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किसान आंदोलनः सावधान, ‘पगड़ी संभाल जट्टा' दे रहा है लंबी लड़ाई के संकेत

किसान आंदोलनकारियों के बीच में शहीदे आजम भगत सिंह की भांजी गुरदीप कौर का सिंधू बॉर्डर पहुंचा। गुरदीप का कहना है हम आंदोलन में इसलिए आये हैं क्योंकि हम ये दिखाना चाहते हैं कि महिलाएं भी आंदोलन में हर तरह से कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं।

Shivani Awasthi
Published on: 19 Jan 2021 11:50 AM IST
किसान आंदोलनः सावधान, ‘पगड़ी संभाल जट्टा दे रहा है लंबी लड़ाई के संकेत
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रामकृष्ण वाजपेयी

कृषि कानूनों (Farm Laws) को निरस्त कराने की मांग को लेकर देशभर के किसानों के आंदोलन का आज 55वां दिन है। इस बीच सरकार और किसानों के बीच 19 जनवरी को होने वाली बैठक को एक दिन के लिए टाल दी गई है। अब यह बैठक 20 जनवरी को दोपहर दो बजे से शुरू होगी। लेकिन राजधानी दिल्ली में तकरीबन दो माह से आंदोलनरत किसानों (Farmers Protest) के आंदोलन के वामपंथियों द्वारा हाईजैक करने का खतरा उत्पन्न हो गया है। किसानों को छात्र-छात्राओं, डॉक्टरों, प्रोफेसरों का समर्थन तो ठीक है लेकिन किसान आंदोलन के कर्ताधर्ताओं को यह देखने की जरूरत है कि आंदोलन की कमान उनके हाथ से निकलकर कहीं वामपंथी कट्टरवादियों के हाथ में न चली जाए जो इसका उपयोग देश विरोधी गतिविधियों में करने लगें।

शहीद भगत सिंह की भांजी गुरदीप कौर का सिंधू बॉर्डर पहुंची

इस बीच सकारात्मक पहल के नाम पर किसान आंदोलनकारियों के बीच में शहीदे आजम भगत सिंह की भांजी गुरदीप कौर का सिंधू बॉर्डर पहुंचना रहा। गुरदीप का कहना है हम आंदोलन में इसलिए आये हैं क्योंकि हम ये दिखाना चाहते हैं कि महिलाएं भी आंदोलन में हर तरह से कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। हम ये बताना चाहते हैं कि हम शारीरिक रूप से कमजोर नही हैं। सरकार को हमारी बात माननी ही पड़ेगी। सरकार को जनता चुनती है, फिर यह देखना होगा कि सरकार किसके लिए काम कर रही है।

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किसान आंदोलन को मिला शहीद के परिवार का समर्थन

इससे पहले शहीद भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू ने किसान आंदोलन में आए थे। ‘भगत सिंह ब्रिगेड’ के कई सदस्य पहले से ही आंदोलन में जुटे हुए हैं। यादवेंद्र का कहना है 113 साल पहले अंग्रेज हमारे देश में राज करते थे। उन्होंने अपने राज में ‘आबादकारी बिल-1906’ नाम का एक काला कानून लाया था। जिसका मकसद किसानों की जमीनों को हड़प कर बड़े साहूकारों के हाथ में देना था।

भगत सिंह के चाचा ने चलाया था 'पगड़ी संभाल जट्टा’ नाम का आंदोलन

उन्होंने आगे कहा कि अंग्रेजों ने किसानों को दबाने के लिए बारी दोआब नहर से सिंचित होने वाली जमीनों का लगान दोगुना कर दिया। उस दौरान मेरे परदादा यानी सरदार भगत सिंह के चाचा ने किसानों के हक के लिए अंग्रेजों से जंग छेड़ी था। उन्होंने पगड़ी संभाल जट्टा’ नाम का आंदोलन चलाया था। परदादा द्वारा चलाया ये आंदोलन पूरे नौ महीने तक चला था और आखिर में अंग्रेजों को झुकना पडा।

