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दिल्ली हिंसा: आंखों में आंसू ला देगी इंसानियत की ये 5 कहानियां

उत्तर पूर्वी दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों में अब तक 10 लोगों की मौत हो गई है। मरने वालों में एक हेड कॉन्स्टेबल भी शामिल है। 130 से ज्यादा घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

Aditya Mishra
Published on: 26 Feb 2020 8:58 AM GMT
दिल्ली हिंसा: आंखों में आंसू ला देगी इंसानियत की ये 5 कहानियां
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नई दिल्ली: उत्तर पूर्वी दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों में अब तक 10 लोगों की मौत हो गई है। मरने वालों में एक हेड कॉन्स्टेबल भी शामिल है। 130 से ज्यादा घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इसमें 50 फीसदी से ज्यादा लोग गोली लगने की वजह से घायल हैं।

सीएए को लेकर दिल्ली हिंसा की आग में जल रही है। लेकिन खौफ, लूट, आगजनी के बीच कुछ कहानियां ऐसी हैं, जो इंसानियत पर भरोसा बनाए रखने का काम करती हैं।इस तरह के दंगे देश को नुकसान तो पहुंचा सकते हैं, लेकिन तोड़ नहीं सकते। सदियों से साथ रहते आए लोग एक दूसरे के दुश्मन यूं ही नहीं बन सकते।

वे एक दूसरे का हाथ थामे रहेंगे, एक दूसरे की मदद करते रहेंगे, एक दूसरे की हिफाजत भी करते रहेंगे और ‘दिलवालों की दिल्ली’ वाले किरदार को बचाते रहेंगे। कुछ ऐसे ही किरदारों से रूबरू होने जा रहे हैं, जिन्होंने इस हिंसा के दौरान जाति-धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत को जिंदा रखा है।

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1.बीजेपी पार्षद ने की मदद

भारतीय जनता पार्टी के एक पार्षद ने हिंसक भीड़ के चंगुल से एक मुस्लिम परिवार और उसके घर को बचाकर इंसानियत की मिसाल पेश की है।

हिंसा के बीच दिल्ली के यमुना विहार से भाजपा के वार्ड पार्षद प्रमोद गुप्ता मुस्लिम शख्स शाहिद सिद्दीकी के परिवार की मदद के लिए आगे आए और लगभग 150 लोगों की हिंसक भीड़ से उनके घर को आग के हवाले होने से बचाया।

शाहिद सिद्दीकी ने एक टीवी चैनल से बातचीत में बीती रात की घटना को लेकर कहा कि भीड़ ने अचानक नारे लगाते हुए पड़ोस की ओर बढ़ना शुरू कर दिया।

भीड़ ने उस ओर से प्रवेश किया जहां पुलिस ने बैरिकेडिंग नहीं कर रखा था और वह रास्ता जो मुस्लिम बहुल इलाके की ओर जाता था। सिद्दिकी ने कहा कि यह घटना करीब 11.30 बजे की है।

सिद्दीकी ने कहा कि भीड़ ने पहले उनके घर के नीचे एक बुटीक जलाया, जो उनके किराएदार का था। उसके बाद उनके परिवार की एक कार और मोटरबाइक को भी भीड़ ने जला दिया।

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2. फरिश्ता बन पहुंचे मददगार

ईस्ट दिल्ली में हिंसा चरम पर थी। घरों में, दुकानों में, गाड़ियों में आग लगाई जा रही थी।

मुस्तफाबाद इलाके में हिंदू महिला अकेली फंस गईं। उनके घर के पास हमला हुआ था।

वह घर में अकेली थीं। पड़ोसी का घर जलने लगा था। मगर फेसबुक पर की गई अपील उनकी मदद बनकर पहुंच गई।

यह अपील की थी इलाहाबाद के रहने वाले मोहम्मद अनस ने।

10-15 मुस्लिम लड़के उनके घर पहुंचे और महिला को हिफाजत के साथ मोमिन सैफी अपने घर ले आए।

ये महिला थीं मंजू सारस्वत। मंजू कहती हैं, सुबह करीब 10 बजे की बात है। मैं घर में अकेली थी।

दंगाइयों ने पड़ोसी के घर में आग लगा दी थी। मेरे दरवाजे को तोड़ रहे थे। मैं बहुत डर गई थी।

