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निर्भया केस: फांसी की घड़ी नज़दीक, मेरठ जेल से तिहाड़ भेजा जाएगा जल्लाद
बताया जा रहा है कि तिहाड़ जेल प्रशासन ने फांसी का तख्त तैयार करके इस पर एक डमी का ट्रायल भी कर लिया है। फांसी देने के लिए उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के जल्लाद पवन तिहाड़ जेल के लिए रवाना दिल्ली रवाना हो गए है|
नई दिल्ली: निर्भया बलात्कार मामले के चारों दोषियों को फांसी पर लटकाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों के मुताबिक चारों दोषियों को 16 दिसंबर को फांसी दी जा सकती है। 16 दिसंबर 2012 को ही दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की वह जघन्य घटना हुई थी जिसने देश को हिला दिया था। कई दिनों तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद निर्भया ने आखिर में दम तोड़ दिया था।
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बताया जा रहा है कि तिहाड़ जेल प्रशासन ने फांसी का तख्त तैयार करके इस पर एक डमी का ट्रायल भी कर लिया है। फांसी देने के लिए उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के जल्लाद पवन तिहाड़ जेल के लिए रवाना दिल्ली रवाना हो गए है| पवन ने अपने बारे में बताया- 'मैं जल्लादों के परिवार से आता हूं। मैं 14 पीढ़ी से हूं। मैंने पहली बार पटियाला सेंट्रल जेल में अपने दादा के साथ दो भाइयों को फांसी पर लटकाया था। वह अब तक दादा के साथ मिलकर अब तक पांच लोगों को फांसी दे चुका हूं। जब मैंने पहली बार फांसी का प्रक्रिया पूरी की थी तो मैं महज 22 साल का था, लेकिन अब मेरी उम्र 58 है।
टेक्निक से दी जाती है फांसी
पवन ने पहले अपने दादा और फिर पिता से फांसी टेक्निक सीखी। रस्सी में गांठ कैसे लगनी है। कैसे फांसी देते समय रस्सी को आसानी से गर्दन के इर्द-गिर्द सरकाना है। कैसे रस्सी में लूप लगाए जाने हैं। कैसे फांसी का लीवर सही तरीके से काम करेगा। फांसी देने के पहले कई दिन ड्राई रन होता है, जिसमें फांसी देने की प्रक्रिया को रेत भरे बैग के साथ पूरा करते हैं। कोशिश ये होती है कि जिसे फांसी दी जा रही हो, उसे कम से कम कष्ट हो।
फांसी देने से पहले क्यों होती है बार-बार प्रैक्टिस
वैसे पवन फांसी देने की ट्रेनिंग के तौर पर एक बैग में रेत भरते हैं और उसका वजन मानव के वजन के बराबर होता है। इसी को रस्सी के फंदे में कसकर वो ट्रेनिंग को अंजाम देते हैं। बार-बार प्रैक्टिस इसलिए होती है कि जिस दिन फांसी देनी हो, तब कोई चूक नहीं हो। वो फांसी देने से पहले बार-बार इसकी प्रैक्टिस करते हैं ताकि जिस दिन फांसी देनी हो, तब कोई चूक नहीं हो।
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मुझको अपने काम पर गर्व है
पवन जल्लाद का मानना है कि "जल्लाद का जिक्र सबको डराता है बहुतों के लिए ये गाली है। मेरे नाम के साथ 'जल्लाद' लगा है। यही मेरी पहचान है। मैं बुरा नहीं मानता। जल्लाद होना सबके बस की बात नहीं। हर कोई कर सकता तो आज देश में सैकड़ों जल्लाद होते." वो कहते हैं, "उन्हें अपने काम पर गर्व है। ये मेरे लिए एक ड्यूटी है। फांसी देते समय मैं कुछ नहीं सोचता।"
80 से ज्यादा फांसी में शामिल
पवन ने अपने दादा और पिता के साथ मदद देने के दौरान करीब 80 फांसी देखीं. उसके पिता मम्मू सिंह ने कालू जल्लाद के मरने के बाद जल्लाद का काम शुरू किया. पहले मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब को पुणे की जेल में फांसी देने के लिए मम्मू सिंह को ही मुकर्रर किया गया था। लेकिन इसी दौरान मम्मू का निधन हो गया। तब बाबू जल्लाद ने ये फांसी दी।
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पवन का दावा है कि उसके बाबा लक्ष्मण सिंह ने अंग्रेजों के जमाने में लाहौर जेल में जाकर भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी थी। बल्कि जब लक्ष्मण सिंह ने अपने बेटे कालू को जल्लाद बनाने के मेरठ जेल में पेश किया तो उनके बड़े बेटे जगदीश को ये बात बहुत बुरी लगी थी। तब लक्ष्मण सिंह ने कहा था कि फांसी देने का शराबियों और कबाबियों का नहीं होता।
बेटा नहीं बनेगा जल्लाद
पवन का परिवार सात लोगों का है. हालांकि ये तय है कि उनका बेटा जल्लाद नहीं बनने वाला, क्योंकि वो ये काम नहीं करना चाहता। बेटा एक दो साल पहले तक सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था। पवन ने बताया कि उन्होंने अंतिम बार सेंट्रल जेल में 1988 में अपने दादा के साथ मिलकर बुलंदशहर सामूहिक और हत्या के दोषी को फांसी दी थी।
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5000 रुपये प्रति माह देती है यूपी सरकार
पवन ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से उन्हें प्रतिमाह 5000 रुपये मिलते हैं। शुरुआत में हमें फांसी की एवज में ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे, लेकिन अब एक फांसी पर 25000 रुपये मिलते हैं। हालांकि, इस कम राशि में परिवार का गुजारा करना मुश्किल होता है।