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कृषि कानूनों के खिलाफ किसान जंग लड़ेगा

यादवेंद्र सिंह संधू कहते हैं कि आज के हालात भी कुछ वैसे ही हैं। सरकार के ये कानून हमारी पगड़ी और जमीन के ऊपर आ रहे हैं। लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी किसान जंग लड़ेगा। हमारा हक कोई नहीं मार सकता है। हम हमेशा अपने हक के लिए लड़ते रहेंगे। आज कि लडाई भारत को बचाने की है, जहां पर करीब 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है। सर्द भरी रात में भी किसान अपना घर, खेत छोड़कर यहां दिल्ली की सड़कों पे सोने को मजबूर हैं। सरकार में थोड़ी संवेदना तो रहनी चाहिए। हमारे पूर्वज हमेशा किसानों के हक के लिए खड़े हुए हैं। हम महान भगत सिंह के वंशज है हमारे खून में आंदोलन है। हम किसान आंदोलन में मदद करने से पीछे कैसे रहेंगे।

कृषि एक्ट के खिलाफ पंजाब सीएम शहीद भगत सिह के गांव में धरने पर बैठे थे

बता दें कि कृषि एक्ट के खिलाफ सितंबर में खुद पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह शहीद भगत सिह के गांव खटकड़ कलां में धरने पर बैठे थे। इस गांव के किसानों का हमेशा से ही आंदोलन से गहरा नाता है। भगत सिंह के अलावा उनके चाचा सरदार अजीत सिंह भी एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी किसानों को समर्पित कर दी।

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23 फरवरी 1881 को पंजाब के खटकड़ कलां में जन्मे अजीत सिंह (भगत सिंह के चाचा) ने इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। 3 मार्च 1907 को लायलपुर (अब पाकिस्तान) में एक रैली हुई। इसी में एक व्यक्ति ने पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओए...गाना गाया। वो गाना फेमस हो गया। इस तरह वहां से जो किसान आंदोलन शुरू हुआ उसका नाम ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ पड़ गया।

किसानों का आंदोलन विश्व में हुआ था प्रसिद्द

किसान इस आंदोलन से जुड़ते गए। अंग्रेजों के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे। आंदोलन और बड़ा न हो जाए इसके लिए अंग्रेजों ने अजीत सिंह को 40 साल के लिए देश निकाला दे दिया। इसके बाद वो जर्मनी, इटली, अफगानिस्तान आदि में गए और किसानों व देश को आजाद करवाने की आवाज बुलंद रखी।

आंदोलन

अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी घोषित कर रखा था. लेकिन जब वो 38 साल बाद देश लौटे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। देश का विभाजन हो चुका था। वो इससे काफी दुखी थे। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। आजादी (Freedom) के इस मतवाले ने इसी दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

क्रांतिकारियों के परिवार से किसान आंदोलन की नजदीकी

भगत सिंह जी की माता विद्यावती देवी और दादी जयकौर ने अपने पोते का नाम ‘भागां वाला’ रखा था। क्योंकि उस दिन 28 सितम्बर 1907 को उनके पिता किशन सिंह संधू व चाचा अजीत सिंह जेल से रिहा हुए थे। जिसकी वजह से मिलता जुलता नाम भगत सिंह रखा। भगत सिंह के दादा अर्जुन सिंह गदर पार्टी आंदोलन से जुड़े हुए थे। उनके पिता किशन सिंह लाला लाजपत राय के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते रहे।

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ऐसे में क्रांतिकारियों के परिवार से किसान आंदोलन की नजदीकी किसानों की लंबी लड़ाई का संकेत देती है। सरकार को आंदोलन के भटकाव और बिखराव की राजनीति और कूटनीति छोड़कर सही अर्थों में किसानों से वार्ता करनी चाहिए। क्योंकि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए यह आंदोलन सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है ऐसी चुनौती भाजपा को आज तक के इतिहास में नहीं मिली है।

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