मेरी फैमिली में मेरे पति, बेटा बेटी हैं। घर पर कोई नहीं था। इधर-उधर मदद के लिए फोन किया।

तब मेरे बेटे के दोस्त ने किसी को मदद के लिए भेजा। ये लोग मेरे घर आए।

मुझे इतना डर लग रहा था कि इन लोगों पर यकीन नहीं हुआ।

तब इन लोगों ने मेरी बेटी से कॉन्फ्रेंस कॉल करके मेरी बात कराई, तब मुझे मोमिन सैफी अपने घर ले आए।

मंजू की मदद में दिल्ली से कई सौ किलोमीटर दूर बैठे मोहम्मद अनस की फेसबुक पोस्ट फरिश्ते बनकर हाजिर हुई थी।

3.ऑफिस से लौटते वक्त फंसी, बचाकर घर पहुंचाया

इसी तरह की एक और कहानी है पिंकी गुप्ता की, जिन्होंने दंगे के बीच फंसी एक मुस्लिम लड़की को सुरक्षित निकालकर अपने घर पहुंचाया।

घोंडा इलाके की रहने वाली पिंकी गुप्ता भी इलाके में सोशल वर्क करती हैं।

उन्होंने बताया कि करिश्मा नाम की लड़की थी, जो चांद बाग में रहती है और शास्त्री नगर में काम करती है।

वह बच्ची अपनी जॉब से वापस लौट रही थी और उसको अंदाजा नहीं था कि हालात इतने खराब होंगे।

मेट्रो स्टेशन बंद थे तो वह सीलमपुर मेट्रो स्टेशन पर उतर गई और गली-गली होती हुए हमारे मोहल्ले में पहुंच गई।

उसे यहां कुछ लड़कों ने घेर लिया तो वह बहुत बुरी तरह से डर गई। लेकिन फौरन ही हमलोग उसकी मदद के लिए पहुंच गए।

मैं उसे अपने घर ले आई, उसे पानी पिलाया और यकीन दिलाया कि वह यहां पूरी तरह से सुरक्षित है।

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4. सऊदी से आया दोस्त का फोन तो बचा लाए उनके परिवार को

हाजी नूर मोहम्मद सऊदी अरब में रहकर जॉब करते हैं, उनका परिवार यमुना विहार इलाके में रहता है।

उनका परिवार दंगों के बीच फंस गया था। चारों तरफ से मोहल्ले को दंगाइयों ने घेर रखा था।

हाजी नूर मोहम्मद परेशान थे, उनका परिवार मदद के लिए उन्हें लगातार कॉल कर रहा था, लेकिन हालात इतने खराब थे कि उनका कोई भी रिश्तेदार इस इलाके में जाकर उनके परिवार को निकालने की स्थिति में नहीं था।

ऐसे में उन्हें याद आई अपने दोस्त पूरन चुघ की, जिनसे उन्होंने मकान भी खरीदा था। नूर मोहम्मद ने चुघ साहब को फोन किया और उन्हें अपने परिवार की स्थिति बताई।

पूरन चुघ ने भी बिना वक्त गंवाए अपनी एसयूवी निकाली और नूर मोहम्मद के घर पहुंच गए। हालांकि, वहां की स्थिति काफी खराब थी रास्ते में भी जगह-जगह दंगे हो रहे थे, लेकिन चुघ अपने दोस्त के परिवार को बचाने के लिए उनके घर तक पहुंच ही गए।

उन्होंने न सिर्फ नूर मोहम्मद के परिवार को वहां से निकाला, बल्कि उनके घर में किराये पर रह रहे एक परिवार को भी बचाकर वहां से ले आए और उनके रिश्तेदारों को घर सुरक्षित छोड़ा।

'5.मदद करने के लिए घायल का इंसान होना ही काफी है'

नागरिकता संशोधन कानून के समर्थक सनी ठाकुर एक अनजान शख्स को लेकर जीटीबी अस्पताल पहुंचा था। सनी की शर्ट घायल के खून में भीग चुकी थी। ये अनजान व्यक्ति उग्र भीड़ की ओर से की जा रही फायरिंग में गोली लगने से घायल हुआ था।

सनी का कहना था कि उसे इससे कोई मतलब नहीं कि ये कौन है। वह बस इतना जानता है कि घायल होने वाला इंसान है। मंगलवार को पूरे दिन घायलों को जीटीबी अस्पेताल लाने का सिलसिला जारी रहा।

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