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किसान आंदोलन: चुनाव से पहले ही फ्लॉप हो गए आंदोलनकारी नेता, क्या थी वजह

2018 में आई नाबार्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 प्रतिशत कर्ज में दबे हुए हैं। वर्ष 2017 में एक किसान परिवार की कुल मासिक आय 8,931 रुपये थी। ऐ

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Published on: 24 March 2021 6:00 PM GMT
किसान आंदोलन: चुनाव से पहले ही फ्लॉप हो गए आंदोलनकारी नेता, क्या थी वजह
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किसान नेताओं ने बड़े जोर शोर से चुनाव वाले राज्यों में जाकर भाजपा के विरोध में मतदान का किसानों से आग्रह करने का ऐलान किया था।

रामकृष्ण वाजपेयी

दिल्ली में आंदोलन कर बढ़े हौसलों के साथ किसान नेताओं ने बड़े जोर शोर से चुनाव वाले राज्यों में जाकर भाजपा के विरोध में मतदान का किसानों से आग्रह करने का ऐलान किया था। सच बात ये थी कि दिल्ली में 26 नवंबर से चल रहे किसानों के धरना प्रदर्शन में अधिकतर किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश, राजस्थान या दिल्ली की सीमाओं से लगे गांवों के थे।

नये कृषि कानूनों को लेकर अड़ियल रुख अपनाने वाले किसान नेता ये मानकर चल रहे थे कि उन्हें पूरे देश के किसानों का समर्थन इस मुद्दे पर मिल जाएगा। लेकिन वह यह भूल गए कि नये कृषि कानूनों का विरोध कौन से किसान कर रहे हैं और देश के किसानों की वास्तविक हालत क्या है।

यह भी मान भी लिया जाए कि नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान अपनी जगह सही हैं तो भी नये कानूनों का असर कितने फीसद किसानों पर हो रहा है। सुदूरवर्ती गांवों में खेती किसानी से अपनी जीविका चलाने वाले किसान की वास्तविक स्थिति क्या है। एक आम किसान किसान जोत का स्वामी है। खेतिहर मजदूर किसानों की स्थिति क्या है। इन्हीं बिंदुओं पर अगर सिलसिलेवार विचार करते हैं तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं।

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2018 में आई नाबार्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 प्रतिशत कर्ज में दबे हुए हैं। वर्ष 2017 में एक किसान परिवार की कुल मासिक आय 8,931 रुपये थी। ऐसा नहीं है कि आंदोलनकारी किसान एक किसान के दर्द को नहीं जानते लेकिन अपने स्वार्थों के आगे वह जानना नहीं चाहते ऐसा लगता है। ये सच है कि खेती और किसान के लिए यह वक्त जितना संघर्ष से भरा हुआ है, उससे ज्यादा संघर्ष से भरा हुआ भविष्य व्यापक समाज और मध्यम वर्ग के लिए होने वाला है। इसे समझने की जरूरत है और इस बारे में जागरूकता लाने के लिए हवा में बात नहीं की जा सकती।

Kisan Neta

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बाकी किसान उन्हें क्यों और किस लिए समर्थन दें

यह अनिवार्यता है कि कृषि और कृषक के जीवन में आ रहे बदलावों से सक्रिय जुड़ाव रखा जाए लेकिन किसान नेताओं ने इसे शुरू से नजरअंदाज किया और कोई सरोकार नहीं रखा और जब बड़े किसानों के हित पर आंच आती प्रतीत हुई तो विरोध में तन कर खड़े होने का प्रयास किया। इसमें बाकी किसान उन्हें क्यों और किस लिए समर्थन दें।

अगर किसानों की मासिक आय पर इस रिपोर्ट के मुताबिक (जिसके आंकड़े जनवरी से जून 2017 के बीच इकठ्ठा किए गए थे) गौर करें तो भारत में वर्ष 2017 में एक किसान परिवार की कुल मासिक आय 8,931 रुपये थी। भारत में किसान परिवार में औसत सदस्य संख्या 4.9 हैं तो प्रति सदस्य आय 61 रुपये प्रतिदिन आती है। यह विचारणीय सवाल है कि पंजाब और हरियाणा या पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे समृद्ध क्षेत्रों में कितने किसान इस दशा को प्राप्त हैं।

