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बंगाल चल पड़े किसान नेता: बदली आंदोलन की दिशा, क्या दिल्ली में नहीं होगा प्रदर्शन
बीजेपी नेता चुनाव वाले पांच राज्यों में भाजपा का विरोध करने वाले हैं। जिसकी शुरुआत किसान नेता प. बंगाल से करने जा रहे हैं। सवाल यह है कि यदि यही करना है तो दिल्ली की सीमाओं पर इतने दिनों तक किसानों को क्यों बैठाया और किसान नेता अगर दिल्ली से निकल जाएंगे तो किसान सीमाओं पर बैठकर क्या करेगा।
रामकृष्ण वाजपेयी
नई दिल्ली: नए कृषि कानूनों के विरोध को लेकर शुरू हुआ किसान आंदोलन क्या अपनी दिशा से भटक चुका है या जिन मुद्दों को लेकर किसान एकजुट हुए थे वह मुद्दे गौंण हो चुके हैं। यह सवाल किसानों को मथने लगा है क्योंकि अब किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं ने आंदोलन की दिशा ही बदल दी है और किसान खुद को छला हुआ महसूस करने लगे हैं।
उन्हें लग रहा है कि 20 जनवरी को सरकार के साथ हुई वार्ता में वह गोल्डेन अपार्चुनिटी थी जब सरकार डेढ़ साल के लिए कृषि कानूनों को स्थगित करने को तैयार हो गई थी। यदि उनके नेताओं ने अपने निहित स्वार्थों को छोड़कर इसे स्वीकार लिया होता तो आज ये स्थिति न होती।
सरकार के साथ बातचीत की कोई मंशा नहीं
यदि केंद्र सरकार के साथ सहमति बन चुकी होती तो 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा का वह दौर न हुआ होता जिसे किसान आंदोलन के माथे पर बदनुमा दाग बना दिया गया। अंतिम दौर की वार्ता टूटने के बाद सरकार से वार्ता के न तो कोई प्रयास हुए न किसान नेताओं की ऐसी कोई मंशा ही रही।
(फोटो- ट्विटर)
इसके बाद किसान महापंचायतों का दौर और फिर भाजपा नेताओं का विरोध से होता हुआ अब ये आंदोलन एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है जहां किसानों को यह समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि राजनीतिक ताकत बने बगैर उनकी समस्या का निदान नहीं होगा। यह बात किसान आंदोलन से निकले पांच सात नेता पूरी शिद्दत से किसानों को समझाने में जुटे हैं।
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चुनाव वाले पांच राज्यों में भाजपा का विरोध
इसी की अगल कड़ी है चुनाव वाले पांच राज्यों में भाजपा का विरोध। जिसकी शुरुआत किसान नेता प. बंगाल से करने जा रहे हैं। सवाल यह है कि यदि यही करना है तो दिल्ली की सीमाओं पर इतने दिनों तक किसानों को क्यों बैठाया और किसान नेता अगर दिल्ली से निकल जाएंगे तो किसान सीमाओं पर बैठकर क्या करेगा।
(फोटो- ट्विटर)
कहीं मोहरा तो नहीं बन रहे किसान
किसान आंदोलन को समर्थन देने वाले भूपिंदर सिंह हुड्डा, अजीत सिंह, दुष्यंत सिंह चौटाला, योगेंद्र यादव और खुद राकेश टिकैत अपने लिए राजनीतिक जमीन की तलाश में किसानों को मोहरा तो नहीं बना रहे। ये सभी ऐसे नेता हैं जो किसानों की ताकत से अपनी राजनीतिक जमीन बनाते रहे हैं चाहे वह भाजपा का समर्थन हो या विरोध।
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अब ये नेता एक बार फिर किसानों को मोहरा बनाकर अपनी राजनीति चमकाने में जुट गए हैं। जिस दिन इन्हें किसी बड़े दल में चाहे वह भाजपा ही क्यों न हो मौका मिल गया किसानों को बेसहारा छोड़कर निकल जाएंगे।
प. बंगाल जाकर करेंगे ये काम
किसान नेताओं का कहना है कि वह प. बंगाल जाकर किसानों से भाजपा को दंडित करने की बात करेंगे। सवाल यह है कि भाजपा को दंडित करने के लिए उनका वोट कहां जाएगा इस पर किसान नेता मौन हैं। इससे फायदा किसे होगा भाजपा को या किसी दूसरे को इस पर भी किसान नेता कुछ नहीं कह रहे।
किसानों के कुछ छोटे क्षत्रप या नेता राकेश टिकैत सहित इन नेताओं को शक की निगाह से देख रहे हैं लेकिन नेतृत्व के विकल्प के अभाव में मौन हैं। इस पर सवाल यही उठ रहा है कि क्या नेतृत्वहीनता का शिकार ये आंदोलन एक और शाहीनबाग बनकर अपनी मौत खुद मर जाएगा।
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