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Chandrayaan 2 पर खुलासा! तो यहां फंसा है हमारा लैंडर विक्रम

जानकारी के अनुसार यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने चंद्रयान की तरह ही लूनर लैंडर नाम से एक मिशन की शुरुआत की थी। योजना के तहत 2018 में लूनर लैंडर चांद पर उतरने वाला था। इस मिशन को बजट की कमी की वजह से बीच में रोक दिया गया।

Harsh Pandey
Published on: 13 April 2023 4:28 AM IST (Updated on: 13 April 2023 1:50 PM IST)
Chandrayaan 2 पर खुलासा! तो यहां फंसा है हमारा लैंडर विक्रम
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चांद के रहस्यों से अब उठेगा पर्दा, 7 साल बाद होगा बेहतर काम

नई दिल्ली: चंद्रयान 2 को लेकर दिन प्रतीदिन नई-नई खबरें सामने आ रही हैं। बता दें कि मिशन के लैंडर विक्रम से इसरो का संपर्क टूट गया और योजना के अनुसार होने वाली सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो सकी थी।

इसके बाद में ऑर्बिटर द्वारा भेजी गई हाई रिजॉल्यूशन वाली तस्वीरों से लैंडर के लोकेशन का पता चल गया। यूरोपियन स्पेस एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक चांद के दक्षिणी ध्रुव में जहां विक्रम की लैंडिंग हुई वो एक बेहद ही खतरनाक इलाका है।

बता दें कि यूरोपियन स्पेस एजेंसी का भी उस इलाके में लैंडिग कराने का मिशन था, जो सफल नहीं हो पाया। इसी दौरान एजेंसी ने एक रिपोर्ट तैयार की, जिससे कई खास जानकारियां उपलब्ध हुई हैं।

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जानिए क्यों खतरनाक है चांद का दक्षिणी ध्रुव...

जानकारी के अनुसार यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने चंद्रयान की तरह ही लूनर लैंडर नाम से एक मिशन की शुरुआत की थी। योजना के तहत 2018 में लूनर लैंडर चांद पर उतरने वाला था। इस मिशन को बजट की कमी की वजह से बीच में रोक दिया गया।

मिशन के बारे में योजना बनाने से पहले चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग से जुड़े खतरों को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस इलाके की सतह पर एक जटिल पर्यावरण मौजूद है।

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इसकी सतह पर स्थित धूल में चार्ज्ड पार्टिकल्स और रेडिएशन मिलते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक लैंडर के एक्विपमेंट में चांद की धूल पड़ने से मशीनें खराब हो सकती हैं, सोलर पैनल्स धूल से भर सकते हैं और एक्विपमेंट्स ठीक से काम करना बंद कर सकते हैं।

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रिपोर्ट में यह भी बात सामने आई है कि इलेक्ट्रोस्टेटिक फोर्सेस चांद पर धूल उड़ाती हैं जिससे खतरा हो सकता है। इन पार्टिकल्स से बनने वाले इलेक्ट्रोस्टेटिक चार्ज की वजह से आगे जाने वाले लैंडर्स के लिए खतरा पैदा होता है।

सुरक्षित लैंडिंग के लिए इन बातों का खयाल...

इस रिपोर्ट के मुताबिक लैंडिंग के समय लैंडर को ऐसी किसी भी छाया पर नजर रखनी होती है जिससे सोलर पावर जेनरेशन पर असर हो। इसके साथ ही कोशिश करनी होगी कि लैंडिंग कम ढलान और बड़ी चट्टानों वाले इलाके में कराई जाए, नहीं तो इससे लैंडर के रुकने के दौरान खतरा हो सकता है।

इसके साथ ही ईएसए इस समय कनाडा और जापान की स्पेस एजेंसियों के साथ मिलकर हेरकल्स रोबॉटिक मिशन की तैयारी कर रही है।

Harsh Pandey

Harsh Pandey

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