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यह देश का असली चेहरा है। देश के कुछ फीसद अगड़े किसान विशाल संपदा पर कब्जा कर अपने ढंग से चीजें चला रहे थे। चूंकि किसान नेता पश्चिम बंगाल गए थे तो वहां की बात करते हैं। पश्चिम बंगाल में किसानों की हालत इतनी खराब है कि वह मुश्किल से अपने पेट भरने के लिए गल्ला उपजा पाते हैं। थोड़ा बहुत गल्ला यदि बच गया तो मंडी का पता उन्हें नहीं मालूम उनके लिए आढ़तिया ही मंडी है। उसे वह अपनी उपज बेचकर तत्काल पैसे प्राप्त कर लेते हैं और अपनी जरूरत पूरी कर लेते हैं।

पश्चिम बंगाल के गांवों में अगर आप जाएंगे तो वहां आपको किसानों के पक्के घर नहीं दिखेंगे। वहां आपको साफ सुथरे कच्चे घर नजर आएंगे। इन किसानों को अब उज्जवला योजना या ग्रामीण आवास जैसी योजनाओं की थोड़ी बहुत जानकारी तो है लेकिन बाकी सरकारी योजनाओं और सत्ता में कौन कहां बैठा है नहीं पता है। इन निरीह किसानों के पास जब अपने खाने भर का अनाज नहीं होता तो यह बड़े किसानों और मंडी की समस्या या एमएसपी के बारे में क्या जानेंगे।

Rakesh Tikait

देश के करीब 48 प्रतिशत परिवार कृषि पर निर्भर

अगर एक और रिपोर्ट पर गौर करें तो देश के करीब 48 प्रतिशत परिवार कृषि पर निर्भर हैं और इनमें से करीब आधे कर्ज में दबे हुए हैं। देश में एक किसान के पास औसतन 1.1 हेक्टेयर जमीन है और हर कर्जदार किसान पर औसतन 1 लाख रुपये का कर्ज है। अब समझने की बात यह है कि ट्रै्क्टर वाले किसान और हलवाले किसानों के बीच के अंतर क्या है।

ट्रैक्टर वाले अपनी बात समझाने गए लेकिन हल वाले किसानों की समझ में उनकी बात नहीं आई। पश्चिम बंगाल में नारे खूब लगे। राजनीति भी हुई लेकिन देश का असली किसान चेहरा दूर रहा। ये समझने की बात है कि पंजाब में जहां किसान परिवार की मासिक आय 25 हजार से अधिक है वहीं हरियाणा में लगभग बीस हजार है। ऐसे में छह सात हजार मासिक आमदनी वाले किसान परिवार इनकी बात नहीं समझ पा रहे।

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26 मार्च को कृषि कानूनों के खिलाफ भारत बंद की घोषणा

इसके बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने राजस्थान में ताकत दिखानी चाही बड़े जोर से कहा गया कि एक लाख लोगों की भीड़ जुटेगी। लेकिन भीड़ आई मुश्किल से चार पांच हजार लोगों की। वह भी एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद राजस्थान में भी एक किसान परिवार की मासिक आय तकरीबन दस हजार के लगभग है।

अब राकेश टिकैत ने 26 मार्च को कृषि कानूनों के खिलाफ भारत बंद की घोषणा की है। टिकैत कहते हैं कि अब किसान संसद जाकर फसल बेचेंगे। मोदीजी कहते हैं कि देश में कहीं भी फसल बेचिए, संसद से बढ़िया जगह और कौन सी होगी। किसान संसद तक ट्रैक्टर लेकर जाएंगे। 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान किया है।

कुल मिलाकर किसान नेता राजनीतिक दांव पेंच में उलझ गए हैं। अगर राजनीतिक पार्टियों को किसानों के जरिये अपना फायदा नहीं दिखा तो वह भी जल्द ही किनारा कर लेंगे। तब किसान नेता क्या करेंगे। कुल मिलाकर मनभेद और मतभेद का शिकार किसान आंदोलन कोमा में पहुंच रहा है। इसको संजीवनी कौन सी रणनीति देगी ये वक्त बताएगा।

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