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जम्मू और कश्मीर में बिजली परियोजनाओं के माध्यम से विकास में तेजी
लेकिन 23.24 किलोमीटर लंबी सुरंग के साथ इंजीनियरिंग का ये चमत्कार यानी ये परियोजना जो लाभांश और समृद्धि इस नए-नए बने केंद्र शासित प्रदेश में लेकर आई है
के. ए. बद्रीनाथ
जब बीती मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बांदीपुर जिले में स्थित 330 मेगावॉट की क्षमता वाली किशनगंगा पनबिजली परियोजना को समर्पित किया, तो बहुत से लोगों ने कल्पना भी नहीं की होगी कि ये उद्यम महज एक साल में ही जम्मू और कश्मीर में कितने सारे लाभ लेकर आएगा। एनटीपीसी के स्वामित्व वाली इस पनबिजली परियोजना को आलोचकों द्वारा इस केंद्रीय बिजली कंपनी के संसाधनों की बर्बादी के रूप में देखा गया था। लेकिन 23.24 किलोमीटर लंबी सुरंग के साथ इंजीनियरिंग का ये चमत्कार यानी ये परियोजना जो लाभांश और समृद्धि इस नए-नए बने केंद्र शासित प्रदेश में लेकर आई है, उसने इन आलोचकों को गलत साबित कर दिया है।
परियोजना ने लाई जम्मू-कश्मीर में समृद्धि
पाकिस्तान द्वारा नदी परियोजना के इस भाग के निर्माण में बाधा डालने के लिए किए गए ओछे प्रयासों का सामना भारत ने हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में कड़ी लड़ाई लड़कर किया ताकि इस उद्यम को साकार किया जा सके और इस घाटी व पूरे क्षेत्र में समृद्धि लाई जा सके। जम्मू और कश्मीर द्वारा भारत के मुकुट का असली हीरा बनने का ऊंचा दर्जा पाने के बाद के शुरुआती दस महीनों में इस केंद्र शासित प्रदेश को 34.31 करोड़ रुपये मूल्य की 85.12 एमयू (मिलियन यूनिट) मुफ्त बिजली मिली और पानी के उपयोग शुल्क के लिए 10.54 करोड़ रुपये।
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खैर, अब ये परियोजना बर्फ से लदी इस घाटी में हिमशैल का एक सिरा मात्र प्रतीत हो रही है जो अब तक बिजली के गंभीर संकट से जूझ रही थी, विशेष रूप से कठोर सर्दियों वाले हालातों के दौरान। हो सकता है कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध करने वाले लोगों ने उन विकास संबंधी फायदों को प्रथम दृष्टतया कम करके आंका है जो ये नई व्यवस्था कश्मीर घाटी, जम्मू, लेह और लद्दाख में लेकर आने वाली है।
परियोजना एक लाभ अनेक
किशनगंगा बिजली परियोजना उन बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण परियोजनाओं की कड़ी में से एक थी जिन्हें इस संकटग्रस्त घाटी में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उद्देश्य से सोचा गया था। सिंचाई के प्रयोजनों के लिए बिजली प्रदान करने और पानी को वितरित करने के अलावा किशनगंगा जैसी परियोजनाएं अन्य लाभ भी लाई हैं, जैसे कि कम से कम लागत पर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच, नए कौशल प्रदान करना या यहां तक कि स्थानीय क्षेत्र का विकास जैसे कि पार्कों को संवारना, सड़क से कनेक्टिविटी या इस परियोजना के करीब रहने वाले बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए मदद करना। इनके अलावा, इस घाटी में युवाओं को की जा रही नए रोजगारों की पेशकश को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता जिसे अपने भारत विरोधी एजेंडे के साथ आतंकवादियों ने तहस नहस कर दिया था।
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केवल एक पखवाड़ा पहले ही उपराज्यपाल ने बिजली वितरण की दस परियोजनाओं का उद्घाटन किया था जिन्हें श्रीनगर, शोपियां, अनंतनाग, बडगाम और कुलगाम जिलों में बिजली की कमी को आठ घंटे तक कम करने के लिए निष्पादित किया गया था। उन्होंने जिन सात अन्य परियोजनाओं की आधारशिला रखी थी, उन्हें भी अगले एक साल में विभिन्न योजनाओं के तहत केंद्रीय एजेंसियों द्वारा लागू किया जाएगा। पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस की अगुवाई वाली सरकारों द्वारा जिसे अब तक नज़रअंदाज किया गया था वो बिजली वितरण वृद्धि का काम इस केंद्र शासित प्रदेश में बिजली के अंतर को पाटने के लिए उठाया गया सही कदम प्रतीत होता है।
जम्मू-कश्मीर में कुल 20,000 मेगावॉट कीमत की हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर क्षमता
