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यहां पत्नी से पीड़ित पति को मिला न्याय, जानिए क्या है पूरा मामला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक न्यायिक अधिकारी को मिले तलाक को बरकरार रखा है, इसकी पत्नी ने उसके खिलाफ दहेज की मांग सहित तमाम "झूठे आरोप" लगाए थे। अदालत ने इस आधार पर तलाक बरकरार रखा है कि न्यायिक अधिकारी के साथ "मानसिक क्रूरता" की गई थी और उसका जीवन महिला यानी उसकी पत्नी द्वारा "दयनीय" बना दिया गया था।
नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक न्यायिक अधिकारी को मिले तलाक को बरकरार रखा है, इसकी पत्नी ने उसके खिलाफ दहेज की मांग सहित तमाम "झूठे आरोप" लगाए थे। अदालत ने इस आधार पर तलाक बरकरार रखा है कि न्यायिक अधिकारी के साथ "मानसिक क्रूरता" की गई थी और उसका जीवन महिला यानी उसकी पत्नी द्वारा "दयनीय" बना दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने तलाक की डिक्री को चुनौती की उसकी पत्नी की अपील को खारिज कर दिया और कहा कि पारिवारिक न्यायालय का आदेश मानसिक क्रूरता के आधार पर पुष्टि करने योग्य है। अदालत ने कहा "हमारा विचार है कि अपीलकर्ता/पत्नी प्रतिवादी/पति के साथ क्रूरता से पेश आई और उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाकर उसकी जिंदगी को दयनीय बना दी। पति के पक्ष में चार अलग-अलग जांच अधिकारियों द्वारा लगातार चार क्लोजर रिपोर्ट भी पत्नी द्वारा किये गए उत्पीड़न की ओर इंगित करती हैं।
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न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी और ज्योति सिंह की पीठ ने कहा, "इस मामले की फिर से इलाहाबाद के उच्च न्यायालय के निर्देश पर फिर से जांच की गई और पुलिस अधिकारियों द्वारा एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई। पत्नी का आचरण पार्टियों के बीच दरार दिखाता है।"
अदालत ने कहा कि महिला और उसके पिता द्वारा पति के खिलाफ की गई सभी शिकायतों को ध्यान में रखते हुए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पति के साथ मानसिक क्रूरता की गई है।
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महिला और उसके पिता ने 2001 में राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित जिला न्यायाधीशों और बार एसोसिएशनों के खिलाफ विभिन्न शिकायतें की थीं।।
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अदालत ने कहा कि महिला ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि उसने अपने पति के खिलाफ उसे सबक सिखाने के लिए सभी शिकायतें दर्ज की थीं क्योंकि उसने उससे तलाक मांगने के लिए याचिका दायर की थी। इस दंपति की शादी 1995 में हुई थी दोनो के दो बच्चे हुए जो 2001 से मां के साथ रह रहे हैं। दोनो बालिग हैं।