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धनतेरस चमकाएगा किस्मत: बस घर में करना होगा ऐसा, मालामाल होंगे आप

वास्तु के अनुसार घर का ईशान कोण सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसे देवताओं का स्थान कहते हैं। इसलिए हर घर में आमतौर पर मंदिर इसी कोण में बना होता है। घर का ईशान कोण उत्तर-पूर्व कोण को कहते हैं। धनतेरस के दिन इस कोण की सफाई जरूर करनी चाहिए।

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Published on: 9 Nov 2020 6:20 PM IST
धनतेरस चमकाएगा किस्मत: बस घर में करना होगा ऐसा, मालामाल होंगे आप
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धनतेरस चमकाएगा किस्मत: बस घर में करना होगा ऐसा, मालामाल होंगे आप

लखनऊ: धनतेरस के पर्व को दीपावली का आरंभ माना जाता है। इस दिन को धन एवं आरोग्य से जोड़कर देखा जाता है। यही कारण है कि इस दिन भगवान धनवंतरी और कुबेर का पूजन अर्चन किया जाता है। ताकि हर घर में समृद्धि और आरोग्य बना रहे।

कुबेर देव और मां लक्ष्मी की कृपादृष्टि

दिवाली से पहले लोग अपने घरों की सफाई करना शुरू कर देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं धनतेरस के दिन घर में कुछ खास जगहों की सफाई करने का भी बड़ा महत्व होता है। ऐसा करने से आपकी आमदनी, आपकी धन-दौलत और किस्मत भगवान धनवन्तबरी, कुबेर देव और मां लक्ष्मी की कृपादृष्टि पाकर चमक उठेगी।

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घर का ईशान कोण को हमेशा साफ़

वास्तु के अनुसार घर का ईशान कोण सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसे देवताओं का स्थान कहते हैं। इसलिए हर घर में आमतौर पर मंदिर इसी कोण में बना होता है। घर का ईशान कोण उत्तर-पूर्व कोण को कहते हैं। धनतेरस के दिन इस कोण की सफाई जरूर करनी चाहिए।

घर का यह क्षेत्र यदि गंदा है या इस जगह पर ऐसी चीजें रखी हैं, जिनका आप कभी इस्तेमाल ही नहीं करते, तो ऐसे घर में मां लक्ष्मी की कृपा नहीं होती। इसलिए अपने घर के ईशान कोण को हमेशा साफ रखना चाहिए।

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इन स्थानों को साफ अवश्य करें

-पूर्व की ओर: धनतेरस के दिन सवेरे ही उठकर घर के पूर्व के स्थानों को साफ अवश्य करें। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।

-उत्तर दिशा: घर के उत्तर दिशा का साफ होना भी महत्वपूर्ण है। कहते हैं इससे मां लक्ष्मी घर में वास करती हैं।

-ब्रह्म स्थान: सबसे महत्वपूर्ण घर के बीचो बीच यानी ब्रह्म स्थान है। यहां से जरूरत में न आने वाला सामान हटाकर अच्छी तरह से साफ करें।

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धनतेरस के बारे में और जानने के लिए पढ़ें ये ख़ास 6 बातें -

-धनतेरस, धनवंतरी त्रयोदशी या धन त्रयोदशी दीपावली से पूर्व मनाया जाना महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन आरोग्य के देवता धनवंतरी, मृत्यु के अधिपति यम, वास्तविक धन संपदा की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी तथा वैभव के स्वामी कुबेर की पूजा की जाती है।

-इस त्योहार को मनाए जाने के पीछे मान्यता है कि लक्ष्मी के आह्वान के पहले आरोग्य की प्राप्ति और यम को प्रसन्न करने के लिए कर्मों का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है। कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं।

-धनवंतरी और मां लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन से हुआ था। दोनों ही कलश लेकर अवतरित हुए थे। इसके साथ ही मां लक्ष्मी का वाहन ऐरावत हाथी भी समुद्र मंथन द्वारा अवतरित हुआ था।

-श्री सूक्त में लक्ष्मी के स्वरूपों का विवरण कुछ इस प्रकार मिलता है। 'धनमग्नि, धनम वायु, धनम सूर्यो धनम वसु:' अर्थात् प्रकृति ही लक्ष्मी है और प्रकृति की रक्षा करके मनुष्य स्वयं के लिए ही नहीं, अपितु नि:स्वार्थ होकर पूरे समाज के लिए लक्ष्मी का सृजन कर सकता है।

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-श्री सूक्त में आगे यह भी लिखा गया है- 'न क्रोधो न मात्सर्यम न लोभो ना अशुभा मति:' तात्पर्य यह कि जहां क्रोध और किसी के प्रति द्वेष की भावना होगी, वहां मन की शुभता में कमी आएगी, जिससे वास्तविक लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होगी। यानी किसी भी प्रकार की मानसिक विकृतियां लक्ष्मी की प्राप्ति में बाधक हैं।

-आचार्य धनवंतरी के बताए गए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाना ही धनतेरस का प्रयोजन है।

श्री सूक्त में वर्णन है कि, लक्ष्मी जी भय और शोक से मुक्ति दिलाती हैं तथा धन-धान्य और अन्य सुविधाओं से युक्त करके मनुष्य को निरोगी काया और लंबी आयु देती हैं।

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