दरअसल, जम्मू और कश्मीर में बिजली की सबसे ऊंची मांग हाल ही में 3400 मेगावॉट पर दर्ज की गई थी जो राष्ट्रीय कुल का सिर्फ 1.8 प्रतिशत है। और नई परियोजनाओं को धरातल पर साकार करने के बाद वास्तविक कमी को काफी हद तक नीचे ले आया गया। जम्मू और कश्मीर में लगभग 20,000 मेगावॉट कीमत की हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर क्षमता है। इसमें चिनाब बेसिन में 11283 मेगावॉट, झेलम में 3084 मेगावॉट, रावी में 500 मेगावॉट और सिंधु बेसिन में 1608 मेगावॉट क्षमता शामिल है। एक बार पूरी बिजली क्षमता का दोहन हो जाने के बाद जम्मू और कश्मीर को एक शुद्ध बिजली निर्यातक में तब्दील किया जा सकता है।
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इस दिशा में कुछ प्रयास पहले ही किए जा चुके हैं। 1000 मेगावॉट क्षमता वाली पकुल पनबिजली परियोजना को फास्ट-ट्रैक आधार पर क्रियान्वित किया गया है। एक और परियोजना चेनाब घाटी में है, 624 मेगावॉट क्षमता वाली किरु पनबिजली परियोजना जो कार्यान्वयन के उन्नत चरण में नजर आ रही है। जहां पीएफसी ही मोटे तौर पर इन दोनों महत्वाकांक्षी उपक्रमों को वित्त पोषित कर रहा है, पावर ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (पीटीसी) इन परियोजनाओं से अतिरिक्त बिजली के निर्यात के लिए कमर कस रहा है, जिनका व्यापार उसके ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर किया जा सकता है।
24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने की कोशिश
बड़ी बिजली परियोजनाओं के वित्तपोषण के साथ जम्मू और कश्मीर, और लद्दाख के लिए एक संयुक्त बिजली नियामक आयोग की स्थापना इन दो क्षेत्रों में ऊर्जा संसाधनों के क्रमिक विकास की अनुमति देते हुए बहुत जरूरी बिजली सुधारों की शुरुआत करेगा। इस क्षेत्र में उपभोक्ताओं को लाभ होने की उम्मीद है क्योंकि बिजली शुल्क का विनियमन स्वतंत्र आयोग द्वारा किए जाने का अनुमान है।
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दोनों केंद्र शासित प्रदेशों में चौबीस घंटे बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए आलोक कुमार के नेतृत्व वाले उच्च स्तरीय पैनल की रिपोर्ट को तुरंत लागू करने की जरूरत है। ताकि यहां आर्थिक लाभ को अधिकतम किया जा सके और इस क्षेत्र की खुद की राजस्व धाराओं के साथ इसे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और टिकाऊ बनाया जा सके। अगर उद्योगों, कृषि और घरेलू खपत की मांग को पूरा किया जाना है तो एक पुख़्ता योजना की आवश्यकता है।
बिजली के कमजोर बुनियादी ढांचे की मरम्मत की आवश्यकता
इसके पहले कदम के रूप में बिजली के कमजोर बुनियादी ढांचे की मरम्मत करने की आवश्यकता है। ऐसा लगता है कि 90.09 करोड़ रुपये के निवेश से लकड़ी के खंभों और कंटीले तारों के कंडक्टरों को बदलने के साथ एक शुरुआत कर दी गई है, जिसकी मंजूरी केंद्र में विद्युत मंत्रालय पहले ही दे चुका है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) और रूरल इलेक्ट्रिक कॉरपोरेशन (आरईसी) द्वारा वित्त पोषण के माध्यम से 4580 करोड़ रुपये की आवश्यक पूंजी प्रदान करने का काम वर्तमान में किया जा रहा है।
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इससे डिस्कॉम के तनाव को दूर करने में मदद मिलेगी जिससे जमीनी स्तर पर बेहतर उपभोक्ता सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी। इन सबके अलावा बिजली क्षेत्र का पारिस्थितिकी तंत्र उल्लेखनीय बदलाव से गुजर रहा है और अधिकांश केंद्रीय बिजली कंपनियां और वित्त कंपनियां सामुदायिक बुनियादी ढांचे के विकास और गैर-व्यावसायिक सेवाएं प्रदान करने के लिए भारी धनराशि लगा रही हैं।
बदल रही कश्मीर की तस्वीर
उदाहरण के लिए एनटीपीसी, पावर ग्रिड, एनएचपीसी, पीएफसी और आरईसी जैसी कंपनियां पहले ही कौशल विकास और आश्रय गृहों जैसी कई सामुदायिक परियोजनाओं के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक की प्रतिबद्धता जता चुकी हैं। रोजगार अवसरों के निर्माण को तेज़ करने, स्ट्रीट लाइट लगवाने जैसे कार्यों के लिए केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा 500 करोड़ रुपये का निवेश किया जा रहा है।
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अगर केंद्र सरकार की योजनाएं कोई संकेत हैं तो जम्मू-कश्मीर संपूर्ण परिवर्तन के रास्ते पर मजबूती से चलता दिख रहा है, वह आतंकवाद के अभिशाप को पीछे छोड़ रहा है और अर्थहीन हत्याओं को अंजाम देने वाले भारत विरोधी समूहों को भी बड़े पैमाने पर खत्म किया जा चुका है।