। उन्हें इसके लिए विक्टोरिया क्रॉस दिया गया। तब भारतीय सैनिकों के पास गैस मास्क नहीं थे।
कहीं से उन्हें मालूम पड़ा कि एक कपड़े पर पेशाब लगा कर यदि उसे नाक के पास रखा जाए तो गैस का असर कम हो जाता है। उन्होंने ये भी किया, लेकिन उसका कोई लाभ नहीं हुआ।
फ़्लैंडर्स के फ़ील्ड म्यूज़ियम में एक फोटो टंगी हुई है जिसमें इस गैस के असर को दिखाया गया है। मैदान में चारों तरफ़ लाशें बिखरी पड़ी हैं। इस लड़ाई में 47 सिख रेजीमेंट के 78 फ़ीसदी सैनिकों की मौत हुई थी।
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